Post – 2015-09-23

आसमानों में किले बाँधते हैं, जब भी करने को कुछ नहीं होता.
हम भी कुछ अपनी हवा बाँधते हैं, जब भी करने को कुछ नहीं होता.
भूले बिसरों को याद करते हैं, जब भी करने को कुछ नहीं होता.
तुम्हारा इंतज़ार करते हैं जब भी करने को कुछ नहीं होता.
हमको कोई न निकम्मा समझे ठाले बैठे हैं यह अलग है बात
हम तेरा नाम लिया करते हैं जब भी करने को कुछ नहीं होता
कुछ भी ऐसा न जो बचा रह जाय, आ न जाए हमारी मुट्ठी में
तनहा दुनिया पर राज करते हैं जब भी करने को कुछ नहीं होता
कमाल हाथ की सफाई का जिसके अदना गवाह हम ठहरे
आँधियों के भी पर कतरते हैं जब भी करने को कुछ नहीं होता.
पस्त इतने कि उठ नही सकते, चुस्त इतने कि सितारे हाज़िर
व्यस्त इतने कि गिनाते न बने, जब भी करने को कुछ नहीं होता.
आसमाँ पर जमीं को रखकर हम दिन को रातों में घोल देते हैं
सुबह को यूं ही शाम करते हैं जब भी करने को कुछ नहीं होता.
9/22/2015 9:45:26 PM- 9/23/2015 8:18:42 PM