यारब न वे समझे हैं न समझेंगे मेरी
सीआईए के प्रधान ने जब कहा था कि मुझे एक अरब डालर दे दो और मैं सोवियत संघ की ऐसी गत कर दूंगा कि वह अपनी घरेलू समस्याओं में ही उलझ कर रह जाएगा, तब किसी को विश्वास भी न हुआ होगा कि वह सोवियत संघ को छिन्न भिन्न कर सकता है। अमरीका ने कम्युनिज्म के रास्ते पर चलने वाले चीन को पूंजीवादी रास्ते पर डाल दिया। सीआईए ने न जाने कितनी हत्याएं कराईं, कितने तख्ते पलटे इसका आंकड़ा किसी के पास होगा तो सीआईए के पास ही। जो रहस्य सबको पता है उसका भी सही तरीका और चेहरा दिखाई नहीं देता है। यह सब कूटनीतिक चतुराई और कम से कम पैसे के बल पर अधिक से अधिक कारीगरी के कौशल से ही संभव हो पाया ।
यूं तो दुनिया की हर बुराई के पीछे अमेरिका का हाथ देखना अन्यैय होगा, परंतु यह सही है, कि सऊदिया के तेल भंडार पर उसकी पकड़ रही है और सउदिया के निर्णय अमेरिका की सलाह पर होते रहे हैं। अमेरिका हो या उसका गुरु ब्रिटेन, ये जिसके दोस्त हो जाएं, उसे किसी दुश्मन की जरूरत नहीं है।
इनकी मोटी चाल यह रही है की जिन देशों और समाजों का दोहन करना है उनको मध्यकालीन पिछड़ेपन में घेर कर रखना है। यह जानवरों की रेवड़बंदी से काफी मिलता-जुलता है। तरीका जाना पहचाना हैः
उन देशों और समाजों की भावुकता को इतना प्रबल करना कि वह महाव्याधि की शक्ल ले ले। बौद्धिकता को हतोत्साहित करना कि यह आस्था पर उंगली उठाने जैसा है। किताब को खूँटे की तरह इस्तेमाल करते हु्ए, किताब के युग में बांध कर रखना, और किताब की व्याख्या का अधिकार अपने पास रखते हुए समाज को अपनी गिरफ्त में रखना, कि वे अपने हित और अहित को पहचानने और पहले से नियत सीमाओं से आगे बढ़ने से घबराहट अनुभव करें।
ब्राह्मणों ने हिंदू समाज को भी वेद पुराण से बांधकर रखने की। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके प्रयत्न पूरी तरह निष्फल गए। परंतु वेद में हर एक विचार का प्रतिवाद है। हम भारतीय मुस्लिम समाज की मानसिकता पर विचार कर रहे हैं इसके विस्तार में नहीं जाएंगे। यहां केवल इतना ही कह सकते हैं कि मुस्लिम समाज में भावुकता की जैसी प्रबलता रही है, उसकी संगठित किंतु अंध प्रतिक्रिया समय-समय पर जैसी इनमें देखी जाती रही है वैसी हिंदू समाज में नहीं। इसमें ईश्वर से लेकर वेद पुराण सभी पर प्रश्न करने, संदेह प्रकट करने का, अधिकार सभी व्यक्तियों को अपनी ज्ञान सीमा के अनुसार मिला रहा है।
मुस्लिम समाज में वैज्ञानिक और तार्किक व्यक्ति भी कुरान का नाम आते ही हाथ खड़े कर देते हैं। मुस्लिम देशों के लिए संसाधनों का अपने लाभ के लिए एकाधिकार करने के लिए प्रयत्नशील पूंजीवादी देश इस कमजोरी को जानते और इसका भरपूर लाभ उठाते रहे हैं । ऐसी स्थिति में वे बहुत चतुराई से कट्टरपंथी विचारों को हवा देते रहे हैं। यह ध्यान देने की बात है कि अरब देशों और ईरान के तेल भंडारों पर अधिकार जमाने के लिए प्रयत्नशील अमेरिका इन देशों का हितैषी बनकर इनको अपने इशारे पर चलाने का प्रयत्न करता रहा है ।ईरान में शाह का शासन ऐसा ही था। यदि वहाबी प्रवृत्तियों को बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में प्रोत्साहन दिया जाना आरंभ हुआ, मदरसों और मजदूरों की पढ़ाई के प्रति आसक्ति पैदा करने की प्रवृत्ति बढ़ी, और सउदिया, जो अमेरिकी इशारे पर चलता रहा है, मुस्लिम जगत का नेतृत्व संभालने के लिए इस पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है, डॉलर भले उसका लगता रहा हो, दिमाग अमेरिका का ही लगता रहा है।
