Post – 2017-09-07

मूर्खता माहात्म्य

यूं तो मैं अपनी मूर्खताओं पर आज की अपनी पोस्ट में लिखूंगा, पर उसकी भूमिका के रूप में यह बता दूं कि मूर्ख लोग दुष्ट नहीं होते। दुष्ट व्यक्ति मूर्ख नहीं हो सकता, अपराधी हो सकता है। दोनों में बुनियादी अंतर यह है कि मूर्ख अपना नुकसान करता और उस नुकसान से भी कुछ नहीं सीखता; दुष्ट दूसरों का नुकसान करता है और अपने प्रत्येक अनुभव से सीखता है। मूर्ख अज्ञानी भी नहीं होता। इतना ज्ञान बटोर लेता है कि उसे संभाल तक नही ं पाता, ऊपर से प्रतिभाशाली भी होता है, इसलिए अपनी अक्ल पर इतना भरोसा करता है कि किसी की सुनता ही नहीं, अपने सामने किसी को कुछ समझता भी नहीं, पर उसके सदाशयतापूर्ण कामों से भी देश और समाज और स्वयं उसका जितना नुकसान होता है इसका उसे पता तक नहीं होता।

दो दिन पहले टीचर्स डे था, कल मूर्ख दिवस। टीचर्स डे साल में एक बार आता है, मूर्ख दिवस साल में कितनी बार आ सकता है यह दुर्घटनाओं पर निर्भर करता है। वह इन्हें अवसर समझता है। परन्तु कल मूर्खों को असाधारण टक्कर मूढों से मिली। मूढ़ का मूर्खों से मुख्य भेद यह है कि इनमें न सदाशयता होती है न प्रतिभा पर ढोंग दोनों का करते हैं। दुर्भाग्य इनके लिए अवसर तो होता ही है यह इनके अस्तित्व के लिए इतना जरूरी होता है कि ये स्वयं दुर्भाग्यपूर्णस्थितियां तैयार कर लेते हैं, मूर्ख इस मामले में कुछ पीछे रह जाते हैं।

दोनों में धैर्य का अभाव धड़ल्लेबाजी में परिणत हो जाता है और दोनों मानते हैं कि कानून और न्याय व्यवस्था उन्हें सौंप दी जाए तो ही सबका कल्याण है। इसके लिए इंतजार नही कर पाते, इसे छीन कर अपने हाथ में ले लेते हैं, जिसे अपराधी तय कर देते हैं, पुलिस से अपेक्षा करते हैं कि वह उसे उनके सामने पेश करे। अपराध को देखते अपराधियों की संख्या इतनी अधिक होती है कि पुलिस उन्हें पकड़ ही नहीं सकती। इसका अनुमान करते हुए फर्माते हैं, उस चौपट राजा को हटाओ जिसके राज में ऐसी जघन्य दुर्घटना हुईं। पुलिस इसके लिए सही धाराएं तलाशती रह जाती है और अपराधी पकड़ में आता ही नहीं, यहां तक कि उसकी सही पहचान तक नहीं हो पाती। मुसीबत तब और बढ़ जाती जब राजा भी उसी का निकलता है जिसकी भीड़ होती है। राजा खुद भीड़ की बोली बोलता है। वे पीछे नहीं हटते । गर्जना करते, हैं महाराज को गद्दी से से उतारो। सहानुभूति की कातर पुकार शंखनाद बनने की कोशिश में फुस्सनाद बनकर रह जाती है और हर फुस्स से कुछ और भुस्स होते जाते हैं, पर तरीका नहीं बदलते। भविष्य में इससे बहुत बड़े दुर्भाग्य की प्रतीक्षा करते हैं जब सभी एक साथ मिलकर जोर लगाएंगे और गद्दी छीन कर ही दम लेंगे।