अंधायुग
चार
आप सच के साथ खड़े हैं और झूठ के विरुद्ध लड़ रहे हैं, या झूठ के साथ खड़े हैं, और सत्य को निर्मूूल करना चाहते हैं, यह तय करने का अगला निकष हमारी अपनी गलतियाँ और उनसे मिली सीख है। इनमें से एक की चर्चा हम इतनी बार, इतने रूपों में, करते आए है कि तकिया कलाम का रूप ले चुका है। यह है किन्हीं रहस्यमय कारणों से भारतीय कम्युनिस्टों की मार्क्सवाद की समझ का मुस्लिम लीग की समझ से अभेद हो जाना, जिसका परिणाम था देश का विभाजन। यह सिद्धांततः गलत था, पर अपने वाक्कौशल से गलत को सही सिद्ध करने वालों के प्रभाव के कारण पार्टी के भीतर से उठने वाले विरोध की अनसुनी कर दी गई।
आवेश और अति विश्वास में गलती सभी से होती है, कम्युनिस्ट पार्टी से भी हुई, और इसे उसने स्वीकार भी किया। परंतु इसके बाद भी मुस्लिम मुल्ला-परस्ती की लगातार इस सीमा तक जारी रही — मुल्लों और कम्युनिस्टों के सुर एक दूसरे से इतने मेल खाते रहे, धार्मिक मामलों में दोनों के मंच एक होते रहे कि मुस्लिम आतंकवाद तक का समर्थन करने में कभी संकोच नहीं किया। गलत चीज को गलत जानते हुए, मुक्त न हो पाना ड्रग एडिक्ट्स याद दिलाता है। विचारों का गलत घोल तैयार करके उन्हे खतरनाक नशीले द्रव्य में बदला जा सकता है और इसकी ऐसी लत डाली जा सकती है कि इसके दुष्परिणामों को झेलते हुए भी, यह स्वीकार करते हुए भी कि यह गलत है, आत्मघातक है, इसका सेवन करने से अपने रोका न जा सके।
प्रतिभा, पांडित्य, महत्वाकांक्षा का दुर्लभ योग आत्मविनाश की दिशा में इतनी तेजी से कैसे बढ़ जाता है कि आप अपने बचाव में विनाश के उस कारण की ही महिमा गाने लगते हैं । नशे के शिकार हो गए अपनी अपेक्षा से पीछे रह जाने वाली या बहुत तेजी से विनाश की कगार पर पहुंच जाने वाली प्रतिभाओं की कहानियां असंख्य हैं, परंतु मेरी आंखों के सामने अपने एक मित्र की याद ताजा हो जाती है।
उनसे मेरा परिचय उस समय हुआ था जब वह बर्बादी की कई मंजिलों से गुजरने के बाद अस्थि पंजर मात्र रह गए थे। पत्नी ने उन्हें कुटेव से मुक्त करने के लिए नेशनल ड्रग डिपेंडेंस सेंटर में भरती कराया। सुना कुछ समय के बाद उन्होंने अपना इलाज करने वाले डॉक्टरों को भी समझा दिया कि ड्रग का लेना उनके हित में है। अनुपात में क्या अंतर आया नहीं जानता, पर अपने सौम्य क्षणों में मुझ जैसे व्यक्ति पर अपने ज्ञान और प्रखरता की धाक जमाने में उन्हें अधिक आयास नहीं करना पड़ता था। (अधिकांश विषयों का मेरा ज्ञान इतना काम चलाऊ है कि यदि मुझसे बहुत कम उम्र का व्यक्ति किसी विषय पर अधिकार की बात करे तो मैं उससे बहस नहीं करता, उसे अधिकारी मानकर शिष्य भाव सुनता और सीखता हूँ। इसलिए जानकार लोगों से मेरी अच्छी निभती है, ज्ञान कितना बढ़ता है इसका हिसाब नहीं किया, वे उस विषय के कितने अधिकारी थे यह तो तय ही नहीं कर सकता।)
मेरे मित्र उम्र में काफी छोटे थे, पर अपने ज्ञान और सरोकार के कारण मेरे आदरणीय मित्रों में थे। वह पार्टी की स्टडी सर्कल से निकले कम्युनिस्ट थे, पर जिज्ञासा ने विचलित भी किया था। पी.सी.जोशी के संदर्भ में हम उन्हें याद कर चुके हैं; एम.एन. राय पर काम कर रहे थे जो अधूरा ही रह गया। पर अपनी प्रखर प्रतिभा और अध्यवसाय के होते हुए भी, कुटेव से निजी और पारिवारिक जीवन नष्ट करने के बाद भी उन्हें कभी अपनी लत को कोसते न पाया। जिस पत्नी ने उन्हें और परिवार को सँभालने में टूटन के कगार पर पहुँच कर घर में रहते हुए घर से अपने कोअलग कर लिया था, उससे उन्हें इतनी शिकायतें थीं जिनका अंत नहीं।
अपनी गलती को समझने, स्वीकार करने के बाद भी, उससे मुक्त न हो पाने और देश विभाजन से भी अधिक खतरनाक मोड़ पर कम्युनिस्ट पार्टियों को वही गलती, उतने ही उत्साह और विश्वास से, परिणाम से अवगत होते हुए भी दुहराते देख कर विचारधारा को विषाक्त करके उसकी लत का शिकार होने के अतिरिक्त कोई दूसरा औचित्य दिखाई नहीं देता।
गलती बार बार दुहराने से सही नहीं हो जाती। हर दशा में यह तो मानना ही होगा कि वामपंथ झूठ और अन्याय का समर्थन करता आया है और इस दशा में वही काम जिसे आप क्रान्तिकारी या युगान्तरकारी मानते आए हैं, इस कसौटी पर उपद्रवकारी और देशद्रोही कृत्य सिद्ध होता है।