इलहाम की इस्लामी अवधारणा
श्रद्धालु और धर्मांध व्यक्तियों के लिए असंभव कुछ नहीं है। जिस बात पर पहले से विश्वास किया जाता है, जो कुछ उनके शास्त्रों, पुराणों और धर्म ग्रंथों में लिखा है वह सत्य है। यदि वह किसी को गलत लगता है, तो गड़बड़ी उसके दिमाग में है।
इस इकहरी सोच के लिए किसी और को दोष देने से पहले अपने इतिहास को ही देंखें तो किसी से शिकायत करने का मौका न रहेगा। आदमी के तीन (त्रिशिरा), चार (चतुरानन), पांच (पंचानन), छह (षडानन). दश (दशानन) मुख हो सकते हैं, चार भुजाएं (चतुर्भुजा, आठ भुजाएं (अष्टभुजा), दश भुजाएं (दशभुजा), हजार भुजाएं (सहस्रबाहु), हो सकती है। यह तो है महज बानगी है।
दूसरों पर हंसने से पहले आईना जरूर देखना चाहिए। यह दूसरी बात है कि इन विचित्रताओं का भारत में एक तार्किक आधार है और इसलिए एक ओर इन पर आंख मूंदकर विश्वास करने वाले लोग हैं, इन प्रतीकों का साहित्य में, कला में उपयोग करने की छूट है, दूसरी ओर इन पर अविश्वास करने की, इनकी आलोचना करने की छूट है, इस आधार पर बीज सत्य तक पहुंचने की छू़ट है, इसलिए ये अनर्गलताएं हमारी जिज्ञासा को खूराक देती हैं। हमें बंद दिमाग का समुदाय होने से बचा लेती है। सामी मजहबों में यह रास्ता बिल्कुल बंद कर दिया गया। बंद दिमाग जिज्ञासा का दरवाजा बंद करने से पैदा होता है ।
कोश ग्रन्थों में इलहाम का अर्थ 1. ईश्वर का शब्द या वाणी 2. देववाणी; आकाशवाणी 3. आत्मा की आवाज़ 4. ईश्वरीय ज्ञान या प्रेरणा 5. आत्मिक दृष्टि मिलता है। इनमें से पहले दो इस्लाम के बाद जोड़े गए नए अर्थ हैं जिनका बाद के उन अर्थों से मेल नहीं बैठता, जो इस शब्द के साथ बाद में जुड़े। हम कह सकते हैं कि इलहाम शब्द इस्लाम के साथ पैदा नहीं हुआ। इसका पुराना अर्थ, इस्लाम के बाद बदल दिया गया। कोशों में हम दोनों को एक साथ पाते हैं जबकि दोनों में कोई समानता नहीं। पुराना अर्थ लगभग वही है जिसे मैं समझता था, लेकिन एक मजहबपरस्त मुसलमान के लिए इसका अर्थ यही नहीं है।
मुझे कई बार पूर्वाभास होता है, जिसमे किसी कार्य का परिणाम पहले ही पता चल जाता है। इसके बाद भी मैं मानता हूं कि जिस दिन इस पर विश्वास करके अपना प्रयत्न छोड़ दूंगा, उस दिन मैं जड़ हो जाऊंगा, इसलिए उस काम को करता अवश्य हूं। कोई कहना चाहे तो मेरे हठ को ही जड़ता कह सकता है, ‘जब बार बार के अनुभव (प्रयोग) से जानते हो कि ये पूर्वाभास गलत नहीं होते तो अपने श्रम और धन की तो बचत कर सकते थे!’
