शिखंडी आन्दोलन
मुझे बीएचयू की छात्राओं की मांग इतनी उचित और इतनी व्यावहारिक लग रही थी कि आश्चर्य इस पर हो रहा था कोई कुलपति किसी भी विचारधारा का क्यों न हो, उनको अस्वीकार कैसे कर सकता है। उल्टे उपकुलपति ने परिसर में माग रखने वाली लड़कियों को दंडित करने के लिए पुलिस को बुला लिया। ऐसे कुलपति को तत्काल निकाल दिया जाना चाहिए, यह मेरा मत था इसलिए आश्चर्य इस पर भी हो रहा था कि ऐसा क्यों नहीं किया गया।
आश्चर्य इस मांग के लिए चुने गए मौके पर भी हो रहा था जो मोदी बनारस के लिए जो चौदह उपहार देने गए थे उससे ध्यान हटाने के लिए ऐसा हंगामा खड़ा करने के प्रयोजन से आयोजित किया गया लगता था, कि समाचार चैनेलों का सारा जोर और शोर इसी पर केन्द्रित हो जाय। आधी रात के समय धरना और दोनों प्रवेश द्वारों को बन्द कर देना अहिंसक होते हुए भी उपद्रवी योजना प्रतीत हो रही थी इसलिए मैं उलझन में था कि इसका भीतरी सच क्या है? बाद में जब तोड़ फोड़, आगजनी की और पेट्रोल बम फोड़ने की वारदात हुई तो राजनीतिक षड्यन्त्र का चरित्र उजागर हो गया।
पर आश्चर्यों में परम आशचर्य यह एकता सिंह है जिसने कथित रूप से आरंभ में इसका नेतृत्व किया था। उसका मोहभंग और यह आरोप कि इसे जेएनयू, दिवि, इलाहाबाद से गए हुए छात्रों छात्राओं ने हाईजैक कर लिया । एक चैनल मनचाही रपट तैयार करने के लिए ट्यूटर्ड लड़कियों को अलग गाड़ी में भर कर ले कर गया था और उनका बयान लेकर रपट बनाई।
समाचार चैनलों का सुर एक झटके में ऐसा बदला था जैसे उनको खरीद लिया गया हो।
अब इसके तीन पक्ष चिन्ता पैदा करते हैं। पहला, इसके पीछे काम करने वाला पैसा । अयोध्या में प्रदर्शन के लिए अर्जुन सिंह ने सहमत को भारी रकम दी थी। यहां इतनी संस्थाएं और चैनल खरीदे गए।
दूसरा है समाचार चैनलों का आपराधिक चरित्र जो सुपारी किलर का हो चला है।
तीसरा है विरोध की राजनीति का अपराधीकरण। जो लड़के छेड़छाड़ के दोषी थे, वे आन्दोलनकारियों में शामिल थे और उन्हें गिरफतार भी किया गया।
जो लोग आन्दोलन से बहुत उत्साहित थे उन्हें एकता सिंह की पहचान करते हुए इन आशंकाओं का निराकरण करना चाहिए।