विषयांतर होने के कारण अपनी लेखमाला से कुछ भटक गया हूँ। आज भी उस पर लिखने की इच्छा होते हुए लिख न पाया। काम न किया तो हाथ-पाँव ही हिला लेने के तर्क से कुछ फैशनेबल मूर्खताओं से हमें सावधान रहना चाहिए :
1. उदारता
यह आत्मसमर्पण और आत्मनिषेध का पर्याय नहीं है। यह पारस्परिकता पर निर्भर करती है। किसी को खुश करने के लिए आप झुकते चले जाएँ या दूसरे को झुकाते चले जाएँ, यह आत्मपीड़न या परपीड़न की व्याधि हो सकती है, उदारता नहीं।
2. वैज्ञानिकता
यह प्राकृत नियमों के निर्मम निर्वाह के बिना संभव नहीं। इसमें किसी के प्रति सदय या निर्दय नहीं हुआ जा सकता। निर्मम सत्य को कहने के साहस के बिना वैज्ञानिकता का निर्वाह नहीं हो सकता।
3. हिन्दू
यूरोप में ज्ञान, विज्ञान, दर्शन के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के बाद भी यहूदी एक ऐसा घृणित शब्द बना दिया गया था कि यहूदी कह कर किसी का अपमान किया जा सकता था। इस डर से ही मार्क्स के पिता को अपना धर्म बदल कर ईसाई बनना पड़ा था। एकांगी कम्युनिस्ट धर्मनिरपेक्षता के प्रभाव से हिंदू को वैसा ही घृणित शब्द -हेट वर्ड- बना दिया गया। इससे बचा जाना चाहिए। पूजा से भी, घृणा से भी।