क्या आपने ऐसा सौदा देखा है जिसमें मोल कोई चुकाए और माल कोई दूसरा हथिया ले। आजादी की कीमत जान, माल, सम्मान सभी रूपों में उन्होंने चुकाई जिन्हें हमने पाकिस्तान को सौंप दिया और आजादी का मजा हम लेते रहे। अभी हमें सेकुलर कहाने का मजा और लेना है इसलिए कहते हैं वहीं मरो खपो।
जो कानून पास हुआ है वह अधूरा है। उसमें 2014 की सीमा नहीं होनी चाहिए। शरणार्थियों के मुफ्त आवास और योग्यता के अनुसार रोजगार की व्यवस्था की जानी चाहिए। पूरा न्याय तब भी न होगा पर इससे अधिक कुछ संभव नहीं है।