Post – 2015-10-04

तुम्ही को प्यार करते हैं तुम्हीं पर जां लुटा देंगे.
मगर इतना समझ लें, और इसके बाद क्या देंगे?
न तुमको कोस सकते हैं दुआ तक दे न पाएँगे
बहुत मुमकिन है साकिन अपने जमकर गालियाँ देंगे.
मुझे तो फ़र्क़ पड़ना ही नही, तुम पर ही गुजरेगी
बचाने को तुम्हे अब सोचते हैं जां बचा लेंगे.
फजीहत थोड़ी होगी अपने वादे से मुकरने पर
मगर उसके लिए कोई बहाना हम बना लेंगे.
हमारे जितने दर्शन हैं इसी के काम आते हैं
है धोखा ज़िंदगी, उसको दिया तो तुमको क्या देंगे?
अगर धोखा ही देना है तो जीकर ज़िंदगी भर दें
मज़ा आएगा हमको गैर भी अपने मज़ा लेंगे.
कहाँ तो हमको लफ़्फ़ाज़ी से खूनी क्रांति करनी थी
कहाँ यह खेल लफ़्ज़ों का क़दरदाँ झिड़कियाँ देंगे.
उन्हें समझाना होगा खेल भी जीने का हिस्सा है
सुलाकर हम थकों को, सोये बन्दों को जगा देंगे.
यह सच है खून लफ्जों से न होता है न होगा ही
गलत था, यह गलत, इसकी बज़ाहिर इत्तला देंगे.
दिलों में फ़र्क़ हम लाते रहे, आगे न हो मुमकिन
उजाड़े बिन भी दुनिया है बदल सकती दिखा देंगे
समझ सकते थे इसको मार्क्स तुमको भी समझना है
समझ पाओ तो तुमको तुमसे ऊंचा मर्तबा देंगे.
कहाँ से बात निकली थी और अब जाकर कहाँ पंहुची
रही भगवान की वह खुद ही देता, उसको क्या देंगे .
कई बदनामियों के बाद उसने सर उठाया था
उसे सर तानने देंगे कि फन कहकर दबा देंगे
10/3/2015 7:59:13 PM