#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (35)
पश्चिम एशिया और भारतीय आर्य भाषा
आज मैं अपनी बात एक पुराण कथा से आरंभ करूंगा। आप चाहें तो इसे कल्पना के रंग में रंग कर प्रस्तुत किया गया इतिहास भी कह सकते हैं। रघुवंश का नाम आपने सुना होगा। रघुवंश के अनुसार रघु दिलीप के पुत्र थे। रामकथा के प्रसंग में पहले कह आए हैं वाल्मीकि रामायण के अनुसार वंशावली कुछ अलग है, इसके बाद भी यह प्रश्न बना रह जाता है कि यह वंश दूसरे किसी पूर्वज के नाम से न चल कर रघु के नाम से ही क्यों विख्यात हुआ। इस संदर्भ में हमने दो प्रश्न उठाए थे। एक का निष्कर्ष यह था कि रघुवंश की भोगोलिक पहचान साकेत और कोसल से जुड़ी है और इनकी पहचान के संदर्भ मे हमने रामकथा की परंपरा (24 और 25) में लिखा था:
”हमने पाया कि वे भारत में जब भी जहाँ से भी आए हों, भारत में वे भारतीय जातीय में वे यहाँ अनादि काल से हैं जो राम की पैतृकता को विवस्वान के पुत्र मनु से जोड़ता है और मध्येसिया के कश, कज्ज, शक उस शौर्य को दर्शाते हैं जो इनकी प्रकृति थी। सूर्यवंश सूर्य से उत्पन्न न था, न हो सकता था, परंतु शौर्य के लिए विख्यात था, इसका साहित्य गवाह है। अविजेय, अयोध्या उन्हीं की राजधानी हो सकती थी।”
“ठीक इसी की आवृत्ति हमें कोसल और साकेत में मिलती है। एक कस से दूसरी सक से। यहाँ याद दिला दें कि भोजपुरी और अवधी में ऊष्म ध्वनि केवल ‘स’ है। तालव्य ध्वनि मागधी की है और मूर्धन्य ‘ष’ कौरवी की। अतः सही उच्चारण कोसल, कासी, कस और सक है। कस और सक एक ही हैं, अक्षरों के फेर-बदल (वर्णविपर्यय) से दो हो गए।”
इस प्रसंग में कुछ और बातों पर ध्यान देना होगा। शतपथ ब्राह्मण में विदेघ माथव की सरस्वती तट से प्राण रक्षा के लिए पलायन करने की जो कथा है, उसमें विदे माथव को सदानीरा के पार जाकर इसलिए बसना पड़ता है, कि उससे पश्चिम की ओर कोसल राज्य है। सदानीरा ही दोनों की सीमा रेखा बनती है। इसमें हम कल्पना से यह जोड़ सकते हैं कि कोसल पहले से बसा हुआ था और उस पर उस सूखे का इतना गहरा असर नहीं पड़ा था जितना कुरुक्षेत्र और उससे आगे के भूभाग पर, और इसमें यह भी जोड़ सकते हैं की कौशल के लोगों को किसी दूसरे जन की घुसपैठ सह्य नहीं थी। जिस तर्क से अयोध्या का अर्थ अविजेय किया जाता उसी तर्क से उत्तर कोसल के लिए अवध नामकरण इसकी सुरक्षा के कारण अवध – अवध्य – पड़ा था।
अपने कुल के दूसरे पूर्वजों के होते हुए यदि आगे का नामकरण रघु के नाम पर हुआ, तो रघु ने अवश्य कोई असाधारण कार्य किया होगा जिसके कारण, उनकी कीर्ति बाद के वंशधरों के नाम से भी जुड़ी। राम राघव, ऱघुराज, ऱघुवीर हैं। रीति रघुकुल की मानी जाती है। यह मानते हुए भी कि रघु दिलीप के पुत्र हैं, कालिदास ने अपनी कृति का नाम रघुवंश रखा। रघु की कीर्ति उनके दिग्विजय से जुड़ी हुई है। दिग्विजय की कल्पना अपने समय के भारत के भौगोलिक ज्ञान की सीमा में कालिदास करते हैं, यवनों , कंबोजों पर उनकी विजय का भी उल्लेख करते हैं, परंतु चक्रवर्ती सिद्ध करने के लिए वह पूरब की दिशा में मुड़ जाते हैं। दक्षिण भारत की विजय कर चुके हैं । वह चक्रवर्ती बनने के लिए शास्त्रीय विजय तो पा लेते हैं, परंतु विजय यात्राओं के अनुरूप विजेता नहीं सिद्ध होते।
