Post – 2015-09-21

हम सहम कर सोचते हैं, बोलते हैं सोचकर
बन्दापरवर आप को कैसा लगेगा, सोचकर.
दर्द होता है तो खुलकर आह तक भरते नहीं
आप इस पर क्या समझ बैठेंगे, बस यह सोचकर,
गो गुलामी हम इसे कहते, न खुदमुख्तार हैं
कोई मौजूँ लफ्ज़ बतलायेंगे खुद यह सोचकर.
‘सोचने की बंदिशों को मान लो ज़ेवर अगर
‘क़ीमती हैं, चमकती हैं, काम की हैं सोचकर.
‘फिर तो कितनी शान से अकड़े हुए घूमोगे तुम
‘अब भी तो कुछ कम नही है आन ऐसा सोचकर’.
9/21/2015 10:15:18 AM

दिल का आईना है देखें तो आपका चेहरा.
साफ़ हो दिल तो चमकता है आपका चेहरा.
बहुत मुश्किल नहीं, मुन्ने इसे पढ़ लेते है
लहू को आब बनाता है आपका चेहरा.
छिपाओ लाख तहे दिल की धूल मैल भले
सतह पर खींच कर लाता है आपका चेहरा.
जाली टोपी को छिपाने को मैंने देखा कल
लगा लेता है वह ऊपर से मार्क्स का चेहरा.
9/21/2015 10:12:17 AM

दिलों की बात देखो दिलजलों के पास जा पहुँची
पहुँचना उसको था, रोका बहुत, पर आप जा पहुँची.
बुढ़ापे तक दबा रक्खा था अपनी बद्हवाशी को
मगर नाचारगी में देखो ऊपर वह ही आ पहुँची.
मैं जिनको प्यार करता था कभी क्या प्यार कर पाया
जिसे मैं नाम कहता बनके दुश्नामी कहाँ पहुँची.
ग़ज़ब है मरने के पल तक मुहब्बत साथ देती है
मिली भी जो न देखो, उसकी भरपाई कहाँ पहुँची.
कोई पूछे पता मेरा तो ऐ क़ासिद बता देना
ठिकाना उस जगह नज़रे क़यामत है जहाँ पहुँची.
9/19/2015 9:49:15 PM