#रामकथा_की_परंपरा (10+)
‘#सर्मन_ऑन_दि_माऊंट
क्या आप इसका अर्थ समझते हैं?
सच यह है कि ये धर्मोपदेश ईसा मसीह नहीं दे सकते थे, वहाँ वे शैलगृह और सभाकक्ष थे ही नहीं जहाँ श्रद्धालु या शिष्य गण उपस्थित होते। ये भारत में थे और केवल भारत में थे। ये उपदेश किसी एक जगह पर, केवत एक बार नहीं दिए गए थे। ये भौतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों की उपज हैं और इन्हें शिक्षा और दीक्षा के विविध माध्यमों से इस तरह दुहराया जाता रहा कि ये भारतीय मनीषा का अंग बन गए।
ठीक इसी तर्क से मूसा को कोह ए तूर (सिनाई) पर दस महादेशों का किस्सा सही नहीं है:
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इन दोनों की अंतर्वस्तु भारतीय है। वे शैलगृह भारत की विशिष्टता है। ये भी न तो ए्क झटके में मिले, न एक बार प्राप्त हुए। इन दोनों का सामी देशों में कभी पालन भी नहीं हुआ। कहा जा रहा है मातृ देवो भव, पितृदेवो भव और व्यवहार में मां बाप यदि ‘धर्मोदय’ से पहले हुए अथवा बाद में भी हुए पर उसे स्वीकार न किया तो शैतान की पकड़ में थे और नरक में ही गए या जाएँगे। यांत्रिक एकेश्वरवाद में इनका निर्वाह न तो संभव था न कभी निर्वाह हुआ।
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प्रश्न केवल खड़े पहाड़ को ऊपर, भीतर, पार्श्व से काट कर आवास, सभागार, मंदिर बनाने का नहीं है, जिनमें से कुछ, जैसे कैलाश मंदिर को देख कर विश्वास नहीं होता कि यह मनुष्य का काम है अपितु उससे भी आगे, इंजीनियरी के उस कमाल का है जिसमें समुद्र, नदी, नद, नगर, किसी के नीचे या पर्वत को भीतर मीलों सुरंग काट कर मार्ग बनाया जा रहा है, इसका हमारी जानकारी का सबसे पुराना प्रमाण बदख्शाँ की इन खुदाइयों से मिलता है और सबसे पुराना अभिलेखीय प्रमाण ऋग्वेद से।
वेदिक माइथालोजी के लेखक मैकडनल काफी माथापच्ची यह समझने के लिए करते हैं कि आखिर माजरा क्या है:
In various passages Angirasa are associated with Indra in piercing Vala and shattering his strongholds and releasing the cows. p. 64
These cows may represent the waters…or possibly the rays of the sun. 102
Nvagvas and Dashgvas praise Indra and broke open the stalls of the cows. 144
The PB (19.7) speaks of the cave, Vala, of the Asuras being closed by a stone.In several passages the word may have either the primary or personified sense. …
और फिर अपनी समझ की कमी को, ऋग्वेद की कमी मानकर बताते हैं अभी छवि पूरी तैयार नहीं हुई थी :
The transition to personified meaning appears in a passage ( 3.30.10) in which Vala is spoken of as stable (vraja) of cows and as opened (वि-आर) for fear before Indra strikes. That the personification is not fully developed is indicated by the action of indra and others, when they attack Vala, being generally expressed by bhid , ‘to pierce’, sometimes by dr, ‘to cleave’, or ruj ‘to break’, but not, as in the case of Vritra, by han, ‘to slay’. p. 160
जिस बात को इतने साफ ढंग से समझाया गया है, बताया गया है वल का भेदन किया जा रहा है, मैकडनल के शब्दों मे भी पियर्स किया जा रहा हैं, उसके भीतर बिल बनाया जा रहा है, उसे संदर्भ के अभाव में, या गलत संदर्भ को वास्तविकता पर आरोपित करने और उससे टस से मस न होने की जिद के कारण, समझने की सच्ची लगन और श्रम के बाद भी समझ नहीं पाते और अपनी नादानी को ही को सिद्धांत बना कर ऋग्वेद में ही खोट तलाशने लगते हैं।
आज हमारी दृष्टि जिन गुफाओ और शैल गृहों – अजंता, एलोरा, एलिफेंटा, कानेरी की गुफाएं – पर जाती है और जो खड़े पहाड़ों को काट कर बनाई गई है, वे दो-ढाई हजार साल से पुरानी नहीं हैं। इनमें कोई ऐसी नहीं है जो देखने पर विस्मित न करती हो । कैलाश मंदिर को देखकर आज की तकनीकी दक्षता के युग में हम विश्वास नहीं कर पाते हैं कि इसे मनुष्यों ने बनाया है। परंतु ताम्राश्म (chalcolithic) युग की की सीमाओं को देखते हुए पहाड़ पर 350 मीटर की चढ़ाई पर संगमरमर की मोटी परत काटकर निकाली गई स्रुरंगें, 450-500 मीटर की चढ़ाई बनाई गई सुरंगें, विशेषतः वह सुरंग जो 75 फीट लंबी है जिसके अंतिम सिरे पर एक विशाल गुफा सी बन गई है जिसकी चौड़ाई 10 मीटर, लंबाई 340 मीटर और ऊंचाई 25 मीटर है और जिसका खनन क्षेत्र 6 से 8 मीटर तक गहरा है, क्या अविश्वसनीय नहीं लगतीं?
कम से कम दो हजार साल तक, जिसमें कई शताब्दयों तक प्राकृतिक विपर्यय के कारण जीवन रक्षा की चुनौतियां इतनी भयावह हो चुकी थीं कि एक ऐसा समाज जिसका कुम्हार भी लिखना जानता था, उसके पंडित लोग भी अक्षर ज्ञान से वंचित हो गए, इस कौशल को किस रहस्यमय तरीके से बचा कर रखा गया की उचित संरक्षण और प्रोत्साहन मिलने पर यह आश्चर्यजनक की कृतियां उपस्थित हो गई, यह भी पारंपर्य भी कम आश्चर्यजनक नहीं है।
सफलता के समानांतर यदि विफलता की कहानियाँ भी दर्ज हों तो ही इतिहास का पूरा चित्र सामने आ सकता है। उन टोहपरक खुदाइयों पर ध्यान दीजिए, जो लगभग 20 से 50 मीटर लंबी डेढ़ से 3 मीटर गहरी और डेढ़ से 3 मीटर चौड़ी हैं, और जिन से खुदाई करने वाले को कुछ हासिल नहीं हुआ। यह उसी का विलाप है जो हमें ऋग्वेद में सुनाई देता है:
अधा मन्ये श्रत्ते अस्मा अधायि वृषा चोदस्व महते धनाय ।
मा नो अकृते पुरुहूत योनौ इन्द्र क्षुध्यद्भ्यो वय आसुतिं दाः ।। 1.104.7
मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नो प्रिया भोजनानि प्रमोषीः ।
आण्डा मा नो मघवन् शक्र निर्भेत् मा नो पात्रा भेत् सहजानुषाणि ।। 1.104.8
भूरिदा भूरि देहि नो मा दभ्रं भूर्या भर ।
भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ।।
भूरिदा ह्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर हन् ।
आ नो भजस्व राधसि ।। 4.32.20-21
देवोदेवः सुहवो भूतु मह्यं मा नो माता पृथिवी दुर्मतौ धात् ।। 5.43.15