Post – 2019-10-02

#रामकथा_की_परंपरा(32)
राम का दूसरा निर्वासन

हम सीता के दूसरे वनवास की कथा से परिचित है। उत्तरकांड की यह उद्भावना बौद्ध मत में स्त्रियों के प्रवेश की अनुमति की प्रतिक्रिया थी। भारत में इससे पहले भी कभी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त न थे, परंतु इसके बाद उनके आत्म सम्मान और अधिकारों का जिस कठोरता से हनन किया गया वैसा पहले के इतिहास में नहीं दिखाई देता। इसके विस्तार में नहीं जाएंगे।

हम राम के एक निर्वासन से परिचित हैं जो राज्य के कारण कैकेई के प्रभाव में दिया गया था। परंतु बौद्ध मत के विरुद्ध रामायण को हथियार बनाने के प्रयत्न में राम का अतिमानवीकरण करते हुए अवतार बना दिया जाना मानवता से उनका निर्वासन था। इसकी ओर हमारी नजर नहीं जाती।

पहले निर्वासन का परिणाम था दक्षिण भारत का काया-पलट।

दक्षिण भारत में आहार संग्रही मनुष्यों का निवास उत्तर भारत की तुलना में यदि अधिक पहले से नहीं था तो लगभग एक ही समय में था। यदि उत्तर में सो(ह)न इंडस्ट्री (पाहन-उद्योग) थी तो दक्षिण में मद्रास (पाहन-उद्योग) और दोनों के अपने अटन क्षेत्र थे। सो(ह)न पाहन-उद्योग मध्य प्रदेश के गाेदावरी क्षेत्र तक पहुँचता था परंतु उससे आगे न बढ़ पाता था। भारत से बाहर इसकी पहुँच भूमध्यसागर तक थी। मद्रास पाहन उद्योग की पहुँच गोदावरी के उस सिरे तक थी जिससे आगे सो(ह)न पाहन-उद्योग नहीं बढ़ पाता था।

अभी तक आपको यदि अटवी का कोश लिखित अर्थ, जंगल ही मालूम हो तो अपने ज्ञान में सुधार करें, अटवी का अर्थ वह भौगोलिक क्षेत्र था जिसमें अनेक मानव समुदाय विविध मौसमों में आहार की सुलभता के अनुसार पर्यटन या परिक्रमा करते थे।

इनकी पहचान इनके पूरे विस्तार में पाए जाने वाले पुरापाषाणी हथियारों की समानता पर निर्भर करती है। इसलिए यदि सो(ह)न पाहन-उद्योग को किन्ही कारणों से नकारना भी पड़ जाए तो इन शिल्पगत समानताओं को नहीं नकारा जा सकता।

इसका अर्थ है उत्तर भारत जितना मध्य सागर तक के क्षेत्र से जुड़ा हुआ था, उसी तरह अपने ही देश के दक्षिणी भाग से जुड़ा नहीं था। और इसके कारण जहां भारत से लेकर भूमध्य सागर तक इतने कम समय में कृषि का प्रचार हो गया कि लगे सारा परिवर्तन एक छोटी अवधि में जादू के खेल से हो गया है, वहां दक्षिण भारत उसके हजारों साल बाद तक कृषि से अपरिचित रहा और यह मात्र संयोग नहीं है कि राम का दक्षिण क्षेत्र में कृषि संस्कृति के साथ पहली बार प्रवेश होता है और इस ऐतिहासिक सत्य को जो संभव है पुरानी राम कथा में प्रतीकात्मक रूप में बची रह गई हो, राम के ऐतिहासिक श्रेय से अवतारवाद में नष्ट कर दिया गया।