Post – 2017-08-31

टेलीफोन क्लर्क
सुनने में यह नाम कुछ अजीब लगेगा। सही नाम टेलीफोन अटेंडेंट होता है। मेरे आग्रह के कारण शायद इसका नाम बदल कर टेलीफोन क्लर्क कर दिया गया। पहले इस पर पढ़े लिखे खलासी या ऐसे फायरमैन काम किया करते थे जो अपना दामन काला न करना चाहते थे फिर भी लौटते कालांकित होकर ही थे। हाल ही अटेंडेंट क्लर्क कहे जाने लगे थे।
• काम था ड्यूटी पर आने वाले क्रू के सदस्यों का नाम, आने का समय, शेड से रवाना होने का समय एक चार्ट पर इसके खानों में लिख कर हस्ताक्षर करना, वापस आने वाले क्रू का पहुँचने का टाइम लिखना. इन्हें sign on और sign off कहते थे। और उस पर्चे को उनका टिकेट कहा जाता था। यह टिकेट ट्रेन से engin के जुड़ने के बाद गार्ड के सुपुर्द हो जाता, जिसमें वह ट्रेन कि गति, विलम्ब आदि के बारे में ब्योरा लिखता। इसके बारे में हम अंत में चर्चा करेंगे। टेलीफोन क्लर्क के पास फ़ोन तो दो होते, एक स्थानीय और दूसरा सीधे पॉवर कंट्रोलर से जुडाः, पर फोन उठाने की नौबत बहुत कम आती।
• टेलीफोन क्लर्क का कमरा कभी बन्द न होता। कमरे में एक बड़ी सी मेज, उसके आगे एक बेंच दरवाजे से हटकर दीवारों से सटी दो बेंचें। मेज पर दोनों टेलीफोन, कलमदान और क्रू को जारी किए जाने वाले छपे टिकट।
पॉवर कंट्रोलर का फोन तब आता जब किसी ट्रेन इंजन रास्ते में फ़ेल हो गया हो या उसकी गति मंद पड़ गई हो या कोई एक्सीडेंट हो गया हो। एक्सीडेंट या इंजिन फेल्योर की स्थिति से निबटने के लिए एक क्रू प्रतीक्षा में बेंचों पर बैठा रहता। उसका इंजिन पूरी तरह तैयार पास ही खड़ा रहता। दूसरी बेंच पर जाने वाली ट्रेनों के स्टाफ को जगाने के लिए हरकारे बैठते जिन्हें कालमैन कहा जाता. स्टाफ को ट्रेन छूटने से दो घंटा पहले जगाना होता। सवारी गाड़ियों के क्रू और समय का पता कालमैनों को होता, मालगाड़ियों के समय चालक दल को बुलवाना टेलीफोन क्लर्क का काम होता। चालक दल अपने नियत समय पर पहुंच कर अपने इंजिन को तैयार करते. ट्रेन लेट होने पर वे वहीं बैठे प्रतीक्षा करते और यदि इतनी लेट हो जाती कि ड्यूटी पूरी हो जाय तो समय रहते दूसरे दल को बुलाना होता। सामान्यतः दो घंटे पहले से उनकी ड्यूटी आरम्भ हो जाती। किसी आपात स्थिति में वेटिंग क्रू के रवाना होते ही एक अन्य दल को प्रतीक्षा के लिए बुलाना होता। इसी तरह की स्थिति में एक कवि को लिखना पड़ा था ‘they also work who only stand and wait’ । क्योंकि प्रतीक्षा करते समय भी वे ड्यूटी पर होते।

एक काल मैन के किसी चालक दल को जगाने के लिए जाने के बाद किसी अन्य स्थिति में किसी अन्य दल को बुलाने के लिए दूसरा काल मैन होता। हमारी मेज के सामने की बेंच पर ड्यूटी पर रवाना होने वाले ड्राईवर या ड्यूटी बजा कर लौटे ड्राईवर साइन आन यासाइन आफ के लिए या कंप्लेंट बुक करने या कराने लिए बैठते। इस तरह आस पास खाली बैठे और समय काटने के लिए गपशप करते हुए वे हलके कोलाहल से कमरे को गुलज़ार रखते. पॉवर कंट्रोलर का दूसरा काम था अगले चौबीस घंटे में चलने वाली मालगाड़ियों की समय सारिणी सूचित करना जिसे टेलेफोन क्लर्क नोट करके सुपरवाईजर को खबर करवा देता ताकि वह उनके लिए इंजिन और स्टाफ आदि समय से तैयार रखे। यह सारणी शाम दस ग्यारह के लगभग मिलती।

