Post – 2019-04-30

यह तुकबंदी कश्मीरी पंडितों पर नहीं है।

वहां से निकले तो आंसू बहा के निकले थे
सहेज पाए थे क्या, क्या गवां के निकले थे
हिसाब इसका न मांगो, हिसाब है ही नहीें
तड़पते चीखते सबको बता के निकले थे।।
खुल्द से निकले थे आदम सुना है हमने भी
अपनी हौवा की आबरू बचा के निकले थे।।
जिसको जो नाम दिया आज तक बचा है वही
हम अपना नाम पता तक मिटा के निकले थे।
हम वतनबद्र हुए, ला-वतन नहीं है पर
चलते चलते भी दिया एक जला के निकले थे।।
बचा रहे न बुझे आंधियों में तूफां में
मंत्र पढ़ सकते न थे, बुदबुदा के निकले थे।।