Post – 2018-10-07

#सरसैयद_अहमद_और_कांग्रेस

हमारे ज्ञान के बाहर अज्ञान का वृत्त होता है। उसकी संधिरेखा का क्षीण आभास हमें होता है परन्तु उससे परे के महा अन्धकार का हमें बोध तक नहीं होता। ज्ञान के विस्तार के साथ अज्ञान का मंडल भी बढ़ता है, इसलिए कम जानने वालों में अपने ज्ञान का जैसा विश्वास होता है वह ज्ञान के विस्तार के साथ संशयों से ग्रस्त होता जाता है क्योंकि तब उसे पता चलता है कि जो अज्ञात है वह ते विराट है ही, जिसे हम जानते हैं उसके भी अज्ञात स्तर हैं और इसलिए हम ज्ञात जगत में अपने उपयोग की एक मामूली या सतही जानकारी रखते हैं, उसे पूरी तरह नहीं जानते। इसलिए किसी भी परिघटना को हम जितनी बार देखते हैं, उसमें कुछ नया दीखता है, और युग युग तक उसे दूसरे देखने वालों को कुछ ऐसा दीखता है जो पहले किसी को दीखा ही न था। इसलिए सभी ज्ञान भ्रम निवारण की अलग अलग मंजिलें हैं, यदि कुछ सच है तो हमारी जिज्ञासा। इसे किसी राग, द्वेष, आग्रह के कारण धूमिल होने से बचाए रखना ज्ञान साधना की अनिवार्य शर्त है।

किसी भी कथन का ठीक वही नहीं होता जो शब्दों से व्यक्त होता है, यह अवसर, श्रोता, वक्ता, कहने की शैली और अनेक दूसरे संदर्भगत तथ्यों पर निर्भर करता है। वाचिक कथन में ये सभी बातें स्पष्ट रहती हैं इसलिए समझने में चूक कम होती है, लिखित में जितने पक्ष उजागर होते हैं वे अपर्याप्त होते हैं आतः हमें इसके अंतर्विरोधों और अपरिहार्यताओं को भी देखना होता है।

सर सैयद जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वह अमीर मुसलमानों का वर्ग था यह बात हम पीछे दुहरा आए हैं परन्तु इसका विवेचन नहीं किया जिसके अभाव में इसकी परिणति को नहीं समझा सकते। हम यह भी नहीं समझ सकते कि जिस कौम की बात सर सैयद कर रहे थे उसका मतलब क्या है। सबसे पहले इन वाक्यों पर ध्यान देः
1- 1887 में उनके लखनऊ भाषण में The audience was mainly Mahomedan, all the great Raïses being present.
2- मद्रास के कांग्रेस अधिवेशन में No one can say that because these two Raïses took part in it, that therefore the whole nation has joined it.
3- Mirza Ismail Khan, …, told me that no Mahomedan Raïs of Madras took part in the Congress.
4- No Mahomedan Raïs of Bengal took part in it, and the ordinary Bengalis who live in the districts are also as ignorant of it as the Mahomedans.
5- Raïses, men of the middle classes, men of noble family to whom God has given sentiments of honour…

यह याद दिलाना जरूरी है कि रईसों, जमींदारों, नवाबों, राजाओं और अंग्रेजों के हित एक थे और आम हिन्दू और मुसलमान तथा उद्योग तथा व्यापार के अवसरों के छिन जाने या सीमित हो जाने से घुटन अनुभव कर रहे व्यापारी और उद्यमी वर्ग के हित एक और पहले के विपरीत थे।