हम अब पश्चिम एशिया के इतिहास पर दृष्टि डाल सकते हैं। यहां कस जनों द्वारा बेबीलोन सहित उत्तरी इराक तक साम्राज्य स्थापित करने के सत्य को ले सकते हैं जिनके आधिपत्य का प्रमाण जिस काल में मिलता है उस समय तक उनकी भाषा इतनी बदल चुकी थी कि विज्ञानी उसे स्वविशिष्ट भाषा मान बैठते हैं। इनके विषय में विकीपीडिया की कुछ पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य हैं:
The Kassites (/ˈkæsaɪts/) were people of the ancient Near East, who controlled Babylonia after the fall of the Old Babylonian Empire c. 1531 BC and until c. 1155 BC (short chronology). The endonym of the Kassites was probably Galzu, although they have also been referred to by the names Kaššu, Kassi, Kasi or Kashi.
उनकी भाषा के विषय में :
The language itself has been compared to several, such as Hittite and Elamite but genetically found wanting, possibly with the exception of the Hurrian language.
परंतु हुर्रयन कौन थे ?
The Hurrians (/ˈhʊəriənz/; cuneiform: 𒄷𒌨𒊑; transliteration: Ḫu-ur-ri; also called Hari, Khurrites, Hourri, Churri, Hurri or Hurriter) were a people of the Bronze Age Near East. They spoke a Hurro-Urartian language called Hurrian and lived in Anatolia and Northern Mesopotamia.
यहां ध्यान दें तो पाएंगे कि भारतीय ‘स’ ईरानी प्रभाव में ‘ ह’ हो जाता है। यदि वे अपने को हूरी कहते थे यह ऋग्वेद के सूरी हुए, और सूरी का अर्थ ऋग्वेद में उपासक किया गया है। हम इसमें एक शब्द जोड़ना चाहेंगे, वह है सूर्य। हुरी सूर्योपासक प्रतीत होते हैं। और यही सूर्यवंशियो की भी असलियत बयान करता है। सूर्यवंशी सूर्योपासक थे और यह संयोग ही है कि भोजपुरी क्षेत्र में सूर्योपासना की परंपरा आज तक बिना यह जाने कि
इसकी सार्थकता क्या है, आज तक बनी हुई है।
पंजाब में एक उपनाम सूरी है। हुरी इसी का अपभ्रंश लगता है। हुरियों के देवी देवता तक बदल चुके हैं। केवल एक देव ऐसा है जिससे भारतीय यथार्थ पर प्रकाश पड़ता है।
Kushuh, Kušuh; the moon god. Symbols of the sun and the crescent moon appear joined together in the Hurrian iconography. परन्तु अश्वपालन संबंधित शब्दावली मेल खाती है The terminology used in connection with horses contains many Indo-Aryan loan-words। इनके वहाँ इनकी बस्तियाँ आधुनिक ईराक, सीरिया और तुर्की में मिली है।
सूर्यवंशियों के बीच रामचन्द्र की उपस्थिति का रहस्य इससे समझा जा सकता है।
कस्सियों की भाषा में काफी विकार आया था परंतु उनके देवनाम वेदिक थे। इनमें आए विकारों को देखते हुए इस क्षेत्र में उनके प्रवेश का काल 2000 ई,पू. निर्धारित किया गया है। सूचना के इन तारो को मिलाने पर क्या चित्र उभरता है इस पर अभी कुछ न कहेंगे।