Post – 2019-06-25

सूत्रवत

1. जो लोग आत्म निरीक्षण नहीं कर सकते, आलोचना नहीं झेल सकते, उन्हें किसी की आलोचना करने का अधिकार नहीं है।

2. जो लोग उन किताबों की बात करते हैं, जो किसी भिन्न देश-काल में, किन्ही व्यक्तियों के अनुभव पर, उनकी सही या गलत समझ का निष्कर्ष होती हैं, वे अपने समय को, इसकी समस्याओं को, समझने में ही नहीं, देखने में भी भूल कर सकते हैं। वे उन कथनों का मर्म भी नहीं समझ पाते जिनको दोहराना उनकी आदत बन चुकी होती है। ऐसे लोगों को ज्ञान की गठरी का बोझ ढोने वाली खूटी की संज्ञा दी गई। स्थाणुरयं भारहारः किलाभूत। लगता है ऐसे लोगों से बहुत पुराने समय से चिंतकों का पाला पड़ता रहा है ।

3. चिंतक, अपने समय की समस्याओं को समझने के लिए पुरातन ज्ञान के सार्थक अंशों का उपयोग करता है। स्थाणु उस जगह से टस से मस नहीं होता, और रटे हुए सूत्रों के अनुसार यथार्थ को ही बदल कर अपनी स्वार्थ सिद्धि करना चाहता है, और पूरे समाज के लिए असाध्य समस्याएं पैदा करता चला जाता है।

4. ऐसा व्यक्ति, अपने समाज के लिए, अपनी समस्त ज्ञान संपदा के होते हुए भी व्याधिग्रस्त की तरह होता है और वह भी ऐसे व्याधिग्रस्त की तरह जिस के संपर्क में आने पर व्याधि का संक्रमण होता है ।

5. जिस यथार्थ को मैं देखता हूं उसमें अपने को हिंदू कहने वाले, हिंदू रीति-रिवाज से अपने सभी संस्कार करने वाले या करने की इच्छा रखने वाले, जब अपने विवाह में दूसरे हिंदुओं की तरह घोड़ी पर सवार होकर निकलते हैं तो उन पर हमला कर दिया जाता है। उनको अपमानित किया जाता है। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, रोज देखने और सुनने में आते रहते हैं जिनसे हम सभी परिचित हैें, इसलिए उनकी तालिका प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं । इतनी यातना सह कर भी वे अपने को हिंदू कहते रहे, हिंदुत्व की रक्षा में इससे बड़ा बलिदान किस सवर्ण ने दिया है?

6. बंदी बनाए गए , अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे, कोई भी यातना सह लेंगे, इस कठिन व्रत का निर्वाह करने वाले, इस व्रत के कारण, यातना देकर भंगी बना दिए गए राजपूतों से किस तरह का व्यवहार किया जाता है। हिंदुत्व की रक्षा के लिए किस ब्राह्मण ने इससे बड़ा त्याग किया- पूरे इतिहास में, पूरे पुराण में?

6. अपने धर्म की रक्षा के लिए इतना बड़ा बलिदान देने वालों को जो सम्मान मिलना चाहिए था ब्राह्मणवाद के कारण उन्हें नहीं मिल पाया और जिस हिंदुत्व की रक्षा के लिए उन्होंने इतना बड़ा बलिदान दिया, वह क्या वर्णवाद था? वह वही मूल्यव्यस्था थी जिसे सनातन मूल्यव्यवस्था कहा जाता है जिसका वर्णवाद/ब्राह्मणवाद से सनातन विरोध है।

7. मैं संवादविमुखता के विषाक्त परिवेश में संवाद जारी रखना चाहता हूं, विवाद को कम करने के लिए, समझ को दुरुस्त करने के लिए।

8. यह एक ऊँची कक्षा है। इसमें प्रवेश की योग्यता जिनमें नहीं है उन्हें स्वयं बाहर हो जाना चाहिए, अन्यथा अपनी आशंकाएं बिंदुवार और अपने सुझाव हर मामले में तर्क का और प्रमाण के साथ, अथवा नम्र जिज्ञासा के रूप में रखना चाहिए। अवांछित लोगों की अहमहमिका से विचारविमर्श प्रदूषित होता है।