अंधायुग
पाँच
Those who can make you believe absurdities can make you commit atrocities. Voltaire
सच और झूठ, न्याय और अन्याय के बीच एक अन्य कसौटी है किसी विचार, कार्य दर्शन मैं असंगति और विसंगति का भाव या अभाव। असंगति से हमारा तात्पर्य अंतर्विरोध से है, और विसंगति अन्य स्थापनाओं से अनमेल पड़ने से।
एक चौंकाने वाली बात यह है कि जिन लोगों ने भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन का आरंभ किया था उनका लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक विषमता को समाप्त करना नहीं था, अपितु एक ऐसी परिस्थिति की तलाश थी जिसमें वे आम लोगों से ऊपर, अपनी विशिष्ट हैसियत को बचाए रह सकें। वे ऊँची हैसियत, ऊँची योग्यता और ऊँची आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोग थे, या इकबाल के शब्दों में कहें तो तोल में वजनदार लोग थे जो जनसाधारण से अपने को अलग और ऊपर समझते थे, और इस हैसियत को बनाए रखने के लिए चिंतित थे। आमजन से, और विलायत में ही अपनी स्कूली से लेकर उच्च शिक्षा पाने वाले साँवले अंग्रेज बनने की आकांक्षा में अपनी जमान तक से कटे होने के कारण लोकतांत्रिक पद्धति में उनका भविष्य अंधकारमय था। वे छोटी हैसियत के उन लोगों द्वारा शासित होने की आशंका से लगभग बौखलाए हुए थे, जिनकी शिक्षा कामचलाऊ, और दिमाग पुरातनपंथी और आर्थिक हैसियत कुछ भी हो सकती थी। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस चिंता से मुस्लिम रईसों ने सरकारी प्रोत्साहन से मुस्लिम लीग की स्थापना की थी, लगभग उसी चिंता से विलायती शिक्षा प्राप्त हिंदुओं ने कम्युनिस्ट पार्टी का छद्मावरण अपनाया था। मुस्लिम लीग से इस मनोवैज्ञानिक एकात्म्य को छोड़कर दूसरा कोई कारण दिखाई नहीं देता जिससे बात बात में मार्क्सवाद बघारने वाले कुमार मंगलम जिन्ना के लिए वैचारिक असला जुटाते और मुस्लिम लीग का खुला समर्थन करते।
प्रेरणा और कार्य योजना के इस बुनियादी अंतर्विरोध से, कम्युनिस्ट पार्टी कभी पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाई। ध्यान दें तो इसके उदाहरण कई रूपों में मिलेंगे, परंतु हम यहां केवल एक का उल्लेख करना चाहेंगे। आपातकाल के दौर का स्मरण करते हुए राज थापर सीपीएम के तत्कालीन महासचिव और अपने मन-वचन की एकरूपता के कारण हमारे लिए आदरणीय नंबूदरीपाद के विषय में जो कुछ लिखा है वह इस त्रासदी को अच्छी तरह बयान करता है:
EMS of the CPI(M) had also rung us once and come to the house during Emergency. He was then suffering from spondylitis and wearing a collar, his voice husky and deep; and he sat in the study asking, ‘What do you think we should do in this situation?’ It had sent me into delirium to hear the vanguard of the communists asking us middle class elite what their role should be when that is just what we wanted from him, alas. 435
इसके कारण दूसरी अनेक विकृतियां इसमें घर कर गईं जिनकी पड़ताल कभी की नहीं गई। यह अकारण नहीं है कि कम्युनिस्ट पार्टियों में ब्राह्मणों की, विलायती शिक्षा प्राप्त जनों की और प्रगल्भ वक्ताओं (ओरेटरों) तथा आग उगलने वाली लफ्फाजी से असंभव को संभव बनाने वाले कवियों की जितनी पूछ रही है उतनी अन्य किसी दल में नहीं। इस मामले में भारतीय कम्युनिस्टों को केवल नाजी और फासिस्ट ही मात देते दिखाई देते हैं। यह याद दिलाना जरूरी लगता है कि गोएबल्स ऑरेटरी को इतना महत्त्व देता था कि उसने इसके लिए प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए थे और जर्मनी में सबसे ऊंची तनख्वाह पाने वाले लोगों में एक थे विदग्ध वक्ता (ओरेटर)। कला रूपों का अपने प्रचार के लिए जितना उपयोग नाजियों ने किया, उसकी तुलना भी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके विविध रूपों से ही की जा सकती है। जब झूठ को सच और सच को झूठ बनाना हो तो इनका महत्व बढ़ जाता है।
परंतु हम जिस विकृति की विशेष रूप में चर्चा करना चाहते हैं, वह कम्युनिस्टों के हिंदुत्व से द्रोह का परिणाम नहीं है, अपितु हिंदू समाज को आनन-फानन में अत्याधुनिक बनाने और सभी विकृतियों से मुक्त करने के उत्साह का परिणाम है, जो विलायत पहुंचे हिंदुओं में अधिक गहन था । इसे एक तरह की क्षतिपूर्ति भी कहा जा सकता है। परंतु इससे जितनी क्षति पहुंची उसकी तुलना विध्वंस से ही की जा सकती है। इसी की परिणति सभी बुराइयों की जड़ हिंदुत्व में तलाशने के उत्साह में भी देखी जा सकती है, जिसकी विस्तृत चर्चा यहां संभव नहीं और संक्षिप्त उल्लेख भ्रामक हो सकता है।
हम केवल हिंदुत्व के इस नए आत्मघाती रूप को ही समझने का प्रयत्न करें। इंग्लैंड में अपनी स्कूली शिक्षा से लेकर आगे तक की शिक्षा पाने वाले छात्रों को जिस धार्मिक पर्यावरण से गुजरना पड़ा था उसमें हिंदू बहुदेववाद के प्रति जिस तरह की वितृष्णा थी उसके दबाव से मार्क्स स्वयं नहीं बच सके थे भारतीय छात्रों की तो बात ही अलग। ठीक ऐसा ही दृष्टिकोण प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रति बना हुआ था। इस समाज और इतिहास के विषय में गहराई से समझे जाने बिना, इसको एक झटके में उन विकृतियों से मुक्त करने के नेक इरादे ने सांस्कृतिक मूल्यों की अवज्ञा और इतिहास की नकारात्मक समझ को प्रोत्साहित किया। इस्लाम और ईसाइयत के बीच एकेश्वरवाद और साझी पौराणिक विरासत के कारण वैसा नकारात्मक रवैया न धर्म को लेकर था न ही इतिहास को लेकर। मध्यकालीन इतिहास के विषय में उनकी धारणा जेम्स मिल के हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया पर आधारित थी जिसमें प्राचीन भारत की तुलना में मध्यकाल को श्रेयस्कर बताया गया था। इसलिए शिक्षा का वही पर्यावरण धार्मिक सांस्कृतिक और प्रशासनिक सभी दृष्टियों से मुस्लिम छात्रों के मनोबल को गिराता नहीं था।