Post – 2017-11-14

पत्थर की नजर. पत्थर का जिगर
पत्थर की जहन है क्या कहिए।
जो देखा, समझा बोला था
उसमें न बदल है. क्या कहिए ।।

हम पीटते थे, अब पिटते हैं
हम तोड़ते थे, अब टुकड़े हैं।
हम जीत रहे थे, हार गए
फिर भी ये अकड़ है क्या कहिए।।

देखा तो अंधेरा दीखेगा
सोचा तो ढकेले जाएंगे
बोला तो बगावत का सबूत
बस शोर है हासिल क्या कहिए।।

( भारतीय कम्युनिस्टों को समर्पित)
14.11.17