आभासिक इतिहास और इतिहास की समझ
(असंपादित )
इतिहास को बचाने की कोशिशों के समानंतर उसे नष्ट करने कई कोशिश होती रही है और यह कोशिश अनुचित तरीकों से सत्ता में बने रहने वालों द्वारा अपनी प्रचार शक्ति के माध्यम से की जाती रही है। ये सच को दबाने के लिए अपने हितों के अनुरूप कहानियां गढ़ते और उन्हें ही सच्चे इतिहास के रूप में पेश करते रहे हैं। सचाई की खोज अन्याय के चरित्र को उजागर करने का और उसके अवशेषों पर प्रहार करने का सबसे कारगर तरीका है. झूठ को आज के युग में सत्याभासी रूप में प्रस्तुत करने के लिए अर्धसत्यों का सहारा लिया जाता है जिसमे किसी तथ्य के एक पहलू को उसका समग्र सयता बना दिया जाता है और समग्र सत्य की हत्या कर दी जाती है और यह योजनाबद्ध रूप में किया जाता है इसलिए इसके पीछे इरादों को समझने में धुरीण पंडितों से भी चूक हो जाती है..
बच्चों के साथ विनोद के लिए मैं एक खेल खेलता था. पूछता, बताओ तुम को क्या पसंद है? आम खाओगे? हाँ, मिठाई खाओगे? हाँ. काके खाओगे? हाँ. थप्पड़ खाओगे? हाँ. और फिर मैं ताली बजा कर हंसता तो वह भी नहीं नही करके हंसता.
पर इतिहास ऐसे सवालों पर बड़े बड़े पंडित हाँ कर बैठते हैं और याद दिलाने पर भी अपनी गलती समझ नहीं पाते. अपनी पिछली चर्चा पर लौटते हुए हम एक प्रश्नमाला पर नजर डालें:
१. क्या यह सच नही है कि भारत पर आक्रमण होते रहे हैं और विजेता इस पर शासन करते रहे हैं?
उ. सच है.
२. क्या यह सच नही है कि विजेता सैनिक और सहायक यहाँ बस जाते रहे है?
उ. सच है.
३. क्या भारत की सस्कृतिक बहुलता में उनकी भूमिका नहीं रही है?
उ. रही है.
४. क्या यह संभव नही कि सुदूर अतीत में इसी तह आर्यों ने आक्रमण करके भारत में प्रवेश किया हो और भारत पर अधिकार करके स्थानीय जनों को दास बना लिया हो और अपने सेवा कार्य में लगा लिया हो?
उ. संभव तो है.
५. क्या यह संभव नहीं कि जो काम आर्यों ने द्रविड़ भाषियों के साथ किया, वही काम उनसे पहले
उसी मध्येसिया से आए द्रविड़ों ने पहले बसे मुंडा जनों के साथ किया हो और उन्होंने स्वयं आक्रमण करके अपने से पहले के निगारों या निग्रोवत जनों के साथ किया हो.
उ, असंभव तो नहीं है..
६. जब तुम इतने प्रतिभाशाली हो कि इन तर्कों को समझ सको तो तुम्हे उचित सम्मान, पद , स्वीकृति तो मिलनी ही चाहिए सो यह रही, अब बताओ जिसे तुम संभावना मानते हो वह संभावना है या सत्य?
उ. लगता तो सत्य ही है।
७. तो जो सच है उससे अपने लोगों को परिचित तो कराओ.
उ. करना कराना कुछ नही. मुझे विश्वास दिलाना है कि ऐसा ही है.
८. अब बताओ क्या यह सच नही है कि भारत की प्रकृति कृपालु रही है. यहाँ अल्प प्रयास से जीवन निर्वाह संभव था,जब कि जहां प्रकृति अधिक क्रूर रही है इसलिए वहां जीवट और कौशल का विकास हुआ जब कि भारत में बसने के कुछ समय बाद शिथिलता आजाती रही है इसलिए इसमें ऊर्जा और नवोन्मेष बाहर से आक्रमणकारियों के माध्यम से आता रहा है?
उ. लगता तो ऐसा ही है.
९ . जब यहाँ सदा से इस भूभाग पर विजेताओं का ही राज्य रहा है तो क्या विजेता होने के नाते ब्रिटेन को इस पर शासन करने का नैतिक अधिकार है?