अमेरिकी सरकार के ही एक आकलन के अनुसार अकेले सऊदिया की राजधानी रियाध ने वहाबी असहिष्णुता वाले इस्लाम को प्रचारित करने पर 10 अरब डालर खर्च किए (The US State Department has estimated that over the past four decades the capital Riyadh has invested more than $10bn (£6bn) into charitable foundations in an attempt to replace mainstream Sunni Islam with the harsh intolerance of Wahhabism. Wikipedia) ।
सऊदिया के विषय में कामिल दाऊद ने कहा है कि यह देश इस्लामिक कट्टरता पैदा करता, फैलाता और कट्टरपंथियों को शरण देता है जबकि वे ही इसे जड़ से उखाड़ने पर तुले हुए हैं और इसके भविष्य के लिए खतरा हैं (The country produces, sponsors, shelters and feeds the Islamism that threatens its foundations and its future.)।
यहां दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पहला यह कि 40 साल के भीतर इसमें तेजी आई है। और यही समय अमेरिका के सऊदी तेल भंडारों में दिलचस्पी लेने का भी है। दाऊद जब कहते हैं कि आरंभ में सउदिया एक ओर तो धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दे रहा था और दूसरी ओर मुस्कुराते हुए अमेरिका से हाथ मिला रहा था, अमेरिका ने इसकी और ध्यान नहीं दिया, (It took the West being heavily hit by Islamist terrorism for it to appreciate fully the measure of this menace, long camouflaged. Indeed, even as Saudi leaders were shaking hands and smiling at their Western counterparts, they were hosting preachers advocating jihad to the hundreds of thousands of people gathered in Mecca for the annual pilgrimage. Today, everyone sees through the facade beer.), तो वह इस सचाई को समझ नहीं पाते कि यह अमेरिका के गुदगुदाने से पैदा हुई मुस्कराहट थी।
मुसलमानों के तीर्थ मक्का और मदीना सऊदी में ही पड़ते हैं इसलिए धार्मिक कट्टरता बनी रहे, और बढ़े, इसमें उसकी दिलचस्पी हमेशा से रही है क्योंकि हज के लिए जुटने वाली भीड़ उसके आय का स्रोत रही है। संबंध वही रहा है जो हमारे कुंभ आज का पंडों पुरोहितों से रहा है। पंडे आज के होटल उद्योग की पुराने रूप हैं और अपने आचार व्यवहार में धार्मिक आस्था से मुक्त शुद्ध व्यावसायिक रहे हैं। व्यावसायिक कारणों से मुसलमानों के पिछड़ेपन में उनकी धार्मिक आस्था में सउदिया का रुचि लेना और मानसिक रूप में मध्यकालीन बने रहना एक अपरिहार्यता थी।
परंतु हम जिस दौर की बात कर रहे हैं उसने कमाने से अधिक खर्च करने का अभियान पहले से ठीक उलट था। यह उसकी कमजोरी को भुनाने वालों की चाल लगती है।
मुझे इसके पीछे अमेरिका का हाथ दिखाई देता है जिसे कुछ फैलाकर पश्चिमी जगत की चाल भी कहा जा सकता है। इसका सीधा संबंध पेट्रोल के उत्पादन, पेट्रोल के कमीशन, और पेट्रोल डालर को आधुनिकीकरण पर खर्च करने की जगह पिछड़ेपन की खेती कर खर्च करने की जुगत थी। सही इस्तेमाल से आधुनिक सोच और शिक्षा से अपनी संपदा और साधनों पर अमेरकी अधिकार से उबरने की चिंता पैदा हो सकती है । इसे रोकने के लिए, मध्यकालीन पिछड़ेपन में घेर कर रखने के लिए धार्मिकता को बढ़ावा दिया गया और इसके पीछे अमेरिका का हाथ था।
