नेतृत्व का संकट (2)
मध्यकाल में किसी जन आंदोलन की संभावना नहीं थी। धार्मिक उत्पीड़न, निर्मम आर्थिक दोहन, स्थानीय अधिकारियों की उद्दंडता, न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार से उत्पन्न आक्रोश अक्सर विक्षोभ का रूप ले लिया करते थे और उनका अधिक क्रूरता से दमन कर दिया जाता था। इसलिए वह कभी जन-आंदोलन का रूप नहीं ले सका।
मध्यकालीन शासक स्वेच्छाचारी थे। वे कुछ भी कर सकते थे और अपने कुकृत्यों पर गर्व भी कर सकते थे। कारण, उन्होंने मुसलमानों के ऊपर कोई अत्याचार नहीं होने दिया। इस्लाम प्रेम और सद्भावना का मजहब है, परंतु यह मुसलमानों तक सीमित रहा है। उसी मजहब में दूसरे धर्म के लोगों के साथ या किसी धर्म को मानने वालों के साथ वे उसी तरह पेश आते थे जिस तरह शिकारी जानवरों के साथ पेश आता है। इसका अपना आनंद था। वे हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे थे और ऐसा करते हुए एक पवित्र कार्य कर रहे थे। आधुनिक काल में एक हिटलर पैदा हुआ, मध्यकाल के हिटलर मजहबी पोशाक में ऐसा काम करते थे इसलिए यूरोप में आज तक उनकी पूजा की जाती है और भारत में आज भी वे भेस बदल कर काम कर रहे हैं।
यूरोप के मध्यकाल को अंधकार युग कहा जाता है। वह भारत के मध्य युग से मिलता-जुलता था। अंतर केवल इतना कि यूरोप में पोपतंत्र शासन पर हावी था और अत्याचार सीधे पोप और पादरी करते थे और शासक उनकी सत्ता के आगे निरुपाय अनुभव करता था, या धर्मांधता के कारण, उनकी प्रशंसा पाने के लिए, धर्म विमुख या विधर्मी लोगों के प्रति, स्वयं कभी-कभी उतने ही नृशंस अत्याचार करता था (ब्लडी मेरी)।
भारत में मुल्लों और मौलवियों की नजर में अपने को धर्मरक्षक सिद्ध करने के लिए शासक स्वयं वह जघन्य और अमानुषिक अत्याचार करता था।
अंधकार युग का दूसरा नाम धर्मांध युग है, अंधकार ग्रस्त समाज का दूसरा नाम धर्मांध समाज है। मुस्लिम समाज आज भी अपने अंधकार युग से बाहर नहीं निकल सका और धर्मांधता को गौरवान्वित करता हुआ अंधकार युग की सृष्टि के लिए कृत विकल्प है। उसका नेतृत्व करने वाले आधुनिक मुहावरों में मध्यकालीन इबारतें दोहराते हैं और बुद्धिजीवी उनके सामने सिकुड़ कर केंचुओं मे बदल जाते हैं।
आत्म सम्मान की रक्षा के लिए जितनी निर्भीकता से सानिया मिर्जा ने मुल्लों को मुंहतोड़ जवाब दिया, उतनी निर्भीकता से मुस्लिम समाज के किसी बुद्धिजीवी ने दिया हो, इसकी मुझे याद नहीं। यह याद अवश्य है कि अपने को प्रगतिशील कहने वाले मुसलमानों ने तस्लीमा नसरीन को कभी सम्मान नहीं दिया।
ऐसा नहीं है भारतीय मध्यकाल में सराहना के योग्य कुछ हुआ ही न हो। ऐसा भी नहीं कि यूरोप के मध्यकाल में सराहना के योग्य कुछ हुआ ही न हो। सचाई यह है कि वह तलवार की धार पर चलते हुए संभव हुआ।
भारत में आने वाले यूरोपीय व्यापारी सौ-दो सौ साल पहले अपने मध्य युग से उबर चुके थे। इसलिए उन्होंने जो कुछ किया वह विधि-विधान की मर्यादाओं के सहारे किया। विधि-विधान का सहारा लेकर भी कितने जघन्य अपराध किए जा सकते हैं, इसके उदाहरण अंग्रेजी शासन के दौर में कम न मिलेंगे। फिर भी अपने को न्याय और नियम के अनुसार चलने वाला शासन सिद्ध करने के लिए उनको खुले आम बर्बरता का अधिकार नहीं था जो भारतीय मध्यकाल और यूरोपीय मध्यकाल का नियम था।
उनके इस अभिनय का लाभ हिंदू समाज ने उठाया, परंतु मुस्लिम समुदाय इसका उपयोग नहीं कर पाया।
हंटर के कूटनीतिक कथन पर भरोसा करने के कारण हम स्वयं इस भ्रम में रहे हैं कि अंग्रेजों ने मुसलमानों को सत्ता से वंचित कर के अपना आधिपत्य स्थापित किया था, इसलिए वह मुसलमानों पर विश्वास नहीं करते थे। प्रमाण इस बात के हैं कि वे अपनी सत्ता को निर्विघ्न बनाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों का विश्वास प्राप्त करना चाहते थे।
मुस्लिम समाज अपनी धर्मांधता के कारण अपने मध्य युग से बाहर निकल ही नहीं पाया और उसने विद्रोह भी किया तो सत्ता या आर्थिक विपन्नता के विरुद्ध नहीं, धार्मिकता के आधार पर किया। सैयद अहमद खान बरेलवी का विद्रोह ऐसा ही था। आवेग जनित विद्रोह को मोड़कर उसके अपने लक्ष्यों के विरुद्ध इस्तेमाल करने की कला अंग्रेज जानते थे। अंग्रेजों के विरुद्ध उत्पन्न हुए विद्रोह को उन्होंने किस कला से रणजीत सिंह के विरुद्ध मोड़ दिया और सैयद अहमद खान की अपमान जनक मृत्यु को संभव बनाया इससे हम अनभिज्ञ हैं। इसकी खोज इतिहासकारों को करनी चाहिए।
हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि धर्मांध समुदायों को चालाक लोग उनके इरादों के विरुद्ध इस्तेमाल करते हुए उनका अपना अहित तो कर ही सकते हैं, उनका भला चाहने वालों को भी संकट में डाल सकते हैं। उनके तरीके बहुत परिष्कृत हैं। मध्यकालीन चेतना में इस कारीगरी को समझने की शक्ति नहीं है। मुहावरा पुराना है दाना दुश्मन नादान दोस्त से अधिक अच्छा है और नादान दोस्त अपनाने का प्रयास भारत लंबे समय से कर रहा है। भारत का नाम लेना इस मूर्खता का अपमान करना है, समस्या तो एशिया की है। नेतृत्व का अभाव केवल भारत में नहीं है, अफ्रो-एशियाई जगत में है।