#संस्कृत_की_निर्माण_प्रक्रिया(
हुकुम सदर
जब मैं छात्र जीवन में रात को बिछिया छावनी क्षेत्र से गुजरता एक कड़कती हुई आवाज सुनाई पड़ती थी। हुकुम सदर। यह वार्निंग थी। जवाब में अपना परिचय देना होता। बिना जवाब दिए आगे बढ़ने पर वह गोली दाग सकता था। समय लगा यह समझने में कि वह who comes there बोल रहा था।
जब मैं ‘वर’ या सीमा रेखा के सन्दर्भ में ‘वार करने’ की बात कर रहा था तो क्या आपका ध्यान अंग्रेजी के war की ओर गया था? .आदिम चरण पर ठकराव से बचने के लिए मानवकुलों या परिवारों हे भूभाग का आपस में बटवारा किया था तो उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाला भूभाग ही उनका देश था। उनकी अनुमति के बिना या इच्छा के विपरीत इसमें किसी अन्य का प्रवेश इस पर आक्रमण था। आक्रमण या aggression का अर्थ ही है सीमा लांघ जाना या उसके पार कदम रखना। यह युद्ध का आदिम रूप था । अपने ‘देश’ या ‘परि-वार’ की प्राणपण से रक्षा करना प्रत्येंक सदस्य का कर्तव्य था। कुशिक्षित लोगों की देशप्रेम, राष्ट्रनिष्ठा आदि पर मूर्खतापूर्ण फिकरेबाजियों के इस दौर में इस बुनियादी सचाई को रेखाकित करना जरूरी है।
जब घुसने वाले के ‘वारण’ का अर्थ समझा रहे थे तब क्या आपने अंग्रेजी के warn और warning शब्द पर ध्यान दिया था?
‘वर’ से निकले एक महत्वपूर्ण शब्द की चर्चा तो हमने की ही नहीं, वह था ‘वर्म’। ऋग्वेद में इसका और सिर पर शिप्रा का उल्लेख पाकर सर जान मार्शल खासे उत्साह में आ गए थे और यह घोषित कर दिया था किआर्य हेलमेट लगाते और बख्तर पहनते थे, अयस से तो परिचित थे ही इसलिए उन्हें लोहे की जानकारी थी जबकि सिंधु घाटी से लोहे का प्रमाण नहीं मिला है अतः आर्यों का यह हमला लोहे की खोज के बाद हुआ था।
अंधों को अंधेरे में दूर की सूझती है, इसलिए जब इस बात का खंडन हो गया भारत पर आर्यों का कोई हमला हुआ था तो 2003 में मध्यकाल के इतिहास के एक जानकार विद्वान ने जो पूरे भारतीय इतिहास के अधिकारी होने का दावा करते हैं एक अन्य अध्यापक के साथ मिलकर ‘कमिंग ऑफ आयरन’ नाम से एक किताब प्रकाशित की जिसकी ध्वनि ‘कमिंग ऑफ आर्यन’ की थी। इसलिए दोनो को अपना इतिहास ज्ञान दुरुस्त करते हुए यह समझना होगा कि लोह विद्या का प्रसार दुनिया में भारत से हुआ था फिर भी हम गोइंग आफ आइरन की बात करना समझ का भोंडापन ही मानेंगे।
इन मजेदार संदर्भों के बाद यह बताना जरूरी है कि वैदिक काल में बाणोंके प्रहार से रक्षा के लिए सिर पर केसरिया पगड़ी ( शिप्रा शीर्षसु वितता हिरण्ययीः, 5.54.11 शिप्रा – ऊष्णीषं), बांधी जाती थी और वर्म छाती पर लपेटा जाता था। यह रूई या पत्ती भरकर बनी कपड़े की एक पट्टी होती थी जिसे सी कर बनाया जाता था (वर्म सीव्यध्वं बहुलापृथूनि ।10.101.8 ) । वर्म की अवधारणा का स्रोत सोभवतः ऊर्ण या रेशम के धागे का वह कोया है जिसके भीतर रेशम का कीड़ा सुरक्षित रहता है।
जो भी हो जो भी हो यदि वर्म ‘वर’ या ‘वार’ से निकला है, तो उसमें भरी जाने वाली ‘रूई’ ‘रोम’ या ‘रोवा’ का हीनार्थ ‘रोम से भी मुलायम’ है। हम प्रश्न करें आपने वर्म का उल्लेख होने पर अंग्रेजी के warm शब्द पर गौर किया। संभव है दोनों के बीच कोई रिश्ता हो। लीजिए, कोट coat के बारे से कोटर की तो याद आई ही नहीं।
वर से व्युत्पन्न एक दूसरा रोचक शब्द है वरिमाण या व्याप्ति। इसका हवाला पृथ्वी के विस्तार के संदर्भ में आया है ‘वरिमाणं पृथिव्याः’ । महिमा, गरिमा की तरह ‘वरिमा’ या विषुवत रेखा (विषूवृत) की यह अवधारणा कुछ कम रोचक नहीं।