हम पीछे कह आए हैं इस्लाम के प्रचार में तलवार और पैसे की भूमिका प्रधान रही है , वह माले गनीमत के रूप में हो, या जजिया कर के रूप में, लगान वृद्धि और उसकी वसूली के उत्पीड़न के रूप में। इसमें पहले दो कारकों की ओर विद्वानों का ध्यान गया है तीसरे की ओर नहीं । चीन में भू राजस्व उत्पाद का नवां हिस्सा था। प्राचीन भारत में छठां, शेरशाह के समय तक एक तिहाई, अकबर ने शेरशाह का अनुकरण किया था। परंतु शाहजहां के समय में यह तीन गुना होू गया था। किसान खेती करने से इंकार करते हुए खेती बंद कर देते थे और तलवार के जोर पर उन्हें खेती के लिए बाध्य किया जाता था। जिन दिनों तख्तताऊस बनाने पर अकूत धन खर्च किया जा रहा था मुगल साम्राज्य के सबसे उपजाऊ माने जाने वाले गुजरात में ढाई साल तक अकाल पड़ा रहा और बादशाह ने कृपा करके लगान का 14 वां हिस्सा माफ किया था। इसका मतलब, यदि मरने की नौबत है तो इस्लाम कबूल करो और जिंदा रहो, वर्ना मरो। यह मेरी समझ है। हो सकता है गलत हो परंतु औरंगजेब की क्रूरता हमें दिखाई देती है शाहजहां की क्रूरता ताजमहल के संगमरमर में छिप जाती है।
भटकने की आदत है क्या कीजिए। कहना यह चाहता था कि वहाबी आंदोलन के साथ एक स्तर पर मौज मस्ती परंतु दूसरे स्तर पर नितांत सादगी और कबीलाई सहभागिता का ऐसा योग था कि एक डॉलर सौ डालर का काम करता है। यदि एक बिलियन डॉलर से रूस का सत्यानाश किया जा सकता था, तो उससे 10 गुना खर्च करने के बाद उसके बहुगुणित प्रभाव का अनुमान ही किया जा सकता है।
पश्चिमी देश पहले कांटे बोते हैं और फिर कांटो का सफाया करने के नाम पर कांटे बोते हुए जो लाभ कमाया था उससे कुछ अधिक लाभ कमाने का प्रयत्न करते हैं। वे रूस को हराने के लिए तालिबान पैदा करेंगे , और जब उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाएगी, और वे उनके लिए ही खतरा बनने लगेंगे तो उनकी सफाई के नाम पर उन देशों को भी मटिया मेट कर देंगे जो उनके सहयोगी रहे थे।
राजनीतिक मामलों की मेरी समझ इतनी कम है इस तरह की बातें करते हुए स्वयं शंकित रहता हूं क्या मैंने सही निष्कर्ष निकाला। परंतु जिस बात को स्वयं अधिकारियों ने स्वीकार किया है उनके अनुसार हज करने वाले देशों के तीर्थयात्री कट्टरवादी प्रचार के लक्ष्य हुआ करते थे। और जिस बात को समझने के लिए किसी आधिकारिक ज्ञान की जरूरत नहीं है, वह यह कि हमारी धर्मनिरपेक्ष सरकार हज को प्रोत्साहित करती रही है
इसके लिए अनुदान भी देती रही है। वोट बैंक के लिए भारतीय मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाने में हमारे राजनीतिज्ञों का भी योगदान रहा है।
सउदिया में नए शासक शासक ने इस पिछड़ेपन से अपने समाज को बाहर लाने का संकल्प कर लिया है:
The appearance of the man known as the “iron prince” — Mohammed bin Salman, the 32-year-old heir to the throne — suggests that there may be a solution to the Saudi problem. Young, fiery, seen as a reformer, the crown prince has been making a splash since his father placed him at the forefront of the political scene about two years ago. He is proposing, for example, another kind of economic model than the one, built around oil and gas, that prevails today, and has announced development mega projects and plans to open up the country to tourism unconditionally….
Whatever the real effect of these changes in Saudi Arabia, they already are being felt elsewhere. If this country, the motherland of fatwas, undertakes reforms, Islamists throughout the world will have to follow suit or risk winding up on the wrong side of orthodoxy.
कट्टरपंथी इस सुधार कार्यक्रम से घबराए हुए जहालत का अपना साम्राज्य बचाने के लिए प्रयतनशील हैं। भारतीय मुसलमान भी अपनी पहचान पिछड़ेपन से जोड़ कर पिछड़ते रहने के लिए संघर्ष कर रहा है।