Post – 2019-04-21

हम जिन्दगी के साथ थे, पर जिन्दगी को क्या कहें।
हँसते रहे हर चोट पर, इस सादगी को क्या कहें ।।
प्यासे तो सहरा सामने, सपनों तलक में गर्द थी
वह आँच जैसी आँच थी, उस तिश्नगी को क्या कहें ।।
हीरा बनाता पत्थरों को ताप-अन्तर्दाह से
सोचा तो आंखें भर गईं इस बन्दगी को क्या कहें।।
दुख में कमी कुछ रह गई, कुछ और दे, कुछ और दे
मांगा तो कांटे बिछ गए, अपनी खुशी को क्या कहें ।।