टेलीफोन क्लर्क का एक काम बहुत टेढ़ा था और कुछ दूर तक खतरनाक भी. यह था साइन ऑफ़ करनेवाले अनपढ़ ड्राईवरों के मरम्मत रजिस्टर (complaint book) में इंजिन के विभिन्न पुर्जों में आई खराबी दर्ज करना जिसे फिटर और इंजिनियर ठीक करते। ए ग्रेड ड्राईवर पढ़े लिखे थे. पहले ए ग्रेड फायरमैन अंग्रेज ही हो सकते थे। वे ही ए ग्रेड ड्राईवर होते, मेल और एक्सप्रेस ट्रेनें वे ही चलाते। संभव है पहले सभी सवारी गाड़ियों पर वे ही चलाते रहे हों। भारतीय खलासी भर्ती होते रहे हों और अपनी योग्यता के बल पर उनमें से कुछ मेल और एक्सप्रेस गाड़ियों के खलासी और fireman बन कर सी ग्रेड ड्राईवर बन कर मॉल गाड़ियां और फिर पैसेंजर गाड़िया चलाते रहे हो। अब उनके चले जाने के बाद विरल अपवादों को छोडकर सभी पर भारतीय थे। जो अपवाद थे उनमें एक तो वह फोरमैन था जिसे सबक सिखाने के बाद मैं गोरखपुर आ सका था, गोरखपुर शेड में रोज़ेरियो और लाज़रस नाम के दो ए ग्रेड ड्राईवर थे और हेडक्वार्टर में चीफ मेकनिकल इंजीनियर था। ये सभी इसलिए रुक गए थे कि इंग्लैंड में कोई काम मिले या नहीं इसलिए पूरा लाभ लेकर चलें। दोनों मेरे सामने ही रिटायर हो कर लन्दन रवाना हुए।

सार यह कि मेल और एक्सप्रेस ट्रेने 4-12 की shift में नही आती थी और फिर भी सबसे अधिक गाड़ियां इसी बीच प्रधान स्टेशनों पर इसी बीच पहुंचती और इस बीच ही छूटती है. पूर्वोत्तर रेल का मुख्यालय गोरखपुर इसका अपवाद कैसे हो सकता था। इसका सबसे बड़ा नुक्सान यह था कि साइन on करने वालों की तुलना में ही sign off करने वालों की संख्या भी इसी में अधिक थी। उन्होंने हिंदी तकनीकी शब्दावली निर्माताओं से पहले ही व्यावहारिक हिंदी कोश का निर्माण आरम्भ कर दिया था. और किया हिन्दी का उपकार करने के लिए न था, सनचार की बाध्यता के कारण किया था. अब तो बहुत कुछ भूल गया पर जो याद है उसका नमूना देखना जरूरी है:
स्टे प्लेट – ताना प्लेट
हेडबोर्ड – हैदर बोर्ड
अब तो याद ही नहीं कि वे बारदू, मक्खी, आदि का प्रयोग किन पुर्जों के लिए करते थे। इसकी खूबसूरती यह थी कि सभी इसे समझते थे, इसी रूप में लिख दें, जो लिखना पड़ता था, और यह सामान्य पदावली इतनी स्वीकार्य थी कि मरम्मत हो जाती थी।

शाम चार से बारह की पारी में जितनी ट्रेनें निकलतीं या पहुंचती उतनी बाक़ी दोनों पारियों में मिला कर भी न निकलती थीं, इसलिए उनमें कुछ आराम था। इस व्यस्तता के कारण चार-बारह की पारी किसी को पसंद न थी जब कि मैं केवल इस पारी में स्थाई रह कर ही पढाई कर सकता था। इसलिए जब मैंने अपने जोडीदारों से यह प्रस्ताव रखा कि मैं इसमें स्थाई रहना चाहता हूँ, वे आपस में अपनी पारी बदलते रहें तो वे तैयार हो गए और मैंने इसे औपचारिक रूप देने के लिए फोरमैन को अवगत करा दिया। मुश्किलें मुश्किलों को झेलने से हल होती हैं। रास्ता उनके बीच से भी निकलता है।