परिचय
दीखता कुछ नहीं, थर्राई हुई है आवाज ।
डबडबाई हुई आँखें हैं झेंपता अन्दाज ।
उल्टा चश्मा है, देखता है तो क्या देखता है?
पूछ बैठा तो वह घबरा सा गया था सच, आज।।
रो के लिखता तो आग घोल के क्यों लिखता है?
डरा सहमा है तो दिल खोल के क्यों लिखता है?
किससे डरता है, कोई है भी डराने वाला ?
गलत लिखता है, तो यूँ तोल के क्यों लिखता है?
न कुछ कहा न तो कह पाएगा आगे भी कभी।
है कोई राज, मगर क्या ? न बताएगा कभी ।।
कहना चाहेगा तो फिर आँखों में बादल होगा।
शर्त बदता हूँ, ये मगरूर भी पागल होगा।।
नहीं गलियों में, दिलों में ही फिरेगा शायद।
कहूँ तो शर्म से वह डूब मरेगा शायद ।।
न करो याद, तुम्हें याद करेगा हरदम ।
खाक हो कर भी यह उड़ता ही रहेगा शायद।।