इकबाल की मुल्लावादी दार्शनिकता
उर्दू कविता का मिजाज सूफी रहा है। धार्मिक कट्टरता का विरोध इसका मुख्य स्वर है। इस्लाम में अल्लाह रहम तो करता है, पर दहशत भी पैदा करता है। सूफी असर के कारण उर्दू कवि उससे डरता नहीं, सजदा नहीं करता, प्यार करता है। यह प्यार दिन में एक बार या चार-पांच बार नहीं पैदा होता, एक नशे के रूप में इसका असर बना रहता है, शायर होश में आना ही नहीं चाहता। वह मुसलमानों के लिए लगाई गई पाबंदियों का कायल नहीं है। मुअज्जिन (अजान लगाने वालों) का मजाक उड़ाता। धार्मिक उपदेशक, शेख. वाइज, नासेह, की खिल्ली उड़ाता है। वह खुदा को सातवें आसमान पर बैठा नहीं मानता, सर्वव्यापी मानता है ( वह जगह बता कि जहां पर खुदा न हो। संक्षेप में सूफी मत के माध्यम से उर्दू कविता पर वेदांत का प्रभाव रहा है। हिंदुओं से लेकर मुसलमानों तक उर्दू कविता की लोकप्रियता का एक रहस्य यह भी है।
इकबाल से पहले शायर हैं, जो मुल्लों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। अकबर इलाहाबादी भी, जो देवबंदी थे, मगर शायरी में उनका मिजाज भी सूफियाना था। उनकी मशहूर गजल, हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है। इकबाल में सज्दे की ओर लौटते हैं। शायरी में भी आदमी को मुसलमान बनाना उनकी प्राथमिकता है। आशनाई या प्रेमानुभूति एक दुर्बलता जिसे सच्ची खुदापरस्ती के लिए दिल से निकालना होगा।
मैं जो सर ब-सज्दा हुआ कभी तो जमीं से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम आसना मुझे क्या मिलेगा नमाज़ में।
हो सकता है कि मैं इसे जिस रूप में देख रहा हूं वह गलत हो, कविता के वाक्यों के तरह-तरह के अर्थ निकालते ही हैं लोग। परंतु मुझे लगता है यह हिंदुत्व के बचे हुए संस्कारों से मुक्त हो कर पक्का मुसलमान बनने का संकेत हो सकता है। सनम-आशना, मूर्ति में आसक्ति, हिंदू संस्कारों के अवशेष का द्योतक लगता है। तबलीग यहीं से शुरू होता है। यह अर्थ खींचतान भरा लग सकता है इसलिए, हम उनके गद्य में कहे गए वाक्यों पर ध्यान दें।
I suggest the formation of an assembly of ulema which must include Muslim lawyers who have received education in modern jurisprudence. The idea is to protect, expand and, if necessary, to reinterpret the law of Islam in the light of modern conditions, while keeping close to the spirit embodied in its fundamental principles. This body must receive constitutional recognition so that no bill affecting the personal law of Muslims may be put on the legislative anvil before it has passed through the crucible of this assembly. .. Indeed it declares that every code of law other than that of Islam is inadequate and unacceptable. This principle raises some political controversies closely connected with India.
(New Year Message, Broadcast from the Lahore Station of All-India Radio on 1st January, 1938.)
मुस्लिम पर्सनल लॉ मुस्लिम समाज मे अपनी ही महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को भी सही साबित करने और उसको चलते रहने देने के लिए खड़ा हो जाता है, तो इसके पीछे इकबाल का हाथ न भी देखा जाए, इसका समर्थन तो देखा ही जा सकता है।
हिंदू कोड बिल पहले इंडियन कोड बिल था। सुनते हैं मजमून तैयार करने के स्तर पर ही जब जाकिर हुसैन साहब को इसका पता चला और उन्होंने नेहरू जी को मुस्लिम पर्सनल लॉ संवेदनशीलता की याद दिलाते हुए इसे केवल हिंदुओं के लिए जारी करने को विवश किया। हम मुस्लिम पर्सनल लॉ की ताकत, आधुनिक युग के संदर्भ में इसको बनाए रखने के लिए मोहम्मद इकबाल की पहल और सामान्यतः राष्ट्रवाली माने जाने वाले मुसलमानों की मानसिकता को एक दूसरे से जुड़ा हुआ पाते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में केवल पुरुष मुसलमान है। स्त्री उसकी इच्छा पूर्ति का साधन है इसलिए उसका अलग कोई अधिकार नहीं है, अन्यथा मानवता की समानता की बात करने वाला मजहब स्त्री और पुरुष दोनों के अधिकार की समानता को तो स्वीकार करता। ऐसा नहीं है और इकबाल स्वयं स्त्री और पुरुष को समानता देने के पक्षधर नहीं है।
… I am not an advocate of absolute equality between man and woman. It appears that Nature has allotted different functions to them, and a right performance of these functions is equally indispensable for the health and prosperity of the human family. The so called “emancipation of the western woman” necessitated by western individualism and the peculiar economic situation produced by an unhealthy competition, is an experiment, in my opinion, likely to fail, not without doing incalculable harm, and creating extremely intricate social problems. Nor is the higher education of women likely to lead to any desirable consequences, in so far, at least, as the birth rate of a community is concerned. Experience has already shown that the economic emancipation of women in the west has not, as was expected, materially extended the production of wealth. On the other hand it has a tendency to break up the Physical life of Society. (The Muslim Community — a Sociological Study. पूर्व. 134)।
स्वाभाविक है कि वह तलाक के विधान को भी पूर्वाग्रह से मुक्त मानें। वह इस्लाम में ऐसी व्यवस्था की बात करते हैं जिसमें स्त्री को भी तलाक देने का अधिकार है, और पश्चिमी आलोचक इसे समझ नहीं पाते हैं इसलिए इसकी आलोचना करते हैं।
The laws of divorce in Islam are also of great interest. The Muslim woman has equality of divorce with her husband. This, however, is secured in Muhammadan Law by the wife calling upon her husband at the time of marriage to delegate his right of divorce to her, to her father, brother or any stranger. This is technically known as “tafviz”—that is to say, handing over or transfer. The reason why this roundabout way of security is adopted I leave to the lawyers of Europe to understand. 158
इसका व्यावहारिक रूप क्या है, इससे हम जितना परिचित हैं, उसमें यह नहीं मान सकते किस व्यवस्था का कोई लाभ मुस्लिम महिलाओं को मिला है।
हिजाब या बुर्का प्रथा को वह महिलाओं के लिए उचित मानते हैं, ऐसा करके ही वे अपने सम्मान की रक्षा कर सकती हैंः
The source and symbol of the greater respect which Eastern women enjoy is in that very veil. Nothing has happened to diminish the respect in which they were held for centuries, and the principle of protecting them from approaches of strangers and from all humiliations has been safely maintained.
