Post – 2019-05-21

जुगाली

1. अजीब बात है, हर आदमी गाली दूसरों को देना चाहता है, किसी से पाना नहीं चाहता। इसमें केवल एक अक्षर के जुड़ जाने के बाद किसी से साझा नहीं करना चाहता, अकेले तब तक चूसता चुभलाता रहता है जब तक वह गायब ही न हो जाए।

2. क्या आपने गौर किया है कि जागते हुए आदमी दुनिया को गाली देता रहता है और बंद या खुली आँखों का सपना देखते हुए जुगाली करता रहता है?

3. क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि यह दुनिया जो समस्त ब्रह्मांड के सभी ग्रहों और नक्षत्रों में अनुपम है, उसको ‘समझदार’ लोग कोसते हैं। मानव जीवन जो भाग्यवान लोगों को बड़े भाग्य से मिलता है, अभागे ‘समझदार’ लोग उसे दुखों की खान बताते हुए उससे मुक्ति पाने के लिए जीवन भर साधना करते रहते हैं और इसे पाकर भी व्यर्थ कर देते हैं?

4. बुद्धिमान आदमी वह है जो न जीना चाहता है न किसी को जीने देना चाहता है।

5. बुद्धिमान आदमी स्वयं तो कल्प कोटि वर्ष तक जीना चाहता है। दूसरों का जीना मुश्किल कर देता है।

6. इतनी लंबी आयु पाने के लिए उसको असंख्य लोगों की जिंदगी छीननी पड़ती है – या तो वह जिंदा रहे और उसके अनुयायी मरते रहें. या सभी जिंदा रहे हैं, और उसकी उम्र भी कम हो जाए। उस दशा में वह अपनी जिंदगी के बाद जिंदा रहना चाहे तो तभी रह सकता है, जब जिंदगी को बचाने के सूत्र उसके विचारों में हों।

7. सभी धर्मों, सभी ‘ऊँचे’ विचारों का जन्म निराशा से होता है, आशा के संचार का आश्वासन देते हुए उनका विस्तार होता है, और जीवन विरोधी पागलों की जमात पैदा करने के रूप में उनका तंत्र स्थापित होता है।

8. आप जीना चाहते हैं तो, आपको अपने फैसले स्वयं करने होंगे, जैसे कम पढ़े लिखे लोग करते हैं। मरना चाहते हैं, तो बुद्धिमानों की मदद लेनी होगी।

9. जो लोग मुझे जानते हैं वे मुझे औसत दिमाग का मानते हैं और मैं भी उनके साथ खड़ा रहता हूं, इसलिए वे यह विश्वास नहीं कर सकते कि इतने प्रखर विचार मेरे दिमाग में पैदा कैसे हो गए।

10. यहां भी मैं उनका साथ देना चाहता हूं, ये विचार विचार होकर भी विचार नहीं हैं, आंखों देखे को बयान करने की कोशिश मात्र हैं। हमारे बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षाविद, आंदोलनकारी, राजनीतिज्ञ सभी के सभी पिछले 5 सालों से एक ही बात दोहराते हुए, एक ही मुकाम पर टिके रहते हुए, यह क्यों सिद्ध करते रहे कि उनके पास बुद्धि तो है, विचार की कमी है । प्रगति से प्रेम तो है, पर ‘पावों में नहीं जुंबिश आँखों में भी कम है, रहने दो अभी क्रांति का नक्शा मेरे आगे’ की खबीस चाहत सब पर भारी पड़ती है।

11. अब आपकी समझ में यह बात आ गई होगी कि मैं बुद्धिमानों की कोटि में आने से डरता क्यों हूं और औसत दिमाग का कहे जाने पर सुकून क्यों अनुभव करता हूँ।