#संस्कृत_की_निर्माण_प्रक्रिया(
भाषा की शुद्धता
हम वर्ण, वर्णन और विवरण को वृण, वृणन और विव्रण लिखें तो आपको आपत्ति होगी। परंतु वैदिक समाज को इस तरह के प्रयोगों की आदत ही नहीं पड़ गई थी बल्कि इसे गलत नहीं मानता था। महान भाषाएं संचार पर ध्यान देती हैं व्याकरण की शुद्धता पर नहीं। शुद्धता किसी प्रकार की हो, एक सीमा के बाद वह एक व्याधि बन जाती इसलिए कार्यसाधक शुद्धता सभी क्षेत्रों में वांछनीय है और अतिवाद स्वयं एक व्याधि। भाषा में एक के लिए जो गलत होता है दूसरे के लिए वही सही होता है। दूसरे का सही गलत भी हो सकता है। भाषा का लक्ष्य संचार है, व्याकरण की शुद्धता की रक्षा करना नहीं। व्याकरण भी इसीलिए जरूरी होता है कि वह संचार को सटीक बनाए रखने में हमारी सहायता करता है। ऐसी गलतियां जिनसे संचार में, अर्थात, अपनी बात श्रोता तक पहुंचाने में बाधा नहीं होती, भाषा के मुख्य प्रयोजन में बाधक नहीं है और इसलिए सह्य है। उच्चारण हो अथवा वाक्य विन्यास व्याकरण की अन्य व्यवस्थाएं, इनका अतिरिक्त आग्रह, भाषा को बहुत छोटे से दायरे में बंद करके उसे सामान्य व्यवहार से बाहर कर देता है और इससे भाषा की लोकप्रियता ही नहीं घटती है, अपितु इससे जुड़ी अहम्मन्यता के कारण सामाजिक समस्याएं भी पैदा होती हैं। यह समझ वैदिक भाषा से परिचित होने से पहले मुझ में नहीं थी।
वैदिक समाज को भी यह शिक्षा परिस्थितियों के कारण अपने यथार्थ से मिली थी। गंगा घाटी के किसान नई भूमि की तलाश में सरस्वती घाटी में पहुंचे थे। उनकी भाषा स्थानीय बोली या बोलियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती थी। स्थानीय बोलियों प्रकृति की प्रकृति क्या थी, इसे हम आज नहीं समझ सकते। उनके विषय में,आगंतुकों की भाषा में परिवर्तन और आज भी इस क्षेत्र की बोलियों में बची रह गई प्रवृतियों के आधार पर, केवल कुछ अनुमान लगा सकते हैं। इनमें से एक थी व्यंजन प्रधानता और स्वरों के लोप की प्रवृत्ति। कुछ नई ध्वनियों का भी प्रवेश हुआ जो पहले आगंतुकों की भाषा में नहीं थी। इनमें हैं अर्धस्वरों का प्रवेश, तालव्य और मूर्धन्य और ऋ और लृ ध्वनियों के प्रति असाधारण अनुराग।
इसके परिणाम स्वरूप हम जिस वर पर विचार करते आए हैं वह कई रूपों में बदला वर >व्र > वृ > व्रि> व्रु। इसके कारण परंपरावादियों के लिए अपनी भाषा को बचाए रखना भी असंभव प्रतीत होने लगा। सच कहें तो जिसे हम जिसे हम संस्कृत कहते हैं वह कुरुक्षेत्र के प्रभाव में परिवर्तित हो गई पूर्वी बोली का इतर नाम है।