Post – 2019-12-13

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (37)
भेड़िए की दलील-2
टामस बरो संस्कृत के अधिकारी विद्वान माने जाते हैं। वह The Sanskrit Language (Faber and Faber,1955) के लेखक हैं। वह ईरान में आर्य भाषा के प्रवेश के या मांदार्यो की उपस्थिति के विषय में बताते हैं कि 1000 ई.पू. से पहले इसके ईरान मे होने का प्रमाण नहीं मिलता:
The presence of Medes and Persians in Iran proper is attested in the Assyrian annals from the tenth Century BC. )

उसी के साथ यह भी मानते हैं कि भारत पर आक्रमण का कोई प्रमाण नहीं
For the Indo-Aryan invasion of India no direct evidence is available. 31

कश वंश के विषय में बताते है कि वे 1750-1170 ई.पू. बेबीलोनिया पर राज्य करते रहे। उसके साथ ही यह स्वीकार करते हैं कि वे पूर्व की दिशा से, ईरानी पठार, से होकर आने वाले आक्रमणकारी थे:
The Kassites themselves were invaders from the east. 31

वह बताते हैं कि भारोपीय भाषा का सबसे प्राचीन अभिलेखीय प्रमाण न तो ईरान में मिलता है, न भारत में, यह पश्चिम एशिया में मिलता है:
The earliest recorded traces come neither from India, nor from Iran, but from the near-East. 27

परंतु ये निशान उस मूल भाषा के नहीं हैं जिसे भारोपीय कहा जाता है, अपितु यह उससे अलग हुई सबसे पुरानी भाषा थी:
Separation of Hittite and the languages allied to it form the main body of Indo-European must have taken place earliest of all. 17

उनके निकट पूर्व में आर्यों की उपस्थिति दूसरी सहस्राब्दी के मध्य की है और उसी (पूर्वी) दिशा से हुए आक्रमण का परिणााम है
The presence of Aryans in the Near-East in the middle of the second millennium BC can be best explained by a invasion from this quarter. 30

इसके बाद भी बरो कहते हैं, ये ईरान या भारत से आए हो सकते हैं, इस पर विचार करने की कोई तुक ही नहीं बनती और यह तब कहते हैं जब मानते हैं कि आर्यभाषा भाषियों का यह हमला उधर से ही हुआ है(There is clearly no point in arguments as to whether the the language is Iranian or Indian, since there is no evidence of its being either, 30

क्या ऐसे विद्वानों को कुछ समझाया जा सकता है जो जानते कुछ और हैं, ठानते कुछ और हैं , मानते कुछ और हैं।

हित्ती और उसकी अनुसंगी बेलियोे की समस्त संपदा – चाहे वह व्यक्ति नाम हो या देवनाम हो अश्वपालन से जुड़ी पारिभाषिक शब्दावली हो- भारत छोड़कर किसी अन्य देश से नहीं जुड़ती। ईरान से भी नहीं जहाँ सप्त हफ्त हो जाता है और इसी विवशता में बरो को भी बार बार इंडो आर्यन का प्रयोग करना पड़ रहा था। यदि हित्ताइत अपने मूल से अलग होने वाली पहली भाषा थी तो वह मूलभाषा तो भारत में प्रचलित थी जहाँ से यह आक्रमण हुआ था। ऐसी दशा में भारत पर किसी आक्रमण की बात कोई पागल ही कर सकता है और यह पागलपन वर्चस्व की कामना और रंगभेद के कारण किसी एक पर नहीं पूरे यूरोप पर सवार था और आज भी सवार है और इसीलिए हमें किसी भी पश्चिमी विद्वान या विशेषज्ञ की राय या समर्थन का नकारात्मक अर्थ ग्रहण करना चाहिए। वे सचाई पर परदा डालने की पूरी तैयारी के साथ, अपनापन दिखाते हुए झूठ का प्रचार करते हैं, सचाई उनकी लाख कोशिशों के बाद भी उनकी असंगतियों से सामने आ जाता है, क्योंकि जैसा कि हम कह आए हैं झूठ के सिरे लाख जतन के बाद भी एक दूसरे से मिलते नहीं हैं। आपराधिक छानबीन में इसी के कारण अपराधी अपने गुनाह का सबूत पेश कर देता है।

बरो को भारत पर किसी आक्रमण का प्रमाण नहीं मिल रहा था, मिल सकता भी नहीं, पर भारत से आर्यभाषा भाषियों के आक्रमण के प्रमाण उन्होंने स्वयं पेश कर दिए। उनके ही कथन से यह सिद्ध होता है कि:
(1) भारोपीय भाषा भारत में उस समय बोली जाती थी जब कहीं अन्यत्र नहीं बोली जाती थी।
(2) भारतीय आर्यभाषा भारतीय-ईरानी की शाखा नही, ईरानी मध्येशिया पर भारतीय प्रभाव कायम हो जाने के बाद वहाँ से छिटके मान्दार्यों की एक शाखा है।
(3) भारोपीय की जननी भारतीय आर्य भाषा है और उसका मानकीकरण किस बोली के उत्थान और किन बोलियों के संसर्ग में हुआ था इसकी खोज केवल भारत में ही संभव है।

अब हम बरो के द्वारा भाषावैज्ञानिक साक्ष्यों का उन पुराणवृत्तों या दंतकथाओं से मेल खाने को ले सकते हैं जिनके आधार पर विलियम जोन्स ने यूरोप में संस्कृत के प्रवेश के प्रमाण दिए थे। जोन्स ने यह माना था कि भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय क्षेत्र पर संस्कृत बोलने वालों का आधिपत्य था और उनकी देवियों को भारतीय प्रतिदर्शों के अनुरूप ढाला गया था। इन्हीं के माध्यम से ग्रीस और इटली में संस्कृत का प्रवेश हुआ था। परंतु उनके पास पुरातात्विक प्रमाण न था। उस कमी को बरो और दूसरे विद्वान पूरा कर देते हैं: वह बताते हैं कि उस क्षेत्र पर मितन्नियों और उनके अधीनस्थों का जमाव था:
….consequently, we come across rulers of neighboring principalities having similar Aryan names and this extend as far as Syria and Palestine.