Post – 2020-01-18

गलतफहमी यह है कि कबीर, तुलसी, भारतेंदु, राहुल, रामविलास शर्मा की तरह मैं अपने समय का अकेला ऐक्चिविस्ट साहित्यकार हूँ, जिसकी लिखित और प्रकाशित घोषणा मैंने 1970 में प्रकाशित ‘अपने समानान्तर’ की पहली कविता में की थी, जिसमें रचे हुए जुमले दुहराने वालों के विषय में लिखा था ‘कोढ़ियों की तरह शब्द थूकने वाले लोग, और स्वयं के पूर्ववर्ती रचना कर्म को भी उसी में गिना था :
लो मैने बन्द कर दिया कोढ़ियों की तरह
शब्द थूकते रहना
मैं खोलने जा रहा हूँ
कुछ खतरनाक शब्दों की जंजीरें
ये तुम्हें काटेंगे
और जिन्दा छोड़ देंगे
ताउम्र भौंकने के लिए।

भौंकने वालों से इतनी देर में पाला पड़ा, हैरानी इस बात की है।