उनकी समझ से इस्लामी जनतांत्रिक व्यवस्था सर्व मुस्लिम सुखाय (Commonwealth) पूर्ण समतावादी व्यवस्था हैः
That the Muslim Commonwealth is based on the absolute equality of all Muslims in the eye of the law. There is no privileged class, no priesthood, no caste system.
यह केवल मुस्लिमों तक सीमित है और इसे मुसलमान बन कर ही हासित किया जा सकता है, पर जो मुसलमान न हैं न बनने के तैयार वे इस कामनवेल्थ में चैन से नहीं रह सकते।
हम नहीं जानते अच्छे मुसलमान का मतलब पक्का मुसलमान या कट्टर मुसलमान से अलग भी कुछ होता है और सब को अच्छा मुसलमान बनाने की योजना तबलीग से अलग क्या हो सकती है। वह मानते हैं कि अच्छा मुसलमान हुए बना उद्योग व्यवसाय कुछ भी सफलतापूर्वक नहीं चल सकताः
If we want to turn out good working men, good shopkeepers, good artisans, and above all good citizens, we must first make them good Muslims.
यदि इकबाल का मतलब ईमानदारी, कार्य निष्ठा और सद्भाव से है जो अच्छे मनुष्य के गुण हैं, है अच्छा मुसलमान की जगह अच्छा इंसान कहते तो शायद उनकी बात हमारी भी समझ में आती। उद्योग, व्यवसाय अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए शांति और सुरक्षा चाहिए। अच्छे मुसलमानों ने सबसे पहले इसे ही नष्ट किया है जिसके कारण न वे अपनी प्राकृतिक संपदा का सही उपयोग कर सके, न उससे मिलने वाले लाभ का सही निवेश कर पा रहे हैं।
इस्लाम को सही सिद्ध करने के लिए, वह जाने कहां कहां से तिनके जुटाकर एक काल्पनिक महल खड़ा करते हैं जिसमें स्वतंत्रता इस्लाम में ही संभव है और गुलामी तक स्वतंत्रता का विस्तार है, That slaves had equal opportunity with other Muhammadans is evidenced by the fact that some of the greatest Muslim warriors, kings, premiers, scholars and jurists were slaves.
इकबाल को लगता है मुस्लिम समाज में दो कमियां, नेतृत्व में सक्षम व्यक्तियों का अभाव, दूसरे झुंड की मानसिकता का अभावः
Let me tell you frankly that, at the present moment, the Muslims of India are suffering from two evils. The first is the want of personalities. … the community had failed to produce leaders. By leaders I mean men who, by Divine gift or experience, possess a keen perception of the spirit and destiny of Islam, along with an equally keen perception of the trend of modern history. Such men are really the driving forces of a people, but they are God’s gift and cannot be made to order. The second evil from which the Muslims of India are suffering is that the community is fast losing what is called the herd instinct.
जो कमी थी उसे इकबाल पूरी कर रहे थेः नेतृत्व प्रदान कर रहे थे, नेता की जगह सरगना पैदा कर रहे थे और समाज को झुंड में भी बदल रहे थे।
शांति तो इस इस्लाम के नाम के साथ ही जुड़ी है, दूसरों का दुर्भाग्य है मुसलमानों के कारण शांति से रह नहीं पाते।
.. The post-Islamic history of the Arabs is a long series of glorious military exploits, which compelled them to adopt a mode of life leaving but little time for gentler conquests in the great field of science and philosophy.
समानता इस्लाम का दूसरा सबसे प्रधान गुण है, लेकिन यह इस्लाम में भी आरंभ की कुछ शताब्दियों तक ही बना रहाः
The absolute equality of all the members of the community. There is no aristocracy in Islam. … Now, this principle of the equality of all believers made early Mussalmans the greatest political power in the world. 80
क्यों आरंभिक शताब्दियों तक ही बना रहा इकबाल इसे जानते हैं परंतु ऐसे प्रसंगों में याद नहीं करते। यह उस दौर में ही संभव था जब वह कबीलाई जीवन के निकट और उसी के नियमों से प्रेरित था। उद्विकास एक से बहु, समान से विभिन्न की दिशा में चलता है। जिसे ऐरिस्टोक्रेसी की इस्लाम में इकबाल संभावना तक नहीं देते हैं उसके जितने भोंड़े रूप देशों में, इस्लामी शासन में देखने में आते हैं, जोअन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देते।