आस्था, विश्वास ज्ञान विरोधी है, निजी, साझे की नहींं। साझेदारी केवल ज्ञान की संभव है। भावनाओं का प्रदर्शन उनकी गरिमा और पवित्रता को नष्ट, तमाशा और घटिया कारोबार का रूप लेता है। ज्ञान की साझेदारी ही संभव है। आवेगों के प्रसार से उपद्रव होते है, ज्ञान के प्रसार से समस्याओं का हल निकलता है। मेरे मित्र केवल भावविह्वल लोग हों तो भी मेरी हानि होगी, अमित्र रहें तो मेरी कोई हानि नही। उन्हें स्वयं किनारा कस लेना चाहिए।