यदि यह सच है कि एनैलिटिका से चुनाव जिताने की जुगत भिड़ाने के लिए साठ हजार करोड़ का सौदा हुआ है तो जीतने की स्थिति बन जाए तो उसकी भरपाई कौन करेगा? बाहुबल हो या जाति-धर्म के गठजोड़ हों या धूर्तता का सहारा हो, लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार हैं और इस अविश्वास की उपज हैं कि जनता उन्हें पसन्द नहीं करती। लोकतंत्र के प्रति समर्पित और बहुलता के साथ एकप्राण भारतीय समाज को बोटी बोटी करके पोपशाही की तैयारियां करने वाले भारतीय बुद्धजीवियों को इतने प्रिय क्यों है? राक्षस के प्राण दूर देश के तोते में बसने की कहानी तो बचपन से सुनता आया था पर साहित्य के तोतों के प्राण राक्षस में कैसे जा बसे? आज की कांग्रेस का चरित्र तो ऐसा ही है।