Post – 2017-09-09

किनहि न व्यापे जगत गति?

इसका जवाब तो आसान नहीं है, पर इसका जवाब मेरे पास है. यदि मै मानू कि मैं तो गलत हो ही नही सकता, कोई कुछ कहे, उसकी आपत्तियों का सटीक जवाब न दे सकूँ, अपनी मान्यता पर दृढ रहूँ तो मैं न चाहूँ तो भी उस कतार में खडा कर दिया जाऊँगा जिसे जगत गति नहीं व्यापती और जिन्हें जगत गति नहीं व्यापती उनके साथ जगत चल ही नहीं सकता ऐसी स्थिति में वह यूथ निष्काषित यूथपति की तरह तब तक ही जीवित रह सकता है जब तक उसके जैव शत्रुओं की नज़र उस पर नहीं पड़ती.

जिस जैव साम्य को दृष्टान्त के लिए पेश किया उसका सार यह है कि यदि नई पीढ़ी मेरी बुजुर्गी का लिहाज कर के मेरी कटु आलोचना न करे तो वह सही विचार की ह्त्या करके एक व्यक्ति को उसकी बुजुर्गी के कारण बचा रही है जिसे कालदेव भी नहीं बचाना पसंद करेंगे. यदि आप विचार की रक्षा करते हैं तो मेरे भी सही विचारों की रक्षा होगी. यदि जहां मुझे गलत पाया गया और किसी लिहाज से अपना विरोध प्रकट करने में ढील दी गयी तो गलत विचारों का विस्तार होगा. परंतु उसी नियम से मैंने आपके विरोध के सामने यह दिखाने के लिए कि मैं विरोध का सम्मान करता हूँ और उनकी आपत्तियों को मान लेता हूँ उनको जांचता नही हूँ तो यह भी एक गलत विरासत होगी इसलिए मैं अपने विचारों को सही सिद्ध करने के लिए अंत तक लडूंगा और उस दिन की प्रतीक्षा करूगा जब यूथपति को चहेंट कर बाहर करने वाला विचार लेकर आने वाला केन्द्रीयता पा लेता है.

मैंने एक पोस्ट को अपने अज्ञान के कारण बहुत समीचीन पाकर कॉपी पेस्ट करते हुए अपनी चिंताएं रखी. उनके समर्थन में बहुत सी नई सूचनाएं आईं और कुछ मित्रों की चिंताएं भी आईं कि मैंने ऐसा सोचा और माना कैसे. जिस सम्मान और आत्मीय भाषा में विरोध और असहमति प्रकट की गई उससे अभीभूत हूँ पर उससे भी अधिक इस बात से कि असहमति और प्रतिरोध को भावुकता ने पूरी तरह ग्रस नही लिया है. सही होना उतना सही नहीं है जितना सही होने का संघर्ष.

अब मैं उन आपत्तियों को अपनी तरफ से खारिज करने की कोशिश करूंगा और असहमति रखने वालों से अपेक्षा करूंगा कि वे तार्किक ढंग से मुझे गलत सिद्ध करें जिससे संवाद तो चले, अभी तलक का हाल यह है कि मैं अमुक शिविर का हूँ, उसकी मान्यता यह है, आप के तर्क और प्रमाण जो भी हों वे हमारे शिविर में मानी नहीं जा सकते.

इस देश में सम्प्रदाय और साम्प्रदायिकता का प्रयोग वैचारिक घरानों के लिए ही होता था. शैव सम्प्रदाय, नाथ सम्प्रदाय, इत्यादि.