चार्ल्स ग्रांट के जिस पत्र का हवाला हम हवाला दे आए हैं (Observations on the State of Society among the Asiatic Subjects of Great Britain.1792) जो अंग्रेजों पर हिन्दुत्व के बढ़ते प्रभाव और भविष्य में हिन्दू हो जाने के डर से (धर्म गंवां कर पैसा कमाने के खतरे से) बचाव का एक ही उपाय देख पाया था कि अंग्रेजों को भारतीय भाषाएं पढ़ाने की जगह भारतीयों को राजशक्ति का प्रयोग करते हुए आर्थिक प्रोत्साहन और रोजगार का अवसर देते हुए ईसाई बनाया जाय और अंग्रेजी पढ़ने को बाध्य किया जाय। उसने उस दशा में उस दूसरे खतरे से भी आगाह किया था कि यह कहा जा सकता है कि उस दशा में पाश्चात्य शिक्षा और संस्थाओं से परिचित होने के बाद वे स्वाधीनता की मांग कर सकते हैं। इस भय का निराकरण करते हुए उसने कहा था कि लगान वसूली के तंत्र के कारण बंगाल में (यह 18वीं शताब्दी का अंत था और अभी वे केवल बंगाल के संदर्भ में ही सोचते थे।) जमीदारों का एक तबका अस्तित्व में आ चुका है जिसके हित कंपनी प्रशासन से जुड़े हैं, और वह ऐसी किसी मांग का विरोध करेगा। यह जमींदार तबका हिन्दू था।

यह सच है की कांग्रेस की स्थापना मैं सुरेंद्रनाथ बनर्जी का योगदान निर्णायक था। वह बंगाली थे। हिंदू थे। परंतु इसके कारण कांग्रेस का पूरा संगठन और आंदोलन हिंदू आंदोलन या बंगाली आंदोलन नहीं बन जाता।कांग्रेस बंगाल के हिन्दुओं का नहीं, देश के नवोदित शिक्षित मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही थी और देश के सभी समुदायों के सुशिक्षित और महत्वाकांक्षी नेता इसके समर्थक थे। पूरे देश के अशिक्षित जन न तो उसका महत्व समझ सकते थे न इसके साथ हो सकते थे, न थे, पर 1858 क्य दमन के भुक्तभोगी और अंग्रेजों के अपमानजनक व्यवहार से आहत लोग इसके समर्धुथक थे। सर सैयद को भी पता था पर इसे भी वह तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे थेः
As regards Bengal, there is, as far as I am aware, in Lower Bengal a much larger proportion of Mahomedans than Bengalis. And if you take the population of the whole of Bengal, nearly half are Mahomedans and something over half are Bengalis. Those Mahomedans are quite unaware of what sort of thing the National Congress is.

साथ ही वह धमकाने का भी प्रयत्न करते हैंः
In Bengal the Mahomedan population is so great that if the aspirations of those Bengalis who are making so loud an agitation be fulfilled, it will be extremely difficult for the Bengalis to remain in peace even in Bengal.

इतिहास का यह भी एक व्यंग्य ही है कि जिस डफरिन की सहमति से कांग्रेस की स्थापना भारतीय जन आक्रोश को कम करने के लिए हुई थी वही सर सैयद अहमद का इस्तेमाल उसे विफल करने के लिए कर रहा था और उन्हें महत्व देते हुए अपनी सलाहकार परिषद में रखा था।

यह विद्रोह 1857 के विद्रोह से चरित्रगत रूप में भिन्न था और इसका दमन शस्त्रबल से संभव न था। इसकी पृष्ठभूमि से सर सैयद परिचित थे। अपने लखनऊ के व्याख्यान में उन्होंने इसका हवाला गलत संदर्भ में दिया थाः
When the Government of India passed out of the hands of the East India Company into those of the Queen, a law was passed saying that all subjects of Her Majesty, whether white or black, European or Indian, should be equally eligible for appointments. This was confirmed by the Queen’s Proclamation.

सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसी का लाभ उठाकर आईसीएस की परीक्षा पास की थी जिसके बाद भी उन्हें बहाने बनाकर पदापित नहीं किया गया था। अंग्रेजों ने समझा यह मात्र एक बंगाली का मामला है। बंगाली जुझारू नहीं हैं। उन्होंने 1857 में भी भाग नहीं लिया था। असंतोष एक व्यक्ति का है, ठंढा पड़ जाएगा। पर इस भेदभाव और अन्याय से आहत सुरेंद्रनाथ ने पूरे भारत का दौरा किया और जहां भी गए उनका भव्य स्वागत किया गया। उनको सुनने के लिए भारी भीड़ एकत्र हुई और अखबारों मे उनको भरपूर समर्थन मिला। यह सरासर अन्याय था। भारतीयों के साथ खुला भेदभाव था। महारानी के अपने फर्मान और आश्वासन का उल्लंघन था। ब्रिटिश शासन की विश्वसनीयता उसके संसद के सामने भी उतर चुकी थी। इससे घबराकर आसूचना के प्रधान ए ओ ह्यूम की सलाह पर डफरिन ने ह्यूम की पहल से भारतीयों की शिकायतों को सुनने और उनकी जायज मांगों को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा के साथ कांग्रेस की स्थापना कराई थी और जिस तरह महारानी के आश्वासन और बनर्जी की सफलता के बाद भी उन्हें नियुक्त नहीं किया था, उसी तरह सरसैयद का इस्तेमाल करके उसने उसी संगठन और आन्दोलन को विफल करने का प्रयत्न किया।

दूसरे शब्दो में कहें तो वह मुसलमानों के हित के लिए चिंतित नहीं थे, रईस मुसलमानों, हिंदू जमीदारों और अंग्रेजी राज के हित में काम कर रहे थे। वह लगातार जानबूझ कर झूठ बोल कर दूसरे मुसलमानों सहित पूरे देश को गुमराह कर रहे थे। उन्हें पता था कि पूरे देश में सुरेंद्रनाथ बनर्जी को समर्थन मिला था जिससे ब्रिटिश प्रशासन घबराया था इसलिए वह झूठ बोल रहे थे कि
1. Everybody knows well that the agitation of the Bengalis is not the agitation of the whole of India. इसे वह धार्मिक रंगत दे कर छिपा रहे थे If our Hindu brothers of these Provinces, and the Bengalis of Bengal, and the Brahmans of Bombay, and the Hindu Madrasis of Madras, wish to separate themselves from us, let them go, and trouble yourself about it not one whit.

2. वह जानते थे कि कांग्रेस बंगाली हिन्दुओ की पार्टी नहीं है क्योंकि उन्हें पता था कि इसमें बंगाली या हिन्दू के नाम पर मुख्यतः सुरेन्द्रनाथ थे और इसमें मुसलमानों के साथ दूसरे सभी समुदायों के प्रतिनिधि थे। यदि उसमें सभी मुसलमानो की भागीदारी न थी तो दूसरे किसी समुदाय की पूरी भागीदारी न थी इसलिए वह श्रोताओं को यह कह कर मूर्ख बनवा रहे थे कि by taking a few Mahomedans with them by pressure or by temptation, they wished to spread, that the whole Mahomedan nation had joined them.

3. उनकी योजना में न पिछड़े हिन्दुओं के लिए स्थान था न मुसलानों के लिएः And it is the universal belief that it is not expedient for Government to bring the men of low rank; and that the men of good social position treat Indian gentlemen with becoming politeness, maintain the prestige of the British race, and impress on the hearts of the people a sense of British justice, and are useful both to Government and to the country. But those who come from England, come from a country so far removed from our eyes that we do not know whether they are the sons of Lords or Dukes or of darzies; and therefore if those who govern us are of humble rank, we cannot perceive the fact. But as regards Indians, the case is different. Men of good family would never like to trust their lives and property to people of low rank with whose humble origin they are well acquainted.
4. वह जानते थे कि मजहब कौमियत का आधार नहीं है, जातीयता है The Hindus of our Province, the Bengalis of the East, and the Mahrattas of the Deccan, do not form one nation.
परन्तु इस झूठ को लगातार पीटा जाता रहा कि काग्रेस हिन्दुओं की पार्टा है और हमारे तड्डूप्रेमी मार्क्सवादियों ने सर सैयद अहमद के आन्दोलन के वर्गीय चरित्र की व्याख्या न करके इसकी उल्टी धार्मिक व्याख्या करके उनको सेकुलर सिद्ध करने का प्रयत्न किया। लड़डू खाने वाले आंखें बन्द कर लेते है कि कहीं कोई लड्डू खाते देख न ले। शुतुरमुर्ग मार्क्सवादी मार्क्सवाद के शत्रु हैं।