Post – 2019-04-21

मैने 19 अप्रैल को तुलसी पर एक लाइन लिखी थी, उसे बहुत से मित्रों ने पसन्द किया पर टिप्पणियों से पता चला कि वे तुलसी में कमियां तलाशने वालों को दुष्ट समझते हैं।

मैने यह वाक्य यह याद दिलाने के लिए लिखा था कि उसी तुलसी में उन्हें जो दिखाई देता है, वह आप को दिखाई नहीं देता, जो आप को दिखाई देता है उस पर उनकी नजर नहीं जाती। यह टिप्पणी मैंने अपने पिछले कथन के दृष्टांत के रूप में लिखी थी। तटस्थता की उस मांग को उदाहृत करने के लिए कि दूसरों को कभी उनकी नजर से भी देखें तभी उनके साथ न्याय कर पाएंगे।

जब सरल हिंदी में लिखे वाक्य का अभिप्राय समझने में पूर्वाग्रह के कारण इतनी कठिनाई पैदा होती है तो दूसरों के शास्त्र और धर्मग्रंथ समझने में कितनी कठिनाई होगी?

आप को वह कैसा दिखता है इसे बेझिझक कहें जिससे वे भी चाहें तो अपने को आपकी नजर से देख सकें, (लोग क्या सोचते होंगे इसका ध्यान तो हम रखते ही हैं) पर अपना मन्तव्य कुछ रियायत देते हुए और सम्मान के साथ प्रस्तुत करें। खाट खड़ी करने के इरादे से नहीं।