Post – 2019-09-07

#रामकथा_की_परंपरा (11)
खनन का तंत्र-1

हमारे जातीय विश्वास के अनुसार राम सीता तक पहुँचने के लिए सेतु का निर्माण करते है। इन्द्र श्री तक पहुँचने के लिए सुरंग का निर्माण करते है। सेतु बनाने की दक्षता नल और नील में है जो असुर हैं और राम के सहयोगी बन गए हैं; सुरंग खोदने का काम अगिरा करते हैं, जो भी आसुरी पृष्ठभूमि से आए हैं और देवसमाज की सेवा में तत्पर हैं, जिन्होंने उन्हें ऋषि का सम्मान और सोमपान का अधिकार दे रखा है।

उनके लिए विद्वान विशेषण का प्रयोग हुआ है। रामायण में विद्वान (वीर वानर लोकस्य सर्वशास्त्र विशारदः)) हनुमान कहे गए हैं । नल नील की सहायता के लिए बानर भालु है तो इन्द्र के साथ भी हनुमान के पितर मरुद्गण का यूथ है (तदिन्द्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिः एजति ।। 1.10.2) जो अंगिरसों के साथ पर्वतों के तोड़ने का काम करता है। वानरों के अतिरिक्त भालुओं (भल्लों) का दल है तो अंगिराें की सहायता और सुरक्षा और सहायता के लिए सैन्य बल। और जादुई शक्ति नल-नील में भी है और अंगिरसों में भी जो जादू और कूत्या के वेद के कर्ता है। एक से छूने से ही पत्थर पानी पर तैरने लगते हैं, दूसरे को हुंकार भरते हुए प्रहार करना पड़ता है, परंतु उनकी स्तुति से भी यह काम स्वयं इंद्र कर देते हैे (भिनद् वलं अंगिरोभिः गृणानः)।

पर यदि समुद्र में एक रेखा के रूप में दिखाई देने वाले रामसेतु को देख कर किसी को यह खयाल आया हो कि ये किसी चमत्कार से समुद्र के ऊपर तैरने वाले पत्थर हैं और इसके लिए नल-नील की कल्पना कर ली गई तो यह समझ में आता है। समुद्र के ज्वार भाटे को देखकर यह कल्पना कि किसी के प्रताप से समुद्र पीछे भी हट सकता है कवि कल्पना की परिधि में आता है, परंतु प्राकृत जगत में परिवर्तन श्रम से होता है और माया के दो रूप हैं। एक है बहुरूपियापन , जिसमें कहा गया है, इंद्र माया से तरह-तरह के रूप धारण करते हैं जिनके रथ में हजार अश्व जुते हुए हैं (इंद्र मायाभिः पुरु रूपं ईयते युक्ता हि अस्य हरयः शता दश) जाहिर है यहां हजार अश्वों से आशय किरणों से है इसलिए यहां इंन्द्र का सूर्य रूप है जिसमें प्रातः के रक्ताभ गोलक से तेज और ताप में वृद्धि और मध्याह्न के बाद ह्रास के अनुपात में अनेक रूप प्रकट होते हैं।

असुरों के मामले में इसका अर्थ बदल जाता है। वह आदिम समुदायों के जानवरों की बोली और छद्म आवरण धारण करके उनके निकट पहुंचने और फिर उनका शिकार करने की धोखाधड़ी से जुड़ा है। यह नाट्यकला के विकास में भी बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है।

ऋग्वेद मैं माया का दुहरा प्रयोग देखने में आता है। एक में खनिज भंडारों को छिपाने के लिए असुरों का पर्वत का रूप धारण करना। और इन्हीं पर्वतों का पार्श्व भाग या पंख काटकर खनिज भंडार निकालने को उनको अचल बना देने के रूप में कहानियां गढ़ी गई।

इंद्र जब मायावी का वध माया के द्वारा करते हैं तो उस माया को सायण विज्ञान या प्रज्ञान कहते हैं। यह माइनिंग या खनन विद्या की जानकारी से संबंध रखता है। रावण माया से विविध रूप धारण करता है, राम तो विष्णु के मायावी अवतार हैं जो उसका वध करते हैं।

रामायण में सीता हरण के प्रसंग में मायावी मृग का हवाला आता है जिसका वध राम करते हैं। ऋग्वेद में इंद्र उसका वध करते हैं (यत् ह त्यं मायिनं मृगं तमु त्वं मायया अवधीः, 1.80.7) यहां माया तकनीकी जानकारी बन जाती है।