“मैं इतने सारे दलों के होते हुए मार्क्सवादियों की ही आलोचना इसलिए नहीं करता कि देश को सबसे बड़ा खतरा उनसे है, बल्कि इसलिए कि मैं मानता हूँ आसन्न राजनीतिक खतरों से उद्धार का एकमात्र रास्ता मार्क्सवाद की सही समझ से ही निकल सकता है. दूसरे किसी दल के पास न तो कोई सैद्धांतिक आधार बचा है न वह रीढ़ जिसकी रक्षा मार्क्सवादियों ने दूसरों की अपेक्षा अधिक दृढ़ता से इस दौर में भी किया है जब उनका स्वयं का विश्वास मार्क्सवादी विकल्प से उठ चुका है और लगभग सभी ने अपनी अगली पीढ़ियों को पूंजीवादी तंत्र में कहीं न कही फिट होने के लिए तैयार किया है.
“पूंजीवाद की मार्क्सवाद पर जितनी विजय बाज़ार में दिखाई देती है उससे भी बड़ी विजय मार्क्सवादी तेवर अपनानेवालों के अपने घरों में दिखाई देता है जिसका सामना करना उनके लिए अरुचिकर हो सकता है. वे मान चुके हैं कि वे मार्क्सवादियों की आखिरी जमात हैं. यह स्थिति दक्षिण पंथ के उभार या सत्ता पर अधिकार से पैदा नहीं हुई, अपितु कुछ दूर तक दक्षिण पंथ के उभार की जिम्मेदारी मार्क्सवादियों के अपने ही भविष्य में खोए विश्वास को अवश्य दिया जा सकता है. ये जो बीच बीच में बोल कुबोल के कारण चर्चा में आ जाने वाले लड़के हैं उनमें कोई किसी मार्क्सवादी बाप की संतान नहीं है और उनमें से किसी को मार्क्सवाद की समझ नहीं है. परन्तु क्या तुम यह दावा कर सकते हो कि उनके साथ खड़ा होकर अपने को डूबने से बचाने के लिए डूबने को तैयार बन्दों को पकड़ने वालों के पास मार्क्सवाद की समझ है? उत्तर सूझ जाय तो बताना फिर आगे की बात करेंगे.”
चेहरे से लगा वह सोच भी सकता है.