Post – 2019-06-27

आला हजरत

राजनीति और इस्लामी परंपरा का खेल मुहम्मद साहब के मदीना जाने के निर्णय के साथ ही आरंभ हो जाता है । पहली बार उन्हें मदीना जाने के लिए निमंत्रित करने के लिए 12 आए थे, उन्होंने जो करार किया था उसमें मुहम्मद साबब को पैगंबर मानना और ईमानदारी, दया, दान आदि नेतिक आचारों को स्वीकार करने का प्रावधान था। “a formal pledge of allegiance at Muhammad’s hand, promising to accept him as a prophet, to worship none but one God, and to renounce certain sins such as theft, adultery, and murder. This is known as the “First Pledge of al-Aqaba.” (विकी) इस नैतिकता के कारण उसे बाद में जनाना करार की सज्ञा दी गई।

दूसरी बार जब 73 पुरुष और दो महिलाएं मुहम्मद को मक्का ले जाने का अनुरोध लेकर उनके पास पहुंचे और उन्होंने एक दूसरे की रक्षा के लिए प्राण निछावर करने की बात की तो यह उनके सोच में एक नया मोड़ था । इससे पहले गलत आचरण करने वाले को दंड देने वाला अल्लाह था, इन्सान द्वारा बदले की कार्यवाई करते हुए जान लेने या जान देने का विचार नहीं आया था। यहां से जिहाद का आरंभ होता है। ‘Yes, by Him Who sent you with the truth (as a Prophet), we will protect you like we protect ourselves and families.’ Therefore, the Prophet (peace be upon him) took his pledge. Al-Baraa continued, ‘By Allah, we are sons of war, and the weapons of war are like toys in our hands; we have inherited this from our forefathers.’
जो लोग कहते हैं जिहाद दो तरह का होता हो, एक अपनी कमजोरियों के विरुद्ध और दूसरा इस्लाम या मुसलमानों की रक्याा के लिए वे हिंदुों को पाठ पढाते हैं, असलियत पर परदा डालते हैं। अक़बा का पहला करार जिसमें आत्मशुद्धि का विधान था वह जिहाद की कोटि में ही नहीं आता। इसे इस्लाम के अधिकारी विद्वान इब्न इशहाक़ की इबारत में रखना चाहेंगे:
The apostle had not been given permission to fight or allowed to shed blood before the second ‘Aqaba.
This second pledge of ‘Aqaba introduced the concept of jihad. ( ibn Ishaq:Sirat Rasul Allah. (A. Guillaume, Trans.) Karachi: Oxford University Press, p208.) cited in Unravelling Islam.com.

मक्का में मुसलमानों की संख्या अधिक नहीं थी। इस्लामीकरण अभियान के छठें साल में उमर इब्न उल खत्ताब के बाद से इस्लाम की स्वीकार्यता में विशेष प्रगति नहीं हुई थी।

अब पैगंबर के सुझाव पर वे सभी मक्का छोड़कर भागने लगे, इससे पहले भी उनको अपने विश्वास की रक्षा के लिए , अबीसीनिया जाना पड़ा था, जिसे पहली हिजरत कहा जाता है ।

दूसरी हिजरत में , अपना मक्का का अपना घर-बार छोड़ कर मदीना जाने की कोशिश में सभी सीधे मदीना नहीं पहुंच थे। हिजरत अकेले मुहम्मद ने नहीं इन सभी ने की थी। वे मक्का से तर-वितर हो गए थे पर सभी मदीना नहीं पहुंच पाए थे, उनका आना मुहम्मद साहब के मदीना पहुंचने के बाद भी जारी रहा। मजहब देश से अधिक प्रिय है, इसकी रक्षा के लिए देश छोड़ा जा सकता है, यहां से जुड़ी है यह सोच कि मुसलमान का देश नहीं होता, केल दीन होता है। यह अधूरा कथन है। मुसलमान के मां, बाप, भाई कोई नहीं होता, केवल दीन होता है, यह समझ भी इसी हिजरत की देन लगती है। अपने समसे खैरख्वाह चचा अबू तालिब से इस्लाम न कबूल करने के कारण मुहम्मद अल्लाह से उनके लिए दुआ करते रहे, पर बाद में उनको जहन्नुम का आग के हवाले कर बैठे।

मुहाजिरों के दुख, त्याग और अपने प्रति निष्ठा के कारण मदीना में सामाजिक स्तरभेद में पहला स्थान मुहाजिरों का था। दूसरा अंसरों का, कहें ऐसे लोगों का जो मदीना के निवासी थे, परंतु समय रहते, अर्थात् बलप्रयोग आरंभ होने से पहले से इस्लाम कबूल कर चुके थे। तीसरा नाममात्र के मुसलमानों का स्तर था जो मुसलमानों की संख्या बढ़ने के साथ इस्लाम न कबूल करने वाले अरबों पर किए जाने वाले अत्याचार के कारण या इसके अंदेशे से इस्लाम कबूल कर बैठे थे। वे दिखावे के लिए मुसलमान थे पर अपने पुराने रीति रिवाज छोड़ने को तैयार नहीं थे और इसलिए जिन पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता था और जो मौका पाकर विश्वासघात भी कर सकते थे। इस्लाम में सभी एक समान हैं, यह एक भ्रम है। सामाजिक स्तरभेद इसके साथ ही आरंभ हो गया था। आगे कुछ और कसोटियाँ जुड़ती गईं।

यदि आपको यह समझने में कठिनाई होती रही हो की विभाजन के बाद पाकिस्तान में जाने वाले मुसलमान अपने को मुहाजिर क्यों कहते थे और पाकिस्तान पर वहां के निवासियों से ऊपर अपना हक क्यों जताते थे तो इसका उत्तर यहां मिलेगा। वे पाकिस्तान घोषित किए गए भू भाग से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले हिंदुओं की तरह शरणार्थी नहीं थे। उन्होंने हिजरत की थी , इसलिए मुहाजिर थे और इस्लामी नियम के अनुसार स्थानीय लोगों से भी ऊपर मुहाजिरों का अधिकार होता है, इसका विधान हजरत मोहम्मद कर चुके थे।

पाकिस्तान के पुराने भू भाग में पहले के सभी निवासियों को इनके पधारने के बाद, अपने घर में रहते हुए भी, बेघर बार होने की पीड़ा क्यों सहनी पड़ी, और पाकिस्तान के आंतरिक विक्षोभ की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका उत्तर भी यहीं मिलेगा। भारत से पाकिस्तान गए मुसलमान मुहाजिर हैं, पहले दर्जे के नागरिक, पाकिस्तान के पुराने मुसलमान अंसर हैं, दूसरे दर्जे के मुसलमान।

परंतु आप लाख चाहे तो, मनमोहन सिंह की नालायकी के कारण सोनिया नियंत्रित कांग्रेस के इस फार्मूले का उत्तर नहीं पा सकते कि भारत की परिसंपत्तियों पर सबसे पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। पूरे इतिहास में इतनी उल्टी सोच वाला कोई राजनेता तलाशे न मिलेगा।