रीतियां, रूढ़ियां और विश्वास (3)
असली और नकली का भेद
इस्लाम से पहले किसी अन्य समाज की ही तरह अरब समाज में भी किसी बच्चे को पुत्र बना लेने के बाद उसके साथ किसी तरह का भेद नहीं किया जाता था। मोहम्मद ने उसी का निर्वाह करते हुए, अपने पुत्रों के इंतकाल के बाद जईद काे गोद लेते हुए, अपनी वल्दियत प्रदान करते हुए उसका नाम जईद बिन मोहम्मद कर दिया था। अब इस नई जरूरत के कारण उससे न केवल तलाक दिलवाया गया, बल्कि उसके रक्त संबंध वाले पिता का नाम उसके साथ जोड़ा गया। अब वह दुबारा हरिस के पुत्र हो गए (Zaid was no longer spoken of as the son of Muhammad, but as Zaid ibn Haritha.)
कारण, पैगंबर होने के बाद मोहम्मद किसी के पिता नहीं रह गए। ”Muhammad is not the father of any of your men, but (he is) the Messenger of Allah, and the Seal of the Prophets: and Allah has full knowledge of all things.— Sura al-Ahzab Quran 33:40 (Translated by Yusuf Ali)
परंतु नकली मुसलमान, मुनाफिकून, पीठ पीछे इस घटना को लेकर एक दूसरे से शिकायत करने लगे।
[Al-Tabari states that Q33:40 was revealed because “the Munafiqun made this a topic of their conversation and reviled the Prophet, saying ‘Muhammad prohibits [marriage] with the [former] wives of one’s own sons, but he married the [former] wife of his son Zayd.'”]
अब पुत्र और पुत्री की परिभाषाएं भी बदलनी जरूरी हुईं। अब जो विधान हुए निम्न प्रकार थे :
1. पुत्र और पुत्री केवल अपनी विवाहिता से उत्पन्न संतान को माना जाएगा।
2. गुलाम की हर चीज पर मालिक का अधिकार होता है इसलिए उसकी पुत्री, पुत्र के साथ, जो चाहे कर सकता है।
3. रखैल, या गुलाम की पत्नी, पुत्री से संबंध रखने पर उससे उत्पन्न पुत्री से कोई आदमी सहवास कर सकता है। दूसरे सभी समाजों में इसे वर्जित माना जाता है। इनसेस्ट या पाप कर्म माना जाता है। केवल इस्लाम में ऐसा संबंध वैध माना जाने लगा। इसका एक परिणाम यह कि यदि कोई मुसलमान ऐसी विधवा से शादी करता है जिसकी पुत्री भी साथ में है, तो उससे यह दूसरा पिता सहवास कर सकता है, और कभी कभी जब इस तरह की घटनाएं सुनने में आती हैं तो हिंदुओं की समझ में नहीं आता, परंतु इस्लाम में ऐसा करना गुनाह नहीं है।
4. कोई मुसलमान किसी लड़के या लड़की को गोद ले सकता है परंतु इसके बाद इसे गोद लेना नहीं माना जा सकता। अब इनको दत्तक पुत्र की जगह पालित बालक या बालिका ही माना जा सकता है। इनके बड़े होने पर इनके साथ यौन संबंध को अनैतिक नहीं माना जा सकता।
5. इनको पालक पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। इसका हिस्साअपने जायज पिता की संपत्ति में ही मिलेगा।
विचित्र और दूसरों के लिए वर्जित और अनैतिक लगने वाले इंतजामों को कोई चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि ऐसा अल्लाह के हुक्म से हो रहा हैः It is not fitting for a Believer, man or woman, when a matter has been decided by Allah and His Messenger to have any option about their decision: if any one disobeys Allah and His Messenger, he is indeed on a clearly wrong Path,
— Sura al-Ahzab Quran 33:36 (Translated by Yusuf Ali)
हिजाब
सामान्य व्यवहार में एक पुरुष और एक स्त्री का संबंध ही पारस्परिक विश्वास की रक्षा कर सकता है। किसी अन्य की उपस्थिति के साथ, वह वास्तविक हो या संदिग्ध, कलह और अपराध आरंभ हो जाते हैं। अनेक पत्नियों का हरम बसाने पर जो भीतरी कलह और भटकाव आरंभ होता है उसकी कहानियां किसी को पता नहीं चल सकती। मोहम्मद साहब के हरम में संख्या एक समय में नव-दस तक पहुंच चुकी थी। जिस मामले में स्वयं पैगंबर संयम नहीं बरत सकते थे उसमे उनके अनुयाई भी उन्हीं की राह पर चलें, यह स्वाभाविक था और इसलिए मोहम्मद साहब के हरम के लिए खतरा था।
उमर बिन खत्ताब ने शिकायत की, अल्लाह के पैगंबर, आपके घर में चरित्रवान इंसानों के अलावा चरित्रहीन लोग भी आपकी बीवियों से रब्त-जप्त रखते हैं। आप किसी तरह की रोक टोक क्यों नहीं रखते। [Umar bin Al-Khattab said: `O Messenger of Allah, both righteous and immoral people enter upon you, so why not instruct the Mothers of the believers to observe Hijab’ Then Allah revealed the Ayah of Hijab.” 2:125 And I said, `O Messenger of Allah, both righteous and immoral people enter upon your wives, so why do you not screen them’ Then Allah revealed the Ayah of Hijab.]
