Post – 2017-07-16

कलम का सिपाही

अमृत रॉय ने प्रेमचद के लिए बहुत सही शब्द का प्रयोग किया कि वह कलम के सिपाही थे . प्रत्येक लेखक और विचारक, यदि उसके लेखन की कोई सार्थकता है तो, वह कलम का सिपाही तो होता ही है कलम लगाने और गुल खिलाने वाला माली भी होता है. परन्तु जब वह अपने हथियार से काम नही लेता तो ख़ासा दयनीय और हास्यास्पद भी हो जाता है. जिसके हथियार का प्रयोग करता है उसकी नज़रों में तुच्छ भी, क्योंकि वह जिस कौशल से अपने हथियार का प्रयोग करता है, उतने कौशल से दूसरों के हथियार का प्रयोग कर ही नहीं सकता.
लेखक की राजनीति होश ठिकाने लाने और मुर्दों में जान फूंकने की, नाइट्रोजन और बारूद की गंध को ऑक्सीजन में बदलने की राजनीति होती है, और यदि वह समर्थ है तो उसकी बादशाहत देश और काल की सीमाओं के पार तक फैली होती है. भारत में यह जानकारी बहुत पुरानी है फिर भी दुर्भाग्य से वह भौतिक प्रलोभनों में पड़ कर स्वयं अपनी महिमा भूल कर याचकों की भीड़ का हिस्सा बन जाता है.