आपत्तियों में जो बिंदु उठाये गए है उन्हें सूत्रबद्ध करें तो :
१. क्या आपत्तिजनक कथन के लिए किसी की ह्त्या का समर्थन किया जा सकता है?
२. क्या जिस आपत्तिजनक कथन से आपको आपत्ति है उसके इतिहास से, अर्थात जे एन यू के उस विवाद से आप अवगत हैं जिसमें यह टिप्पणी की गई थी?
३. क्या आप जैसे विचारवान व्यक्ति को इतनी सतही बहस में उतरना चाहये था ?
यदि कोई और आपत्ति छूट गई हो तो उसकी उपेक्षा मेरा इरादा न था. इन सभी आपत्तियों के साथ मैं ‘नही’ को एकमात्र उत्तर मानता हूँ अर्थात आप की सभी बातें सही हैं और यदि मै इनका समर्थन करूँ या ऐसा किया हो तो गलत हूँ.

परन्तु क्या मेरे कथन में, इस पोस्ट में ही नहीं, मेरे पूरे लेखन में इस बात का समर्थन दिखायी देता है कि हमें कानून और व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर कौन अपराधी है, कौन दंडनीय इसका फैसला करने को अपना मुख्य कार्यभार मानना चाहिए और पुलिस और न्याय व्यवस्था पर कब्जा कर लेना चाहिये या इस बात पर बल है कि हमें अपना काम अपने क्षेत्र की मर्यादाओं का निर्वाह करते हुए करना चाहिए ताकि दूसरों को अपने कार्यक्षेत्र में काम करने में हमारे कारण बाधा न पड़े. इसका निर्णय मैं असहमत होनेवाले मित्रों पर, उनकी आयु और अनुभव जो भी हो, छोड़ता हूँ पर इसके पीछे मेरी एक चालाकी भी है. इस बहाने वे मेरी दूसरी किताबों को पढ़ेंगे तो सही.

मेरी चिंता के क्षेत्र में कानून और न्याय व्यवस्था आती ही नही, आता है समाज की सोच में आ रहा बदलाव. यदि आप संतुष्ट है कि बदलाव आपकी कारगुजारियों से इच्छित दिशा में जा रहा है तो मुझे कुछ कहने की जगह एक मुहावरा याद दिलाना बाक़ी रह जाता है – हाथ कंगन को आरसी क्या?

जे एन यू के समय मे यदि घबराए हुए ए बी पी की और से कीचड़ की होली आरम्भ हुई थी और आप ने पानी और साबुन का इस्तेमाल करते हुए उसे विफल नही किया और उस होली में शामिल हो गए तो आप यह कैसे कह सकते है कि कीचड़ फेंकने वाले गंदे है? गाली देकर गाली की प्रतियोगिता को समाप्त नहीं किया जा सकता.

अब यदि जो सूचनाएं भिन्न प्रतिक्रया में प्रमाणों के साथ आई हैं वे रिकॉर्ड पर हैंउन पर भी ध्यान दिया जाय तो उनसे साबित होता है कि जिसे आपने शहीद बना दिया वह एक ब्लैकमेलर थी. तात्कालिक प्रतिक्रया में दुश्मन के दुश्मन को अपना मित्र मान कर उसके साथ खड़ा हो जाने वाले यह तय नही करते कि वह दुश्मन है या सुपारी लेने वाला अपराध कर्मी. सभी टिप्पणियों का आलोचनात्मक पाठ करें. इसने एबीवीपी के उस आरोप को कि ये आजादी के नामपर निर्बन्ध कामाचार की,माग कर रहे है तस्दीक करते हुए अपने अख़बार के लिए मसालेदार और भड़काऊ माल बनाते हुए गली गलौज में बदल दिया था. आप उसे विचार मानें मैं घटिया दर्जे का व्यापार मानता हूँ, जब कि इसे कुंठामुक्त वातावरण का नर्शानिक प्रश्न बनाकर स्वस्थ बहस में बदलने का काम आपका था. सोचिये आप में से कितनों ने अपनी मा से वः सवाल पूछा होगा या पूछ सकते हैं जो उसने संघियों से पूछने को कहा था. ऐसा किसी ने किया हो तो बताए.

जंग जारी रहे तो अच्छा.