Post – 2017-08-28

कितना दुखद है कि चीन को समझना पडा कि उसका सामना एक अधिक समर्थ कूटविद से हो रहा है और सारी बन्दर भभकियों के बाद, आर्थिक घाटा सह कर, उसे भारत की शर्त माननी पड़ी। लानत है ऎसी कूटनीति को जिसमें वह सही साबित हो जाय जिसे हम गलत मानते और साबित करते है!
जिसकी जानकारी और नीति से वह बाबा जेल दर जेल भोगने को मजबूर हुआ, जिसे कांग्रेस ने अंडे की तरह बचा कर रखा था।
नमन उन बहादुर लड़कियों को, जान पर खेल कर सच को उजागर करने वाले उस पत्रकार को जैसा आज कोई है या नहीं, यह पता लगाना होगा, नमन केन्द्रीय जाच ब्यूरो को, जिसने अधिकतम दंड की जिद बनाए रखी, उस अदालत को जिसने इसका सम्मान किया, और नमन तो नहीं पर ‘हाँ ठीक ही लगता है’ उस निज़ाम को जिसमें यह संभव हुआ।
यार इसे बदलो, यह देश के हित में नहीं है। महागठबंधन करो और नतीजा सामने होगा।