Post – 2018-05-12

मार्क्स भी जा चुके, गांधी तो कभी थे ही नहीं।
सिर्फ जिन्ना ही बचेगा तेरे मैखाने में।।
सिर भी है मांग रहा, जान तो पहले ले ली।
मजा इतना कभी आया न था मिट जाने में।।
बढ़के आ जाम उठा छक के ले पी तो सही
लहू मीने में है, पहले से था पैमाने में।
रंगे हुए हैं तेरे हाथ छिपाता क्यों है
दाग दामन पर है फिर सामने आता क्यों है
और कुछ याद न हो यह भी तुझे भूल गया
माथे पर भी पड़े छींटे थे सितम ढाने में।।
हम पर जो बीतती आई है आके बीतेगी
तेरी आदत है कि तू कर के मुकर जाता है
मुझे मालूम हैं हमदर्दिया तेरी मुझसे
आह भी मेरी न होगी तेरे अफसाने में।।
फिर भी कुछ था तो सही, फिर भी कुछ है तो सही
देखकर मुझको जो घबरा सा उठे है अक्सर
खाक से भी उठा करती है इरादों की लपट
वक्त लगता है सही हर्फ समझ आने में।।