इस प्रश्नावली की यह तार्किक परिणति मोहभंग हो जाता है जैसे आइजेंक ने सेंस एंड नोंसेंस इन सोइकोलोजी में सम्मोहन प्रक्रिया में उस लेडी का हवाला दिया है जो अपने को सम्मोहित करने वाले निदेशक के सभी आदेश मानती जाती है और जब वह कहता है नंगी हो जाओ तो सम्मोहन भंग हो जाता है और उसे जोर का तमाचा लगाती है। इस अंतिम प्रस्ताव का सकारात्मक उत्तर किसी ने न दिया. यह सत्ता का बाहरी तर्क बना रहा और व्यंजित रहा. प्रश्न यह है सम्मोहन के सीधे सादे और कुछ कुछ सही लगने वाले तथ्यों को जो स्वीकृति दी गई थी उनके पीछे भी ऎसी ही शरारत थी और इसकी एक एक कड़ी गलत थी इसे न समझा गया क्योंकि हम उनके ही जुटाए और परोसे गए ज्ञान को ही अपना ज्ञान मान वैठे थे।
अब हम ऊपरी कड़ियों की बारीकी से जांच करें`तो पायेंगे कि इसकी हर कड़ी गलत है। हम सभी को यथातथ्य लें तो विषयविस्तार होगा, इसलिए स्थिति को प्रस्तुत करेंगे जिनमे सभी का समाधान हो जाए.
१. यह अधूरी सचाई है कि भारत पर आक्रमण होते रहे हैं। पूरी सचाई यह है कि दुनिया के सभी देशों पर आक्रमण होते रहे हैं और भारत इसका अपवाद नही रहा है।भारतीय इतिहास को आक्रमणों की शृंखला के इतिहास के रूप में चित्रित करने वाले अंग्रेज इतिहासकारों के अपने ब्रिटेन का इतिहास यह कि इस पर रोम, फ्रांस, जर्मनी, नार्वे, स्वीडन, स्कैंडिनेविया, स्पेन, मध्यएशिया आदि के पचासों आक्रमण हुए ( तालिका लम्बी है ) और वेल्स, स्काट, इंगलिश, आयरिश के आन्तरिक तनाव आज तक बने हुए हैं । परन्तु तथ्य के रूप में इसे स्वीकार करते हुए भी व्याख्या के स्तर पर कभी नहीं माना कि इसको ऊर्जा आक्रमणकारियों से मिलती रही और न यह माँने कि डचों और पुर्तगालियों के डर से लम्बे समय तक उनका साहस उस रास्ते भारत आने का न हुआ और अमेरिका के उत्तर से कोई जलमार्ग तलाशने में दर्जनों दुर्धटनाओं को झेलने के बाद मरने जीने का अंतिम खतरा मोल लेना पड़ा।
२. यह अधूरा सच है कि जीतने वाले अधिक बहादुर (जीवट वाले) रहे हैं, पूरा सच यह कि वे अधिक क्रूर और धोखेबाज रहे हैं और उनका इतिहास इस तरह की दगाबाजियों से भरा रहा है और हम अंग्रेजों से भी इन दगाबाजी के कारण हारे।
३. यह सच नहीं है कि उनके कारण सांस्कृूतिक विकास हुआ,सांस्कृतिक विकास में उनकी कोई भूमिका हो ही नहीं सकती। विनाश में उनका हाथ अवश्य था.
४.. भारतीय जलवायु सभ्यता और संस्कृति के अधिक अनुरूप रही है. इसकी प्राकृतिक समृद्धि भौतिक विकास में बाधक नही साधक रही है. सभ्यता के केंद्र आर्थिक समृद्धि पर निर्भर करते हैं.
५. भारत में जीवट की कमी कभी न थी. इसने जितने आक्रमणों को विफल किया – इतिहास पुराना है- उसकी तुलना किसी अन्य देश से करे तो शौर्य का साक्षत्कार हो जाएगा
६. छल प्रपंच से जीतने वाले भी अपनी सुरक्षा के लिए भारतीय योद्धाओं पर ही भरोसा करते थे.
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यहां मै यह नहीं कह रहा कि अंग्रेज कायर थे, बल्कि यह कि इतिहास हो या वर्तमान (दोनों अलग नहीं है, इसलिए इतिहासबोध वर्तमान की समझ या बोध से अलग नहीं होता, न बोध के लिए सद्भावना की जरूरत होती है। भावना या रागात्मकता वस्तुबोध में बाधक होती है, इसलिए समझ विवेचन के स्तर पर वस्तुपरकता, निर्ममता और व्यवहार के स्तर पर सदाशयता अपेक्षित है जिसकी छूट हमें वर्तमान तो देता है, इतिहास नहीं देता) हमारा ध्यान जिन बातों पर जाना चाहिए कि
1. व्याख्याकार ने जिन तथ्यों के आधार पर अपने निष्किर्ष निकाले हैं क्या वे प्रामाणिक हैं, अर्थात् वे (क) सही तो हैं? (ख) सही अनुपात में तो हैं ? (ग) स्थान, काल, संदर्भ में विचलन तो नहीं है?
२. जो नतीजे निकाले गए हे क्या परिणामों से उनकी पुष्टि होती है? इतिहास में तो परिणाम मिलेंगे, पर वर्तमान के परिणाम आने में ही नहीं, परिघटना से संबंधित सूचनाओं के सुलभ होने में समय लगेगा इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचने की हड़बड़ी से बचा गया या नहीं?
अब इन्ही सवालों के जवाब हम कल तलाशेंगे ? आज लिखने में समस्या आ रही है.