इसमें कारण और कार्य का संबंध न जुड़ पाने के कारण इस पर विश्वास होते हुए भी, इसे मान नहीं पाता। यदि कोई साथ हुआ तो उसे यह बताने का लोभ संवरण नहीं कर पाता कि होना क्या है। साथ जो भी हो, उसे अपने अनुभव का गवाह बनाना चाहता हूं।
मैं अपने एक मुस्लिम मित्र के साथ किसी अधिकारी से, पहले से समय ले कर, मिलने जा रहा था। गाडी़ वह चला रहे थे। बीच रास्ते में मुझे पूर्वाभास हुआ। मैंने परिणाम बताने से पहले भूमिका बांधते हुए कहा, “कभी कभी मुझे इलहाम होता है… इतना सुनते ही उनका चेहरा इस तरह तमतमाया और ह्वील पर हाथ कस गया कि लगा वह गाडी पर अपना नियंत्रण खो देंगे। बहुत मुश्किल से उन्होंने अपने को संभाला। बोले कुछ नही। कुछ देर तक हम दोनों खामोश रहे। यह समझने में उन्हें कुछ समय लगा कि मेरा इरादा क्या था। सुस्थिर होने पर मैंने बताया कि क्या होने वाला है और ठीक वही हुआ भी, पर हममें से किसी ने इस पर बाद में बात न की।
यह पहला अवसर था जब मुझे पता चला कि इलहाम का जो अर्थ मैं जानता था वह गलत है। कोश ग्रंथों में जो अर्थ मिलता है वह सही नहीं है या अंतर्विरोधी है।
इलहाम अंतरानुभूति नहीं है, यह बाहर से आता है। यह पहली बार मुहम्मद साहब को आया था और उसके बाद न तो किसी दूसरे को आया न आ सकता है। यदि कोई व्यक्ति उसका दावा करता है तो कुफ्र करता है। इसका अंतरात्मा से कोई संबंध नहीं। इसे प्राप्त करना मुहम्मद साहब के वश की बात नहीं थी। एक दौर ऐसा था जब वह इससे डरते थे। लगभग तीन साल का ऐसा दौर भी आया जब वह इसके लिए बेचेन रहते थे कि आता क्यों नहीं. फिर भी न आया।
यह एक जटिल अवधारणा है। भूतों प्रेतों की कहानियां अरब जगत में पड़ोसी देशों की तरह प्रचलित थीं। मुहम्मद को जिहाद की अनुभूति प्रेतावेश के रूप में हुई। जिब्रील फरिश्ता इंसानी वेश में हाजिर हुआ था। मोहम्मद को लगा यह कोई प्रेत है। उसने उनसे वह आयत पढ़ने को कहा जो कुरान की पहली आयत बनी। वह नहीं पढ़ पाए तो उसने उन्हें इस तरह दबोचा कि लगा वह पूरी तरह से खाली हो गए हैं और फिर वही पाठ दुहराने के कहा और तीन बार यही दोहराया गया। इसे हम एक इतिहासकार के शब्दों में रखना चाहेंगे और स्थानाभाव के कारण इसका अनुवाद करने का भार पाठकों पर छोड़ना चाहेंगे:
the first revelation came in the Mount of Hira. When Gabriel came and said, ‘Recite, His Lordship answered, ‘I am not a reciter’. Gabriel squeezed him so hard that he thought, his death was near, And again said, ‘Recite.’ On receiving the same answer, The the Angel again pressed the body of his holy and prophetic Lordship. thrice this was done and thrice the command was given. …
When Muhammad awoke from his trance, he was much alarmed. Then Khadija, Knowing what had happened, And hearing him say that he feared, that he was mad, …
Professional Mcdonald (Religious attitude life in Islam, p.33 cited by Sell p.30 ) says that he was subject to fits of some kind, And be open to no doubt. that he was possessed by a jinn ….. was his first thought, and gradually Did he come to the conviction that this was divine inspiration, and not diabolical obsession. … Muir Speak speaking of Muhammad’s ecstatic period, says: ‘Whether they were simple reveries of profound meditation, or swoons connected with a morbid excitability of the mental or physical conditions – or in fine were connected with any measure of supernatural influence – would be difficult to determine.’
यहां तीन बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहली यह कि इलहाम को प्रेतावेश, ज्ञानावेश, मनोरुग्णता, या सोचे समझे फरेब के बीच कहीं रखा जा सकता है। मोहम्मद साहब को स्वयं यह पता नहीं था कि उनके साथ शैतान मनुष्य का वेश बनाकर, अपना खेल खेल रहा है, या उन्हें अल्लाह की ओर से संदेश मिल रहा है। विक्षिप्तता, भ्रामक प्रतीति और आत्मनिर्देशन के बीच सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। इलहाम हैल्युसिनेशन (भ्रांति) है, या प्रत्यक्षीकरण यह तय करने में इस्लामी पुराण साहित्य हमारी सहायता नहीं करता।
यदि बहुत पहले से मुहम्मद साहब को पैगंबर बनाने का आयोजन चल रहा था, तो इस अनुभव को उस योजना का हिस्सा माना जाए, या वास्तविकता इस पर विचार किया जाना चाहिए था। परंतु इसकी गुंजाइश सामी मजहबों में ही नहीं, पूरे भक्ति साहित्य में नहीं है।
प्रसंग वश याद दिला दें कि इलहाम के समय वह उत्तेजित हो जाते थे, उनके चेहरे पर मानो खून सवार हो जाता था, जिसे एक श्रद्धालु ने उषा की लालिमा के रूप में कल्पित किया है और जिसके कारण उनके चेहरे से नूर झरने की बात की जाती है। मुहम्मद साहब का चित्र तो बनाया नहीं जा सकता, परंतु दूसरे देवप्रतिम पुरुषों के सिर के पीछे दिखाया जाने वाला आभामंडल उसी की देन है। यह राम, कृष्ण या बुद्ध के साथ नहीं मिलेगा, परंतु नानक जी, कबीर दास और सांई के अंकन के पीछे मिल सकता है।