मैं उन लोगों को सांस्कृतिक दृष्टि से अनभिज्ञ, अशिष्ट और असभ्य मानता हूं जो आतिशबाजी पर रोक को धार्मिक भेदभाव के ऱूप में पेश कर रहे हैं। कारण निम्न हैंः
1, जैसा कि आतिशबाजी शब्द से ही प्रकट है, यह न तो हमारी खोज है, न हमारी परंपरा का हिस्सा।
2. दीपावली शुचिता का पर्व है, साधना और सिद्धि का पर्व, इसलिए इससे पहले नाभदान से लेकर घर आंगन की धुलाई, सफाई, की जाती है, और साधना के लिए अपेक्षित शांति का निर्वाह किया जाता रहा है। केवल घर की सफाई नही, देनदारी आदि सबकी।
3. यह केवल ज्योतिपर्व नहीं है। किसी तरह प्रकाश नहीं, मशाल, किरोसिन के दिए, लालाट्न, पेट्रोमैक्स या मोमबत्तयों या बल्ब और लड़ियों का नहीं, घी और तेल के दीयों का प्रकाश, जो केवल दिखावे के लिए नहीं, अंधेरे कोनों में भी, नाभदान के पास भी, घूरे पर भी। रखा जाता था बरसात के बाद बचे कीटपतंगविनाशाय।
4. आतिशबाजी और पटाखे इस पूरी भावना के विपरीत है, इनसे वायु प्रदूषण होता है, ध्वनिप्रदूषण होता है, गंदगी फैलती है, घुटन पैदा होती है, असंख्य छोटी बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं, जैसे हमने अपनी परंपरा की बचकानी समझ या नासमझी से स्वय उसके सारतत्व को नष्ट कर दिया हो। दूसरे यदि अपने पर्वों पर आतिशबाजी करें भी तो हमें अपनी हजारो साल की परंपरा की शुचिता की रक्षा के लिए इससे बचना चाहिए।
5. दुनिया के किसी सभ्य देश में कोई व्यक्ति निजी अातिशबाजी नही कर सकता। इसका भव्य सामूहिक आयोजन अग्निशमन की व्यवस्था के साथ होता है और इसीलिए वहां आतिशबाजी के क्षेत्र में जैसी प्रगति हुई है वह हमारे लिए विस्मयकारी है जब कि दुनिया में सबसे अधिक पैसा हम बर्वाद करते हैं और मूर्खों की तरह करते है।
इसे कट पेस्ट करके बचा लें, आप की समझ में न भी आए तो दीपावली पर निबंध लिखने के लिए आप के बच्चों के काम आएगा।
धिर भी अदालत का फैसला अधूरा, नादानी भरा और आपाधापी में किया गया, व्यापारियों के प्रति अन्यायपूर्ण और आत्मघाती फैसला है।