यहीं से आरंभ होती हैं पाबंदियां और बंधन। ऐसे मामलों में सहारा भी अल्लाह का ही रह जाता था:
O wives of the Prophet, you are not like anyone among women. If you fear Allah, then do not be soft in speech [to men], lest he in whose heart is disease should covet, but speak with appropriate speech. 33:32.God desires only to put away from you filth, O Folk of the House, and to make you completely pure.33.33
पता नहीं उन कालों में यह अर्थ विस्तार हुआ था या नहीं, कि असाधारण होने के कारण वे सभी मुसलमानों की माताएं हैं। परंतु यह बंधन भी किस काम का था जब रक्त संबंध वाली मां, और दूसरी माताओं में भी भेद किया जा सकता था, जैसे गोद लिए पुत्र और रक्त संबंध वाले पुत्र में किया जाता था।
जैनब के साथ विवाह के बाद इसके नमूने भी सामने आने लगे थे। यदि वह स्वयं उसकी सूरत देखकर होश गवां बैठे थे तो दूसरे तो उस जमाने से लेकर आज के जमाने तक उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। उनको तो ऐसा करना ही था। मैं नीचे की टिप्पणी का अनुवाद नहीं करना चाहता। व्याख्या व्याख्या होती है। उसमें थोड़ा बहुत हेरफेर विचारक की अपनी समझ के अनुसार हो सकता है परंतु किसी को प्रमाण बनाकर उसका अनुवाद करने चलें तो अपराध दूना हो जाता है:
Al-Bukhari recorded that Anas bin Malik, may Allah be pleased with him, said: “When the Messenger of Allah married Zaynab bint Jahsh, he invited the people to eat, then they sat talking. When he wanted to get up, they did not get up. When he saw that, he got up anyway, and some of them got up, but three people remained sitting. The Prophet wanted to go in, but these people were sitting, then they got up and went away. I came and told the Prophet that they had left, then he came and entered. I wanted to follow him, but he put the screen between me and him. Then Allah revealed,
(O you who believe! Enter not the Prophet’s houses, unless permission is given to you for a meal, (and then) not (so early as) to wait for its preparation. But when you are invited, enter, and when you have taken your meal, disperse…)” Al-Bukhari also recorded this elsewhere. It was also recorded by Muslim and An-Nasa’i. Then Al-Bukhari recorded that Anas bin Malik said: “The Prophet married Zaynab bint Jahsh with (a wedding feast of) meat and bread. I sent someone to invite people to the feast, and some people came and ate, then left. Then another group came and ate, and left. I invited people until there was no one left to invite. I said, `O Messenger of Allah, I cannot find anyone else to invite.’ He said,
«ارْفَعُوا طَعَامَكُم»
(Take away the food.) There were three people left who were talking in the house. The Prophet went out until he came to the apartment of `A’ishah, may Allah be pleased with her, and he said,
«السَّلَامُ عَلَيْكُمْ أَهْلَ الْبَيْتِ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُه»
(May peace be upon you, members of the household, and the mercy and blessings of Allah.) She said, `And upon you be peace and the mercy of Allah. How did you find your (new) wife, O Messenger of Allah May Allah bless you.’ He went round to the apartments of all his wives, and spoke with them as he had spoken with `A’ishah, and they spoke as `A’ishah had spoken. Then the Prophet came back, and those three people were still talking in the house. The Prophet was extremely shy, so he went out and headed towards `A’ishah’s apartment. I do not know whether I told him or someone else told him when the people had left, so he came back, and when he was standing with one foot over the threshold and the other foot outside, he placed the curtain between me and him, and the Ayah of Hijab was revealed.” This was recorded only by Al-Bukhari among the authors of the Six Books, apart from An-Nasa’i, in Al-Yaum wal-Laylah.[The Quran: Commentaries for 33.53, Al Ahzab (The allies)]
औरतों के लिए भी तीन किलेबंदियां, एक दीवार की, न वे बाहर निकल सकती थीं, न कोई दूसरा पति की इजाजत के बिना घर में घुस सकता था। दूसरी खुदाई आदेश की। तीसरी शोभा और प्रतिष्ठा के लिए अपनाए गए नकाब की। इस्लाम में औरत बहुत आजाद है। वह अपनी बेड़़ियां खुद चुन सकती है। यदि इतना छोटा सा काम भी वह न संभाल पाई तो उसके लिए बेड़ियों का चुनाव पुरुषों को करना ही होगा।