Post – 2019-10-12

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (9)

विलियम जोंस और सेक्युलर इतिहासकार

तीन दशक पहले तक ‘मुनाफिकून’ विद्वानों में यह सिद्ध करने की होड लगी थी कि कितना भारत भारत से उखाड़ कर ईरान में पहुंचाया जा सकता है और यह सिद्ध किया जा सकता है की सभ्यता और संस्कृति प्राचीनतम काल से मध्य काल तक ईरान से ही आती रही है। इसी तरह की होड़ यह सिद्ध करने की लगी हुई थी, जो आज तक जारी है, कि सर्वमान्य रूप से सांप्रदायिक सोच पैदा करने वाले और उसे बढ़ावा देने वाले मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी सेकुलर थे और राष्ट्रवादी समझे जाने वाले हिन्दू बुद्धिजीवी सांप्रदायिक थे।

इसी होड़ में रामविलास शर्मा की बड़ी दुर्गति की गई थी।

इस योजना के अधीन एक मामूली सी पुस्तक लिखने के बाद भी अकूत इनाम- इकराम हासिल किए जा सकते थे। इसका सबसे रोचक उदाहरण यह है कि बैंगलोर स्पेस रिसर्च सेंटर से प्रोफेसर के पद से निवृत्त होने वाले, और नेहरू पुस्तकालय के अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्नशील एक विद्वान ने अपना क्षेत्र छोड़कर बड़ी तेजी से प्राचीन इतिहास में दिलचस्पी पैदा कर ली। वह कैंब्रिज विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर हो कर जाया करते थे। वहां उन्होंने J.P. Mallory (In Search of the Indo-Europeans, 1991 के लेखक) से संपर्क साधा, टाइम्स ऑफ इंडिया में दो तीन लेख छपवाए और ऐन मौके पर एक किताब भी प्रकाशित करा दी The Vedic People,(Orient and Longman, 2000.pp. 259, Rs. 425)।

इसमें वह इतनी नई बातें करते हैं जितनी स्पेस से धरती को देखने वाला ही कर सकता है: The Argandab can be equated with Drishadvati and, say, the Tarnak with Apaya. There have already been suggestions that Arjika be identified with the Arghastan. Lakes like Saranyavant and anyatasplaksha can be easily placed in the hilly area of Koh-i-Baba from where the Hilmund starts.

इस पुस्तक की समीक्षा करने का सौभाग्य मुझे मिला था (History Today,1, 2000 pp.59-67) जिसके अंतिम पैराग्राफ को रखने का प्रलोभन होता है :
we agree with Dr. Kochhar that “The Puranas as we have seen are a curious mix of history, mythology, and nonsense” But we must add that so is his book which draws freely from the Puranas without knowing how to handle the text. Only scientists with journalistic temptations can write the modern Puranas, and that he has done without demur. The most interesting thing with him is that he is not wrong; he is simply incredible.

इसका ध्यान मुझे खास तौर से इसलिए आया कि जिस पद के लिए वह प्रयत्न कर रहे थे वह उनके हाथ से निकल गया तो इतिहास में उनकी रुचि खत्म हो गई। उसके बाद, इतिहास पर कहीं उनकी एक टिप्पणी तक देखने नहीं आई।

प्रलोभन के मामले में किस-किस का नाम लीजिए किस किस को रोइए, परंतु इस प्रवृत्ति को जन्म देने वाले, पोसने वाले और शोध और उच्च शिक्षा के संस्थानों पर कब्जा करके खजाने का मुंह खोल कर इशारा करने वाले, लूट सके तो लूट, पर लिखना होगा मेरी इच्छा का इतिहास, मध्यकालीन मानसिकता से ग्रस्त और ईरान को अपना खानदानी घर समझने वाले प्रभावशाली विद्वान थे, जिनके अज्दाद ने भारतीय ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा और आस्था-केंद्रों, ग्रंथों और पुस्तकालयों को नष्ट, भ्रष्ट और ध्वस्त किया था और वे ज्ञानपरपरा, इतिहास और संस्कृति की चेतना तक को नष्ट कर रहे थे और इसके बाद भी न केवल सेक्युलर थे अपितु उनकी निशानदेही से यह तय होता था कि हिंदुओं में कौन कौन सेक्युलर हो चुके और कौन उसकी कतार में खड़े हैं, कौन कभी सेक्युलर हो ही नहीं सकते क्योंकि इस बार उन्होंने अपनी योजना के अमल पर केवल हिंदुओं को लगाया था, ईनाम इकराम केवल उनको दिया जा रहा था। अपने ही धर्मदायादों को मध्यकालीन इतिहास तक के लेखन के लिए अछूत समझने वालों से अधिक सेक्युलर हो भी कौन सकता है।

विलियम जॉन्स पर लिखते हुए इस प्रसंग को लाने का कारण यह था की फारस पर उनके ही लेखन से ईरान को शिरोमणि देश, सभ्यता का जनक और प्रेरक सिद्ध किया गया था, और इसके बावजूद उनके इस प्रस्ताव को ध्रुुवसत्य बनाने को कटिबद्ध सेकुलर इतिहासकार विलियम जोंस को प्राच्यवादी ठहरा कर उसे न पढ़ने की सलाह देते रहे, उनका नाम लेने वालों का उपहास करते रहे, संभवत स्वयं भी उन्हें पढ़ा नहीं, और इसका रहस्य यह है कि यदि आपने विलियम जोंस के उन्हीं तर्कों को ध्यान से पढ़ा जिनसे उन्होंने ईरान को सर्वोपरि देश सिद्ध किया था तो आप ठीक उनसे उल्टे नतीजे पर पहुंचेंगे, और शीराजा बिखर जाएगा। इसके अतिरिक्त विलियम जोन्स ने भारतीय इतिहास का नकारात्मक चित्रण नहीं किया था, जो ये लगातार करते रहे हैं।