#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (6)
अरब में भारत
संस्कृत की तलाश में विलियम जोंस का अरब में भटकना पूरी तरह व्यर्थ नहीं गया। वहां संस्कृत भी मिली परंतु उससे अधिक भारत मिला, परंतु उस भारत को समझने में भी उन्हें कठनाई हो रही थी, क्योंकि भारत और अरब प्रायद्वीप के बीच एक चौड़ा समुद्र, या चौड़ी खाड़ी पड़ती थी, इसलिए व्यापार और समुद्री नौचालन आरंभ होने से पहले भारत से उसका किसी भी तरह जुड़ाव नहीं हो सकता था (Arabia, thus divided from India by a vast ocean, or at least by a broad bay, could hardly have been connected in any degree with this country, until navigation and commerce had been considerably improved। इसका भावार्थ यह जब अरब तक भारत के संपर्क में नहीं आ सकता था यूरोप से उसका कोई संबंध हो यह तो कल्पनातीत है।
इसलिए जो इस्लाम से पहले के अरब के धार्मिक विश्वास के विषय में वह स्वीकार कर चुके थे कि यह भारत से प्रेरित था, उसका भारत से प्रेरित होना जरूरी नहीं। इस समानता का भी वैसा ही समाधान संभव है जैसा संस्कृत, लातिन, ग्रीक आदि में पाई जाने वाली समानताओं और इन सभी में संस्कृत के अधिक पुराने होने के बावजूद उन्होंने सभी को किसी एक ही अज्ञात मूल से निकला सिद्ध किया था। अर्थात भारत से अरब के प्राचीन धार्मिक विश्वास में जो समानताएं दिखाई देती हैं उसका कारण यह हो सकता है कि दोनों ने अपने धर्म और विश्वास किसी तीसरे स्रोत से ग्रहण किए गए हों। इस सुझाव पर कोई यह प्रश्न कर सकता था कि यदि दोनों धर्म के मामले में दोनों किसी अन्य स्रोत से जुड़े थे तो ऐसा भाषा के मामले में भी होना चाहिए, जो देखने में नहीं आता। इसका जवाब भी उन्होंने तलाश लिया था, संपर्क मात्र आकस्मिक रूप में हुआ होगा (It is possible too, that a part of the Arabian Idolatry might have been derived from the same source with that of the Hindus; but such an intercourse may be considered as partial and accidental only)।
अधिक से अधिक वह यह मानने को तैयार हो जाते हैं भारत के धार्मिक विचार और विश्वास किसी तरह अरब समाज में प्रवेश पा गए होंगे :
We are also told, that a strong resemblance may be found between the religions of the pagan Arabs and the Hindus; but, though this may be true, yet an agreement in worshipping the sun and stars will not prove an affinity between the two nations: the power of God represented as female deities, the adoration of stones, and the name of the Idol WUDD, may lead us indeed to suspect, that some of the Hindu superstitions had found their way into Arabia…
परंतु वह स्वयं स्वीकार करते हैं कि नौचालन की दृष्टि से प्राचीन विश्व के अग्रणी देश भारत और यमन ही रहे हैं, यमन के माध्यम से ही भारत के प्राकृतिक उत्पाद और माल प्राचीन काल से ही यूरोप पहुंचते रहे हैं (as the Hindus and the people of Yemen were both commercial nations in a very early age, they were probably the first instruments of conveying to the western world the gold, ivory, and perfumes of India, as well as the fragrant wood, called àlluwwa in Arabick and aguru in Sanscrit, which grows in the greatest perfection in Anam or Cochinchina.)
सोलह साल की उम्र में प्रिंस कैंटमिर के जीवनवृत्त के एक पैराग्राफ से उन्होंने यह बदगुमानी पाल ली थी कि यमन में पीले भारतीय रहते थे, पर अब (बंगाल में पहुंच कर वह देख रहे थे कि भीरतीय तो पीले होते नहीं) उन्होंने वह पुरानी राय भी बदल दी, क्योंकि इसकी कोई तुक ही नहीं कि उस्मानी तुर्क यमन को भारत का हिस्सा मानेंगे (nor am I more convinced, than I was sixteen years ago, when I took the liberty to animadvert on a passage in the History of Prince KANTEMIR, that the Turks have any just reason for holding the coast of Yemen to be a part of India, and calling its inhabitants Yellow Indians.)
