कुछ था
जो अभी जह्न में आकर उतर गया
शायद तेरा खयाल था,
छिपने की अदा थी।
मैं ढूढ़ रहा था तुझे
जब सामने तू था
मंदिर की घंटियां थीं
अजानों की सदा थी।।
मैं छिपना चाहता था
अलग हो के भी खुद से
ऍक कब्र,
मिली वह न,
ज़िंदगी ही बदा थी।
ऍक दूसरे के दिल में रहें,
फूल खिलायें,
ख्वाहिश थी,
ये ख्वाहिश कभी
तुममें भी कभी थी ।।