Post – 2018-06-21

#मुद्राराक्षस
#विषयान्तर

मुद्रा के स्वभाव की विचित्रता उसके नामकरण से ही आरंभ होती है। मुद्राराक्षस नाम विशाखदत्त के नाटक के आधार पर नहीं चुना गया था, न ही नामकरण डॉ देवराज ने किया था यद्यपि पहली बार इसका उपयोग तार सप्तक की समीक्षा लिखते हुए मुद्रा ने ही किया था। उसका कहना था कि पिताजी के डील डौल और मुखाकृति को देखते हुए मेरे कद-काठी का कोई मेल ही नहीं था। प्रकृति की यह चूक मुझे प्रिंटर्स डेविल जैसी लगती है। प्रिंटर्स डेविल का अर्थ है प्रूफ की अक्षम्य गलती। अपना नामकरण मैने उसी का हिंदी अनुवाद करके किया था। यह बात 1960 की है। तब मैं इस शब्द का अर्थ नहीं जानता था। बाद में कभी शब्दकोश से जांचने की जरूरत नहीं पैदा हुई। लिखने से पहले जांच कर आश्वस्त जरूर हुआ। ऐसा नामकरण कोई दूसरा नहीं नहीं कर सकता था। मुद्रा विक्षुब्ध ऊर्जा का एक पैक था, जिसमें मूर्तिभंजक और आत्मभंजक शक्तियां एक साथ सक्रिय थीं। मूर्तिभंजक अकड़ दिखाने वाले बड़े-बड़ों की छुट्टी कर दे, भले उस पर उसके कभी के उपकार ही क्यों न रहे हों, आत्मभंजक का रुद्र रूप लेता था तब बहुत जतन से जोड़ी जुटाई वस्तुएं, धन, चाकरी, आत्मसम्मान और जीवन सब कुछ नष्ट करने पर उतारू हो जाता था। इसे संजोने, बचाने, बर्वाद होने से बचाने और यत्किंचित सही दिशा में लगाने में जिस एक व्यक्ति की भूमिका है वह हैं इन्द्रा जी, मुद्रा की पत्नी, जिन्हें स्वयं कितना झेलते हुए, अपना सन्तुलन बनाए रखते हुए अपना पति और परिवार संभालना पड़ा यह कोई न जान सका। मैं भी नहीं।
आज मुद्रा का जन्मदिन है। व्यस्तता के कारण इतना ही।