उस गली में कल जो पहुँचा एक तमाशा हो गया
ऐसा वैसा मत समझिए अच्छा खासा होगया
जिनसे छनती थी वे बिन छाने ही छुपकर पी गए
जब वमन करते मिले तो शक ज़रा सा हो गया.
पूछ बैठा,‘जब अंधेरों पर अँधेरों का था राज
‘लोग आकुल, मौन ओढ़े आप, अब क्या हो गया.
‘कितना खाया था, पिया था, किनसे बतलाएँ ज़नाब?’
इतना सुनना था कि उनका मुँह ज़रा सा हो गया.
फिर ज़रा संभले तो देखो तोहमतों की दस्तकें
तुमको ऐसा मानते थे, कैसे ऐसा हो गया.
ऐसा वैसा जैसा जब चाहोगे, सोचोगे, बनूँ
नाम, नामा, डर, डगर का तुम पर कब्ज़ा हो गया.
मुझको आँखें दी खुदा ने और बीनाई भी दी
उतना ही मुझको बहुत है, मैं खुदा सा हो गया.
9/19/2015 8:58:39 PM