विलियम जोंस क्या मानते थे और और किस चीज को नकार रहे हैं इससे हमारा कोई मतलब नहीं, मतलब केवल इससे है कि वह कितना लड़खड़ाते हुए सोचते और लुढ़कने की स्थिति में संतुलन बनाने की किस तरह कोशिश करते हैं। यह उनके विचार हैं परंतु जिस तरह के विचार उन्होंने पहले बनाए थे वे इस बदले हुए विचार से अधिक सही थे। उस्मानी साम्राज्य में भी लोगों को यह विश्वास था कि यमन में भारतीय व्यापारी बसे हुए हैं।
जिस वजह से यमन को वह नौचालन में प्राचीन काल से भारत के अतिरिक्त अग्रणी मान रहे थे, वह अर्ध सत्य था। यदि उन्होंने बंगाल से बाहर पंजाब और सिंध तक की यात्रा की होती तो पाते भारत में पीत वर्ण लोग भी होते हैं और पश्चिम के साथ व्यापार में इन्हीं की अग्रता थी। दूसरे शब्दों में और नौचालन के मी क्षेत्र में भारत प्राचीन जगत का एकमात्र अग्रणी देश था।
विलियम जॉन्स स्वयं भी मानते थे की विज्ञान और यांत्रिक कला में यमन के लोग आगे बढ़े हुए थे परंतु उनके बंदरगाहों के गोदामों में मिस्र, भारत या ईरान का माल भरा रहता था, सो इस बात का कोई पक्का प्रमाण नहीं है कि नौचालन या उद्योग में भी वे दक्ष थे: The people of Yemen had possibly more mechanical arts, and, perhaps, more science; but, although their ports must have been the emporia of considerable commerce between Egypt and India or part of Persia, yet we have no certain proofs of their proficiency in navigation or even in manufactures.
और अरब में धार्मिक विचार के पीछे भी इसी तरह के संपर्क का हाथ हो सकता था, इस पर आगे हम कोई अन्य टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझते।
इसी तरह उनके इस विचार पर भी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे कि सुलेमान के समय से ही अरबों में कला और विज्ञान की ओर प्रवृत्ति नहीं रही है,
we know, from the time of SOLOMON to the present age, were by no means favourable to the cultivation of arts; and, as to sciences, we have no reason to believe, that they were acquainted with any…
भारत में विलियम जोंस ने लोगों से सुना था यमन में संस्कृत बोली जाती थी या संस्कृत बोलने वाले वहां थे, इस तरह की सूचनाएं अंग्रेजी शिक्षा के बाद हमारी सामाजिक चेतना से ही गायब हो गई। जोन्स इस की संभावना मान तो लोतो हैं पर सुझाना चाहते हैं इनका स्रोत कोई और होगा। उन्होंने यह तो नहीं बताया कि वह कौन सा होगा, परंतु अनुमान लगा सकते हैं कि उनके अनुसार यह वही देश हो सकता है जहाँ से संस्कृत भारत में आई थी। and if a story current in India he true, that some Hindu merchants heard the Sanscrit language spoken in Arabia the Happy, we might be confirmed in our opinion, that an intercourse formerly subsisted between the two nations of opposite coasts, but should have no reason to believe, that they sprang from the same immediate stock.
1784 में विलकिन्स को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा था,
Plato drew many of his notions (through Egypt, where he resided for some time) from the sages of Hindustán.
[“Thirteen Inedited Letters from Sir William Jones to Mr. (Afterwards Sir) Charles Wilkins”, Letters of Sir William Jones, 1784. ]
यदि वह खुले दिमाग से विचार करते तो समझ सकते थे इसी तरह किसी निकटवर्ती क्षेत्र में भारतीयों के होने के कारण यूरोप में संस्कृत का प्रवेश हुआ होगा।
विलियम जोंस मामूली सूचनाओं के आधार पर इतनी बेतुकी बातें कर लेते थे इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उनका यह मानना की बुद्ध इथोपिया में पैदा हुए थे वहां से उनका प्रभाव भारत की तरफ आगे बढ़ा।
though we have no trace in Arabian History of such a conqueror or legislator as the great SESAC, who is said to have raised pillars in Yemen as well know, that SA’CYA is a title of BUDDHA, whom I suppose to be Woden, since BUDDHA was not a native of India, and since the age of SESAC perfectly agrees with that of SA’CYA, we may form a plausible conjecture, that they were in fact the same person, who travelled eastward from Ethiopia,
और जिस तरह बुद्ध भारत में नहीं पैदा हुए थे, इथोपिया में पैदा हुए थे उसी तरह संस्कृत भारत की भाषा नहीं । लाल बुझक्कड़ के ऊंचे दिमाग में जो ख्याल घुस गया वह अगर यूरोप के काम का हुआ तो परम सत्य बन गया और हम सभी ने सोचे विचारे बिना इसे स्वीकार कर लिया और इसी के आधार पर आज तक अपने समाज, अपनी भाषा, अपने साहित्य, अपने इतिहास, अपनी संस्कृति, अपने धर्म, विश्वास और दर्शन को सिरफिरों के दिमाग से समझते चले आ रहे हैं। हम अपने लिए ही अजनबी हो गए हैं। किसी आघात से अपही स्गृति खो देने वाले व्यक्ति की तरह जिसका एक जमाने में फिल्मों में भरपूर उपयोग किया गया, इस मामले में उसी से जिसने यह आघात दिया पूछते हैं, सच बताओ हम कौन हैं ।