Post – 2017-07-16

हताशा और विवेक

हालात हमारे अच्छे नहीं हैं. नर्वसनेस की स्थिति है और वह भी ऐसे लोगों में जो समाज को राह दिखाने की जिम्मेदारी अपने सर माथे लेते हैं. ऐसे ही एक मित्र ने यह सिद्ध करने के लिए कि मुसलामानों को भारत से हिन्दुओं से अधिक प्रेम है,राही मासूम रज़ा का एक फिकरा पेश कर दिया.

उन्होंने किसी मुंहफट को जवाब देते हुए कहा था, देखो मैं मुसलमान हूँ. मेरे पास यह यह चुनाव था कि मैं पाकिस्तान चला जाऊं या भारत में रहूं. मैंने पाकिस्तान के मुकाबले हिंदुस्तान को चुना. तुम्हारे पास ऐसा विकल्प न था, इसलिए हिंदुस्तान में रहे. अब बताओ, हिंदुस्तान को तुम अधिक प्यार करते हो या मैं?

राही बहुत हाज़िर जवाब थे. उन्होंने बहुत डूब कर महाभारत के संवाद लिखे थे और वह मिजाज से सचमुच हिन्दुस्तानी थे और ऐसा आदमी ही आधा गाँव लिख सकता था. उसके लिए जिस ईमानदारी की जरुरत होती है वही लेखक की कलम को मशाल बना देती है.

राही ने आधा गाँव में इसका जवाब दे दिया है कि मुसलमानों ने किस भ्रम का शिकार होने के कारण विभाजन का समर्थन किया था और यदि उनके ही उस चरित्र की भाषा में बात करें तो उसके बाद उसे पता चला कि उसे और पाकिस्तान का समर्थन करने वालों को चूतिया बनाया गया था, क्योंकि उनका सब कुछ तो यहां था , इसे छोड़कर वे जा ही नहीं सकते थे. अब सचाई राही की ही कलम से बाहर आ जाती है. लाचारी हिन्दुओं की नहीं थी, उनकी थी जिन्होंने पाकिस्तान बनाया और जो वहां जा भी नहीं सकते थे?

इसका दूसरा पक्ष यही जवाब पाकिस्तान में रह जाने वाले हिन्दू क्या दे सकते हैं. यह कि उन्हें भारत जाने का विकल्प था और फिर भी न गए, इसलिए पाकिस्तानी मुसलामानों की तुलना में वे पाकिस्तान को अधिक प्यार करते और अपमान और दमन के शिकार होते हैं?

ये फ़िक़रे उनके काम आते हैं जिनको आप कमजोर करना चाहते हैं, और इससे उनकी ताक़त बढ़ती और आप की घटती है। मुसलमानों में यह सन्देश जाता है कि हम तो सही हैं, सारी गलती हिन्दुओं की है और हिन्दुओं को वे सारे कारनामे और आज की करतूतें याद आ जाती हैं जिनसे वह समस्या अधिक उग्र होती है जिससे निपटना हमारी आज की सबसे बड़ी चुनौती है।