Post – 2020-03-02

पन्द्रह (ग)

भारत की एक खोज गांधी ने भी की थी पर यह खोज न होकर भारत को अधिक गहराई से समझने का प्रयत्न था। इसके लिए उन्हें गोपालकृष्ण गोखले ने प्रेरित किया था। एक साल के इस भारत दर्शन ने, भारत की विपन्नता का जो साक्षात्कार कराया उसने उसने उनको किस तरह उद्वेलित किया था इसका अनुमान करना कठिन है, परन्तु बिहार के कुछ नेताओं ने आग्रह पर निलहे अंग्रेज जमींदारों के अत्याचार को अपनी आँखों देखने और कुछ करने का आग्रह किया तो चंपारन पहुँचने पर उनकी दृष्टि में जो परिवर्तन हुआ उसने उन्हें महात्मा बना दिया। मेरा काफी समय कल की पोस्ट पर प्रतिवाद में नष्ट हो गया इसलिए रुचिरा गुप्ता के कथन को जिसे मैं मोटे तौर पर सही पाता हूँ कट पेस्ट करके अपना काम आसान बनाना चाहूँगा, “गांधी जी जब चंपारण पहुंचे तब वो कठियावाड़ी पोशाक पहने हुए थे. इसमें ऊपर एक शर्ट, नीचे एक धोती, एक घड़ी, एक सफेद गमछा, चमड़े का जूता और एक टोपी थी …जब गांधी जी ने सुना कि नील फैक्ट्रियों के मालिक निम्न जाति के औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते हैं तो उन्होंने तुरंत जूते पहनने बंद कर दिए…..8 नवंबर 1917 को गांधीजी ने सत्याग्रह का दूसरा चरण शुरू किया था. वो अपने साथ काम कर रहे कार्यकर्ताओं को लेकर चंपारण पहुंचें. इनमें से छह महिलाएं थीं. अवंतिका बाई, उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी, मनीबाई पारीख, आनंदीबाई, श्रीयुत दिवाकर (वीमेंस यूनिवर्सिटी ऑफ़ पूना की रजिस्ट्रार) का नाम इन महिलाओं में शामिल था. इन लोगों ने तीन स्कूल यहां शुरू किए. हिंदी और उर्दू में उन्हें लड़कियों और औरतों की पढ़ाई शुरू हुई. इसके साथ-साथ खेती और बुनाई का काम भी उन्हें सिखाया गया. लोगों को कुंओं और नालियों को साफ-सुथरा रखने के लिए प्रशिक्षित किया गया. गांव की सड़कों को भी सबने मिलकर साफ किया.”
हम उस इतिहास में न जाएँगे कि उनके इस प्रयोग का क्या हुआ, वे अपनी संस्थाओं को कितने समय तक चला सके। पर यह एक ऐसा मोड़ है जहाँ से अपने औसत हिस्से में आने वाले वस्त्र पर गुजर करने वाले, पाशविक अवस्था में पड़े भारतीय बनाना, उसमें शुचिता, आरोग्य, साक्षरता, आत्मावलंबन और मुक्ति गांधी का सपना था, सत्ता पर कब्जा करना दूसरों का। आजाद शब्द का प्रयोग गांधी ने शायद ही कभी किया हो, परंतु आजादी की कल्पना – दोहिक, दैविक और भौतिक दुखों, पारस्परिक कलह से मुक्त भारतीय समाज को शासनाधिकार मिले यही उनकी नजर मे भारत की स्वतंत्रता थी। यह अन्त्योदय से आरंभ होती थी। इसकी समझ किसी अन्य के पास न थीं। यही गाँधी, नेहरू तथा कम्युनिस्टों उनका अंतर था।