Post – 2015-05-20

इतने अभिभावकों के बीच
इतना अनाथ
इतने हमदर्दों के बीच
इतना विक्षिप्त
इतने चिरागों को परस्पर काटता अँधेरा
संभव है
पर ज़रूरी नहीं
यही मैं हूँ
ज़रूरी नहीं मेरा होना
फिर भी हूँ
जब तक हूँ
एक प्रश्न बना.