Post – 2019-09-16

#रामकथा_की_परंपरा(17)
वैदिक कवि-2

ऋग्वेद में ऐसे शब्दों की संख्या बहुत अधिक है जिनके और जिनसे संबंधित शक्तियों या सत्ताओ के रूप, रंग को इस तरह साकार बनाने का प्रयत्न किया गया है कि वे श्रोता को विचित्र लगें – अक्रविहस्त, अग्निजिह्वा, त्रिमूर्ध, बृहत्केतुं शतभुजी, दशभुजी, सप्तरश्मिं, सप्तशीर्ष, सप्तस्वसा, सप्तास्य, हरिवर्प, हिरण्यशृंग, हिरण्यशिप्राः हिरिशिप्रः हिरिश्मश्रुः हिरण्यशम्यं।

परंतु हमारा उद्देश्य यह दिखाना था कि उनकी रचनाएं अपने समय के शिल्पियों से किस सीमा तक प्रभावित हैंं और इसका ध्यान न रखने के कारण हड़प्पा की पुरासंपदा को समझने में बाधा पैदा हुई है। इसका केवल एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा, और साथ ही निवेदन करना भी जरूरी है कि यह पाठ मेरा है और हो सकता है कि कोई दूसरा अध्येता इसकी अधिक स्वीकार्य व्याख्या दे सके।

ऋग्वेद में अग्नि का एक दार्शनिक चित्रण किया गया है, जिसमें अग्नि के पार्थिव (अग्नि), मध्य- आकाशीय (विद्युत), और आकाशीय (सूर्य) तीनों रूपों को तीन शिरों के रूप में कल्पित करते हुए, एक तीन सिर वाले प्राणी के रूप में चित्रित किया गया है, और सात रस्सियों (रश्मियों) से बँधा बताया गया है। विलक्षणता यह है कि प्राणी तो एक है, उसे बाँधने के लिए एक रस्सी जरूरी है, यहां सात-सात रस्सियों से बांधा गया । यही उनका संपूर्ण (अनून) रूप कहा गया है। रश्मि शब्द में श्लेष है। अग्नि के पक्ष में यह सतरंगी किरणों का द्योतक है और पशु के रूप में उसे बाँधने वाली रस्सियों का :
त्रिमूर्धानं सप्तरश्मिं गृणीषेऽनूनमग्निं पित्रोरुपस्थे ।
निषत्तमस्य चरतो ध्रुवस्य विश्वा दिवो रोचनापप्रिवांसम् । 1.146.1

सायणाचार्य के सामने कोई संदर्भ नहीं था। उन्हें शब्दों के माध्यम से ही जोड़-तोड़ करते हुए अपनी व्याख्या देनी थी इसलिए उन्होंने यज्ञ को अग्नि के रूपक में समेटा। यज्ञ अग्नि है, यज्ञ विष्णु है , यह तो हम जानते ही हैं। तीन सवनों को उन्होंने यज्ञ का तीन शिर मान लिया। जाहिर है उनकी व्याख्या से हमें संतोष नहीं हो सकता। संदर्भ ग्रिफिथ के सामने भी नहीं था, पर उन्होंने अपनी ओर से कोई तीर-तुक्का भिड़ाने का प्रयास नहीं किया:
I LAUD the seven-rayed, the triple-headed, Agni all-perfect in his Parents’ bosom,
Sunk in the lap of all that moves and moves not, him who hath filled all luminous realms of heaven.

मैकाय को अपनी मोहेंजोदड़ो की खुदाई में एक सील मिली मिली जिसका चित्र हम कुछ पहले पोस्ट कर चुके हैं। मैकाय को वेद से इसकी पहचान तलाशने की जरूरत हो ही नहीं सकती थी क्योंकि वेद तो उन दिनों की समझ से बहुत बाद का और घसियारों का साहित्य था। इसलिए उनहोंने जो पाठ किया वह है: “a possible explanation of this unusual devices is that its owner may have sought the protection or assistance of three separate deities represented by the heads of these three animals” (Further Excavations, I, p. 333).
वी स्टेफैनी के 31 जुलाई 2014 की ब्लॉग पोस्ट जिससे ऊपर का चित्र और उद्धरण लिया गया है, लिखते हैं:
J.M. Kenoyer describes it as a “square seal with animal whose multiple-heads include three important totemic animals: the bull, the unicorn, the antelope. All three animals appear individually on other seals along with script, but this seal has no script. The perforated boss on the back is plain, without the groove found on most seals.” (Ancient Cities, p. 194).
वह दूसरों से अधिक जानकार पुराविद हैं, भारत को वह किसी दूसरे विदेशी की अपेक्षा अधिक निकटता से जानते हैं और अपने को भारतीय भी बताते हैं, क्योंकि उनका जन्म भारत में हुआ था और बचपन भारत में बीता था, वह हिंदी और उर्दू बोल और समझ सकते हैं, परंतु जब से यह विचार जोर पकड़ने लगा कि तथाकथित हड़प्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता है, इसी की भाषा और संस्कृति का प्रसार उस समय के ‘संसार’ में हुआ था, तब से उनका यह आग्रह बढ़ गया है कि वह पुरानी मान्यताओं को पुनर्जीवित करें।

वह कुछ समय पहले एक व्याख्यान में वह ऐसा ही प्रयत्न किया। बी. बी. लाल पने हाल में अनी अनेक पुस्तकों में हड़प्पा की पुरा संपदा को वैदिक स्वीकार किया है। तब से यह जरूरत बढ़ गई है। केनोयर की यह टिप्पणी यह सिद्ध किए जाने के बाद की है कि इन विचित्र लगने वाले प्रतीकों का वैदिक देवताओं से संबंध िसलिए उनसे इसकी अपेक्षा की जा सकती थी पर उन्होंने इससे बचते हुए अपनी व्याख्या दी है।

केनोयर इसके बाद भी एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि यह हर तरह की असुरक्षा से बचने के लिए मूल्यवान वस्तुओं के साथ बांधा जाता रहा होगा। अग्निः वै रक्षसां अपहन्ता। वे इस संभावना की पुष्टि करते हैं कि यह अग्निदेव की प्रस्तुति है ।